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जहां विपक्ष में बीजेपी, वहां संभाला मोर्चा; मिशन 2024 की बागडोर संभालने वाले मोदी-शाह के 5 सेनापतियों की कहानी

मिशन 2024 के लिए बीजेपी ने 400 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. बीजेपी जहां विपक्ष में है, उन राज्यों में संगठन के माहिर नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है. इन्हीं 5 सेनापतियों की कहानी जानते हैं.

भारतीय जनता पार्टी 2024 में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की तैयारी शुरू कर दी है. बीजेपी लोकसभा की 543 सीटों को 3 फेज में बांटकर स्ट्रेटजी बना रही है. पार्टी जिन राज्यों में विपक्ष में है, उन राज्यों में 5 मजबूत और संगठन से जुड़े नेताओं की तैनाती कर दी है. 

सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि मिशन 2024 को सफल बनाने की जिम्मेदारी इन्हीं 5 नेताओं पर सबसे अधिक है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ पर विशेष फोकस कर रही है. इन पांचों राज्यों में लोकसभा की करीब 131 सीटें हैं. 2019 में बीजेपी को इन 131 में से 58 सीटों पर जीत मिली थी. 

बिहार में बीजेपी और जदयू का गठबंधन था. बीजेपी ने 2024 में 400 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. पार्टी ने 144 लोकसभा सीटों के लिए विशेष रणनीति तैयार की है, जहां मोदी लहर के बावजूद 2019 और 2014 में जीत नहीं मिली थी. इनमें से 60 सीटें इन 5 राज्यों की है. 

5 में से 3 राज्यों में 2023 और 2024 में विधानसभा के चुनाव भी प्रस्तावित है. पार्टी में इसलिए भी इन नेताओं की जिम्मेदारी को अहम माना जा रहा है. 2014 में बीजेपी की जीत के पीछे अमित शाह, धर्मेंद्र प्रधान और थावरचंद गहलोत जैसे प्रभारियों का अहम रोल था. 2014 के बाद ये सभी नेता पार्टी और सरकार में बड़े पद पर भी पहुंचे.

हाल ही में बीजेपी ने 3 महासचिवों की एक कमेटी बनाई है, जो पार्टी में आउटरीच प्रोग्राम को देखेंगे. इन कमेटी में सुनील बंसल, तरुण चुघ और विनोद तावड़े को शामिल किया गया है.

यह कमेटी उन राज्यों पर विशेष फोकस करेगी, जहां बीजेपी विपक्ष में है. कार्यक्रम से लेकर टिकट वितरण तक का काम कमेटी के जिम्मे दिया गया है. 

1. सुनील बंसल- राजस्थान के कोटपूतली में जन्मे 53 साल के सुनील बंसल को बीजेपी में अमित शाह का करीबी माना जाता है. बंसल 2014 चुनाव से पहले यूपी में संगठन महासचिव बनाए गए थे. उन्होंने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी. 

बंसल को संघ और संगठन की राजनीति का तजुर्बा है. यूपी में पार्टी को उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव के बाद 2017 यूपी विधानसभा, 2019 लोकसभा चुनाव और फिर 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत दिलाने का काम किया. 2022 में पार्टी ने बंसल को राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया.

सुनील बंसल को पार्टी महासचिव बनाते हुए बंगाल, तेलंगाना और ओडिशा का प्रभारी बनाया गया. यानी इन तीनों राज्यों में बंसल सबसे बड़ी भूमिका में है. यूपी में उनके काम को देखते हुए माना जा रहा है कि बीजेपी यहां भी चमत्कार कर सकती है.

इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बीजेपी ने पिछली बार चौंका दिया था. इस बार ओडिशा की कुल 18 सीटों पर बीजेपी फोकस कर रही है. 17 सीटों वाली तेलंगाना में भी बढ़िया परफॉर्मेंस की जिम्मेदारी बंसल पर है.

