Madgaon Express Film review: गोवा का वो ट्रिप जिसका सपना हम सबने अपने दोस्तों के साथ बचपन से देखा है, बहुत ही कम खुशनसीब लोग होते हैं वो जो जब गोवा का प्लान बनाए तभी गोवा जा भी पाए, वरना बाकी सब तो सालों साल उस प्लान की बातें एक वॉट्सऐप ग्रुप में ही करते रह जाते हैं. दिल चाहता है और जिंदगी ना मिलेगी दोबारा के बाद एक और फिल्म आ गई है जो तीन लड़कों की दोस्ती और एडवेंचर पर है. इस फिल्म का नाम है मडगांव एक्सप्रेस. इस फिल्म को डायरेक्ट किया है एक्टर कुणाल खेमू ने और ये फिल्म याद दिलाएगी अपनी सबसे गहरी दोस्ती की, चलिए बताते हैं क्या इसमें भी दिल चाहता है वाली बात है या नहीं.


ये है फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी डोडो (दिव्येंदु), पिंकू (प्रतीक गांधी) और आयुष (अविनाश तिवारी) तीन दोस्तों पर बेस्ड है जो बचपन से ही एक गोवा का ट्रिप प्लान करते आए हैं लेकिन उनकी किस्मत को ये मंजूर नहीं. तीनों बड़े होकर अलग-अलग देशों में रहते हैं, दो बहुत ही सक्सेसफुल बन जाते हैं और एक वहीं का वहीं रहता है. सालों बाद तीनों रीयूनियन का प्लान बनाते हैं और इसी में अपना गोवा का अपना सपना भी पूरा करने निकलते हैं. लेकिन ये गोवा का ट्रिप वैसा नहीं जाता जैसा आप या हम या फिर ये तीनों सोचते हैं. डोडो 'मडगांव एक्सप्रेस' से गोवा जाने का प्लान बनाता है. वही उनकी लाइफ का सबसे डेंजरस फैसला साबित होता है जब ये तीनों ड्रग्स और गैंगस्टर्स के चक्कर में पड़ जाते हैं. तीनो उन मुश्किलों से कैसे निकलते हैं, नोरा फतेही कैसे मदद करती है इनकी और इसी बीच तीनों के अपने पर्सनल मोमेंट भी आते हैं, इसी के इर्द गिर्द घूमती है इस फिल्म की कहानी.  


जानें कैसी है फिल्म? 
शुरुआत से ही पता चलने लगता है कि ये दिल चाहता है जैसी नहीं है बल्कि उससे काफी अलग है. फिल्म में डोडो का कैरेक्टर आपको कई बार हंसाता है और आपको हमेशा अपने सबसे ज्यादा एक्साइटेड रहने वाले दोस्त की याद दिलाता है. फिल्म में कई अलग अलग करैक्टर हैं और सभी की अपनी खासियत है जैसे मेंडोजा भाई और कंचन कोमडी. कुणाल खेमू ने ही इस कहानी को लिखा भी है और साफ दिखता है की गोलमाल जैसी फिल्म में काम करना उनके यहां भी काम आया. हर सीन में ह्यूमर दिखता है जो ऑलमोस्ट हर सीन को मजेदार बना देता है. फिल्म में दिल चाहता है का रेफरेन्स कई बार दिया जाता है और ये भी दिखाया गया है कि इन तीनों के लिए वही फिल्म रही गोवा ट्रिप की इंस्पिरेशन. बाकी तीनों बेड फाइट सीन, कंचन कोमडी के अड्डे की लड़ाई फिल्म के सबसे अच्छे सीन में से एक हैं. वहीं, नौरा फतेही को यहां ग्लैमर के लिए ही लिया गया और वो साफ दिखाई देता है. रेमो डी सूजा का कैमियो भी कुछ खास एड करता नहीं दिखा. बाकी फिल्म का म्यूजिक भी फ्रेश है.


एक्टिंग
दिव्येंदु शर्मा ने पूरी तरह से लूटी है इस फिल्म में महफिल. कई सीन में उनके एक्सप्रेशन और उनके डायलॉग आपको बहुत हसाएंगे. दिव्येंदु ने यहां प्यार का पंचनामा के अपने कैरेक्टर लिक्विड की भी याद दिलाई और ये दिखा दिया कि वो इस तरह का कैरेक्टर भी उतना ही अच्छा करते हैं जितना मिर्जापुर के मुन्ना भैया का. वहीं, अविनाश तिवारी दिन पर दिन सबसे फेवरेट बन रहे हैं, पहले खाकी, बम्बई मेरी जान, काला और अब ये कॉमेडी फिल्म. उनका टैलेंट लाजवाब है और वही बात प्रतीक गांधी के काम में भी दिखी जिनका कैरेक्टर इस फिल्म में दो शेड दिखाता है और दोनों में ही वो कमाल का काम करते नजर आते हैं. बाकी कास्ट का काम भी अच्छा है और कुणाल खेमू का डेब्यू भी जो एक सरप्राइज की तरह आता है.  


डायरेक्शन में छाए कुणाल खेमू
कुणाल खेमु का ह्यूमर और डायरेक्शन की समझ इस फिल्म को एक अच्छी और एंटरटेनिंग फिल्म बनाती है. कुणाल की बतौर डायरेक्टर ये पहली फिल्म है और उनका काम जबरदस्त है. अब देखना होगा कि क्या कुणाल आगे भी कॉमेडी में ही काम करते नजर आएंगे या और जॉनर पर भी काम करेंगे. फाइट सीन फिल्म के सारे ही कमाल तरह से शूट किए गए हैं और म्यूजिक भी अलग डेप्थ एड करता है.


अगर आपका कुछ एंटरटेनिंग देखने का मन्न है और याद करने हैं दोस्तों के साथ बिताए पुराने पल, तो आप इस फिल्म को जरूर देख सकते हैं. हाल ही में रिलीज हुए थ्रिलर्स के बीच ये फिल्म काफी फ्रेश फील होती है.


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