Lord Shiva: शिवजी अपने शीश पर चंद्रमा क्यों धारण करते है, जानिए इसका रहस्य
Lord Shiva: चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है, जिसे शिव ने अपने सिर पर धारण किया है. स्वामी अंजनी नंदन दास के अनुसार शिव उक्षणता और शीतलता का प्रतिनिधत्व करतें हैं और दोनों का सामंजस्य भी बनाकर रखते हैं.
Lord Shiva: भगवान शिव की सभी तस्वीरों में हम देखते हैं कि उनके शीश पर चंद्रमा सुशोभित है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों महादेव अपने शीश पर चंद्रमा धारण किए हुए होते हैं. चालिए शास्त्रीय पक्ष पर दृष्टी डालते हैं-
कामिका अगम 3.337–339 के अनुसार, शक्तिशाली जगमगाता हुआ चन्द्रमा भगवान शिव के व्यापक ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है और दर्शाता है कि भगवान शिव को सभी ज्ञात हैं.
स्कन्द पुराण माहेश्वर केदारखंड अध्याय क्रमांक 12 के अनुसार, शिव द्वारा अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने की कथा दी गई है. कथा के अनुसार देवासुर संग्राम के बाद भगवान विष्णु के कहने पर देवताओं और असुरों ने सन्धि कर ली और साथ काम करने के लिए तैयार हो गए. देवताओं के अनमोल रत्न जो असुरों के विजय पर, समुद्र में चले गए थे, उनको निकालने के लिए समुद्र मंथन करने की योजना बनाई गई.
मन्दराचल को मथानी और वासुकी को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया गया जिसमें भगवान विष्णु ने कच्छप रूप में समुद्र तल से मन्दराचल को सम्हाला. समुद्र में अनेक अनमोल रत्नों के साथ जहां अमृत निकला तो विष भी निकला. देव और असुर दोनों ही अमृत पीने के इच्छुक थे. अगर यह अमृत असुर पी लेते तो देवताओं से अधिक ताकतवर बन जाते. इस परिस्थिति में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके इस असमंजस को संभाला.
शिव ने उस कालकूट विष का पान कर लिया. मोहिनी रूप में भगवान विष्णु ने योगमाया के प्रभाव से सब दैत्यों को मोहित कर सारा अमृत यह कहकर रखवा दिया कि इसका सेवन कल होगा आज अधिवासन करें. आपको दैवी कृपा से अमृत प्राप्त हुआ है. ईश्वर की प्रसन्नता के लिए न्यायपूर्ण तरीके से उपार्जित निधि का दसवां भाग सत्कर्म में लगाएं (न्यायोपार्जितवित्तस्य दशमांशन धीमता। कर्तव्यों विनियोगस्च ईशप्रीत्यर्थमेव च। स्कंद पुराण माहेश्वर केदारखंड 13.35).
अगले दिन जब देवता भी वहां उपस्थित हुए तब मोहिनी ने दैत्यों से अतिथि का सम्मान करने की बात कही. इन्हें दान देना तो कर्तव्य है ही साथ ही इस कर्म से स्वयं को भी दैत्य धन्य समझें (परषोमूपकारं च ये कुर्वन्ति सवशक्तित:। धन्यस्त एव विज्ञेया: पवित्रा लोकपालक:।। स्कंद पुराण केदार खंड 12.42-53).
मोहिनी के कहने पर दैत्यों ने देवताओं को अमृत पीने के लिए बुलाया. मोहिनी को देवताओं का स्वार्थ सिद्ध करना था. इसलिए उन्होंने कहा कि वैदिकी श्रुति कहती है कि पहले अतिथियों का स्वागत किया जाता है (आदौ हैभ्यागता: पूज्या इति वै वैदिकी श्रुति:। स्कंद पुराण केदार खंड 12.58)
दैत्यों से स्वीकृति मिलने पर बाद में मोहिनी ने जानबूझकर देवताओं को अधिक अमृत पिलाना शुरू किया. उसी समय राहु नामक दैत्य देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गया. जैसे ही उसने अमृत पीना शुरू किया, सूर्य और चन्द्रमा ने इसकी सूचना भगवान विष्णु से कर दी. भगवान ने तब राहु का मस्तक काट डाला.
सभी दैत्य इस घटना के बाद युद्ध करने के लिए कूद पड़े. राहु तब चन्द्रमा के पीछे दौड़ा. वह भयंकर दैत्य सर्वत्र छा गया. भयभीत चन्द्रमा देवताओं के साथ स्वर्ग की ओर भागा. व्याकुल चन्द्रमा ने शिव की शरण में पहुंच खुद को बचाने की गुहार लगाई. तब शिव ने प्रकट होकर चन्द्रमा को अपनी जटाओं में रख लिया. तब से चन्द्रमा शिवजी के शीश पर स्थित हैं.
क्यों घटता और बढ़ता है चंद्रमा (Reason behind Waxing and Waning of Moon): –
शिव पुराण कोटि रूद्र संहिता 14.45 के अनुसार, जब भगवान शिव चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्ना हुए तब उन्होंने चांद्रमा से कहा "हे चंद्र! एक पक्ष में तुम्हारी (एक-एक) कला प्रतिदिन क्षीण और पुनः दूसरे पक्ष में क्रमशः वह कला निरन्तर बढ़ेगी. चंद्रमा ’सोम’ हैं और उनके प्रभु भगवान शिव ‘सोमनाथ’ हैं.
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