2019 में बीजेपी को इन तीनों राज्यों की 30 सीटों पर ही जीत मिली थी. मिशन 400 के लिए ये राज्य बीजेपी के लिए खासे महत्वपूर्ण है. तेलंगाना बीजेपी में गुटबाजी खत्म करने के लिए बंसल वहां लगातार सक्रिय हैं. 

2. तरुण चुघ- 2012 के विधानसभा चुनाव अपना बूथ हार चुके तरुण चुघ को बीजेपी ने तेलंगाना का प्रभार सौंपा है. चुघ राज्य की प्रदेश इकाई और शीर्ष नेतृत्व के बीच सामंजस्य बनाने का काम भी करेंगे.

बीजेपी कर्नाटक के बाद दक्षिण के तेलंगाना में ही सबसे अधिक ताकत झोंक रखी है. हैदराबाद नगर निगम चुनाव के बाद से ही बीजेपी वहां सक्रिय है. तेलंगाना में लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा का भी चुनाव प्रस्तावित है.

चुघ पार्टी संगठन में कई पदों पर रह चुके हैं. संघ के स्वयंसेवक रहे चुघ की कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ मानी जाती है. चुघ भाजपा के युवा मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी भी रह चुके हैं.

तेलंगाना के प्रभारी बनने के बाद से ही चुघ राज्य में सक्रिय हो गए हैं. चुघ की देखरेख में हाल ही में पार्टी ने प्रदेश की 119 सीटों पर जनसभा का आयोजन किया था. चुघ ने तेलंगाना में एकला चलो नीति का भी ऐलान किया था.

आने वाले दिनों में तेलंगाना में बीजेपी 11 हजार से अधिक जनसभाओं का आयोजन करेगी. बीजेपी को तेलंगाना में भले 2019 में 4 सीटें मिली थी, लेकिन पार्टी वोट परसेंट 20 फीसदी के आसपास था. 

3. विनोद तावड़े- 2019 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से अदावत के चलते विनोद तावड़े का टिकट कट गया. तावड़े महाराष्ट्र बीजेपी के खांटी नेता माने जाते थे और सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके थे.

तावड़े ने इसके बाद दिल्ली की राह पकड़ ली. बिहार में जब बीजेपी और जदयू का गठबंधन टूटा तो पार्टी ने तावड़े को महासचिव बनाकर भेजा. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं, जिसमें से बीजेपी के पास वर्तमान में 17 सीटें हैं.

सियासी गलियारों में एक कहावत है कि दिल्ली का रास्ता बिहार और यूपी से होकर ही गुजरता है. ऐसे में बिहार में विपक्ष में बैठी बीजेपी के लिए यह राज्य काफी महत्वपूर्ण है. राजद और जदयू के गठबंधन होने से जातीय समीकरण भी पार्टी के पक्ष में नहीं है.

हाल ही में बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा था कि बिहार में बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिलने वाली है, जबकि 37 सीट बीजेपी हार रही है. तेजस्वी के इस दावे के बाद तावड़े की भूमिका बिहार में महत्वपूर्ण हो गई है.

2014 और 2019 में बीजेपी गठबंधन ने बिहार में एकतरफा जीत दर्ज की थी. इसी बदौलत पार्टी पूर्ण बहुमत के आंकड़े को भी पार किया. बिहार का प्रभार मिलते ही तावड़े ने छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.

इन तीनों के अलावा 2 और नेताओं को पार्टी ने मोर्चे पर तैनात किया है, जो मिशन 2024 के लिए काफी अहम हैं. 

1. ओम माथुर- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे बड़े राज्यों के प्रभारी रहे ओम माथुर को हाल ही में बीजेपी ने छत्तीसगढ़ का प्रभारी नियुक्त किया है. माथुर राजस्थान के रहने वाले हैं और संगठन के बड़े नेता माने जाते हैं.

दिसंबर 2022 में ओम माथुर का एक बयान खूब वायरल हुआ था. इसमें उन्होंने कहा था कि मैं जो खूंटा गाड़ देता हूं, उसे पीएम मोदी भी नहीं हिला सकते हैं. मेरा फाइनल किया टिकट को कोई नहीं काटता है. 

