Bhindranwale: कौन था गोल्डन टेंपल पर कब्जा करने वाला भिंडरावाले, जिसे गुरु मानता है अमृतपाल सिंह
Jarnail Singh Bhindranwale: भिंडरेवाले स्वर्ण मंदिर में घुस चुका था और उसे अपना ठिकाना घोषित कर दिया था. यहां उसके सैकड़ों बंदूकधारी लड़ाके भी उसके साथ मौजूद रहते थे.
Jarnail Singh Bhindranwale: पूरे पंजाब में पिछले दिनों से एक नाम की खूब चर्चा हो रही है. जिसे लेकर कहा जा रहा है कि वो राज्य का अगला भिंडरावाले हो सकता है. इस शख्स का नाम अमृतपाल सिंह है, जिसकी पंजाब पुलिस लगातार तलाश कर रही है. उसके कई समर्थकों के खिलाफ भी पुलिस का एक्शन जारी है. यही वही शख्स है जो खुलेआम खालिस्तान की मांग कर रहा था. ठीक उसी तरह जैसे कई साल पहले जरनैल सिंह भिंडरेवाले ने किया था. अमृतपाल सिंह भी भिंडरेवाले को ही फॉलो करता है. ऐसे में हम आज आपको उस खतरनाक भिंडरेवाले की कहानी बता रहे हैं, जिसने पूरे देश में तहलका मचा दिया था.
पंजाब में दहशत का दूसरा नाम था भिंडरेवाले
जरनैल सिंह भिंडरेवाले को पंजाब में दहशत का दूसरा नाम कहा जाता था. सिख धर्म की संस्था दमदमी टकसाल से जुड़ने के बाद जरनैल सिंह के नाम के पीछे भिंडरेवाले लगाया गया. इसके बाद से ही लोग उसे भिंडरेवाले के नाम से जानने लगे. करीब 30 साल की उम्र में जरनैल सिंह को इस संस्था का अध्यक्ष चुन लिया गया. यहीं से भिंडरेवाले ने एक अलग देश बनाने की मुहिम को हवा देना शुरू कर दिया. पंजाब में लगातार हिंसक झड़प होने लगीं, जिसमें भिंडरेवाले के भड़काऊ भाषणों का अहम रोल होता था.
पंजाब में लगाया गया राष्ट्रपति शासन
साल 1981 में पंजाब केसरी के संपादक लाला जगत नारायण की गोली मारकर हत्या कर दी गई. कहा गया कि भिंडरेवाले ने ही इस हत्याकांड की साजिश रची. हालांकि तब उसे गिरफ्तार नहीं किया गया. इसके दो साल बाद 1983 में पंजाब के डीआईजी की हत्या कर दी गई. कुछ ही दिन बाद एक बस में घुसकर बंदूकधारियों ने कई हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया. पंजाब में हिंसा आग की तरह फैल रही थी, जिसे देखते हुए पंजाब सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ये सख्त फैसला लिया.
तब तक भिंडरेवाले स्वर्ण मंदिर में घुस चुका था और उसे अपना ठिकाना घोषित कर दिया था. यहां उसके सैकड़ों बंदूकधारी लड़ाके भी उसके साथ मौजूद रहते थे. यहां अकाल तख्त पर बैठकर वो पूरे पंजाब में दहशत फैलाने का काम करने लगा. इसके बाद इंदिरा गांधी ने इस पूरे चैप्टर को ही खत्म करने का फैसला कर दिया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत
जून 1984 में इंदिरा गांधी सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को चलाने की फैसला किया. इस ऑपरेशन का मकसद स्वर्ण मंदिर को भिंडरेवाला और उसके समर्थकों से आजाद कराना था. इस बड़े ऑपरेशन से पहले पंजाब में पूरी तरह से कर्फ्यू लगा दिया गया, सभी रेलगाड़ियां रोक दी गईं. 4 जून को ये ऑपरेशन शुरू हुआ और भारतीय सेना के कमांडो गोल्डन टेंपल में घुस गए. इसके बाद सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंकों ने भी स्वर्ण मंदिर पर चढ़ाई की. करीब तीन दिन तक चले इस ऑपरेशन में भिंडरेवाले के कई समर्थक मारे गए और 6 जून को आखिरकार भिंडरेवाले भी मारा गया. इस पूरे ऑपरेशन में करीब 80 से ज्यादा जवान शहीद हुए, वहीं करीब 500 चरमपंथियों को मार गिराया गया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर इंदिरा सरकार की खूब आलोचना हुई. कई नेताओं के इस्तीफे हुए और जमकर विरोध शुरू हो गया. इसी ऑपरेशन को इंदिरा गांधी की हत्या की वजह माना जाता है. ऑपरेशन के करीब चार महीने बाद ही इंदिरा गांधी को उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स ने गोलियों से छलनी कर दिया. इसके अलावा पूरे ऑपरेशन को लीड करने वाले जनरल एएस वैद्य की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई.
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