छत्तीसगढ़ में बीजेपी आंतरिक गुटबाजी में उलझी है. राज्य में इसी साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. पार्टी अब तक नया नेतृत्व नहीं खड़ा कर पाई है. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के मोर्चे पर ओम माथुर को तैनात किया गया है.

माथुर संघ में प्रचारक भी रहे हैं और बीजेपी में भैरो सिंह शेखावत के कभी करीबी हुआ करते थे. 2014 से पहले बीजेपी ने माथुर की तैनाती गुजरात में की थी. 

2. मंगल पांडेय- 2019 में बीजेपी ने सबसे बड़ा उलटफेर पश्चिम बंगाल में किया था. यहां की 42 में से 18 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 2021 में बंगाल चुनाव में हार के बाद बीजेपी का ग्राफ वहां गिरा है. 2024 में फिर से इसे ठीक करने का जिम्मा मंगल पांडेय को दी गई है.

बिहार के प्रदेश अध्यक्ष और हिमाचल में प्रभारी रहे मंगल पांडेय संगठन के फायर ब्रांड नेता माने जाते हैं. मंगल पांडेय कर्नाटक और झारखंड में चुनाव प्रभारी भी रह चुके हैं और दोनों राज्यों में पार्टी को फायदा मिला था. 

बंगाल में लोकसभा में 11 सीटों पर हिंदी भाषी वोटरों का दबदबा है. इनमें आसनसोल, बैरकपुर, श्रीरामपुर, उत्तर कोलकाता, हावड़ा, दमदम, कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दुर्गापुर, जादवपुर और दार्जिलिंग शामिल हैं. अधिकांश सीटों पर अभी तृणमूल का कब्जा है.

बीजेपी की 4 रणनीति, जिसके बूते हारी सीट जीतने की हो रही तैयारी

1. लोकसभा की कुल 144 हारी हुई सीटों के लिए बीजेपी ने 40 मंत्रियों की अलग-अलग टीम बनाई है. टीम को लीड करने वाले को क्लस्टर प्रभारी कहा गया है. 

2. मोदी कैबिनेट में शामिल मंत्रियों को क्लस्टर प्रभारी बनाया गया है. हरेक प्रभारी के जिम्मे 2-3 लोकसभा की सीटें सौंपी गई हैं. मंत्रियों को राज्यसभा सांसदों के साथ जिम्मे के लोकसभा क्षेत्रों का दौरा करना है.

3. मंत्रियों की टीम भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और जातीय समीकरण का ब्लूप्रिंट तैयार करेगी. निर्वाचन क्षेत्रों में संभावित उम्मीदवारों की पहचान करने का भी जिम्मा मिला है. इन्हीं उम्मीदवारों को टिकट वितरण में प्राथमिकता मिलेगी.

4. न्यूज एजेंसी एएनआई की खबर के मुताबिक 40 सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेगा रैली करेंगे. इन रैलियों का आयोजन क्लस्टर प्रभारी को करना है. बाकी के बचे 104 सीटों पर अमित शाह और जेपी नड्डा की रैली होगी. 

हर राज्य-जिले में खुद का ऑफिस बनाएगी पार्टी
2024 से पहले बीजेपी हर राज्य और जिले में खुद का ऑफिस पार्टी बनाने की तैयारी में है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने इसके लिए 8 सदस्यों की एक कमेटी भी बनाई है. इसकी रविंद्र राजू को सौंपी गई है. कमेटी जिले में जाकर जगहों को चिन्हित करेगी और फिर उसे खरीद कर उस पर दफ्तर तैयार करवाएगी.

राजस्थान समेत कई राज्यों में बीजेपी के पास अभी खुद का पार्टी ऑफिस नहीं है. 2017 में अध्यक्ष रहते हुए अमित शाह ने इसकी शुरुआत की थी. अब पार्टी 2024 से पहले इस अभियान को पूरा करने में जुटी है. 

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