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भगवान राम ने यमराज से बचाए अपने मंत्री सुमंत्र के प्राण और दिया 9 दिन का जीवन दान, पढ़िए ये रोचक कहानी

त्रेतायुग में मानव की आयु दस हजार वर्ष थी. रामजी के मंत्री सुमंत्र की आयु 9999 वर्ष ग्यारह महीना थी. उसके जीवनकाल में 9 दिन शेष थे. इसलिए राम अपने मंत्री को यमराज से वापस ले आए और पुनः जीवित किया.

आनंद रामायण, राज्यकाण्डम् (उत्तरार्द्धम्) सर्ग क्रमांक 24 के अनुसार, एक बार भगवान राम अपनी सभा मे बैठे थे, तभी एक सेवक ने आकर कहा- हे राजाधिराज! आप के बूढ़े मंत्री सुमंत्र स्वर्ग चले गए. इस प्रकार का सन्देश सुनकर राम एक रथ पर सवार होकर सुमंत्र के घर गए. वहां उन्होने उनकी जन्मकुण्डली मंगाकर देखी, जिससे ज्ञात हुआ कि 9999 वर्ष ग्यारह महीना सुमंत्र की आयु थी. जिसमें केवल नौ दिन बाकी रह गये थे. ऐसा जानकर राम ने गुरु वशिष्ठ को बुलवाकर उनसे कहा कि सतयुग में मनुष्य की आयु लाख वर्षों की, द्वापर में हजार की, कलियुग में सौ वर्ष की तथा त्रेतायुग में दस हजार वर्ष की कही गयी है.

भगवान राम अपने मंत्री सुमंत्र को यमराज से बचा कर लाए और पुनः जीवित किया

यमराज ने मेरे राज्य में मेरा अपमान करके उस नियम का उल्लंघन किया है. ऐसा ज्ञात होता है कि वह मेरे द्वारा दण्ड पाना चाहता है. मेरे मंत्री की आयु में अभी नौ दिन बाकी है तो यम उसे यहां से क्यों ले गया. मैं आज यम को बांधकर लाता हूं और सुमन्त्र के प्राण पुनः लौटाऊंगा. ऐसा कहकर राम गरुड़ पर बैठे और धनुष की टंकार करते हुए यम की पुरी को चल दिए. तब तक रास्ते ही में उन्होंने देखा की सुमंत्र को कुछ यमदूत ले जा रहे हैं. देखते ही राम ने यमदूतों पर प्रहार करके सुमंत्र को छुड़ा लिया.  यमदूतों ने विनयपूर्वक कहा- हमने आप का क्या अपराध किया था, जिसके लिए आपने हमें ऐसा दण्ड दिया? राम ने कहा कि अभी इसके जीवन के नौ दिन बाकी है. तब तुम आज ही इसे क्यों लिए जा रहे हो? जब इसके दिन पूरे हो जाएं, तब आकर आनन्दपूर्वक ले जाना. तब मैं भी कुछ नहीं बोलूंगा.

भगवान राम की कृपा से मंत्री सुमंत्र को मिला 9 दिन का जीवन दान

राम की बात सुनकर यम के अनुचर कहने लगे हे राघव! इसका जन्म भी एक अपूर्व प्रकार से हुआ था. पहले दिन माता की योनि से इसके दोनों हाथ तथा मुख बाहर निकल आया था. इसके बाद दसवें दिन धीरे-धीरे इसके और अंग निकले थे. अच्छे मंत्रों से पण्डितों ने इसकी रक्षा कर ली थी. अतएव इसका सुमंत्र नाम पड़ा था. इसके पूर्व दिन से अर्थात जिस दिन इसका हाथ तथा मस्तक बाहर आया, उस दिन से लेकर आज तक में इसकी आयु समाप्त हो गयी. आप जो इसके नौ दिन बाकी बतलाते हैं, वे संदिग्ध हैं. इसलिए हे राम! हमारा कुछ दोष नहीं है, आप व्यर्थ इसे छीने लिए जा रहे हैं, हमको व्यर्थ आपने मारा.

उनकी बात सुनकर यमदूतों से राम ने कहा-  हे युमदूतों! जिस दिन माता के गर्भ से इसका इस तरह जन्म हुआ है, वही जन्म का दिन माना जायेगा. जिस दिन इसके जन्म का उत्सव मनाया गया है, वास्तव- में वही जन्मदिन है. उसी रोज इसके पिता ने इसका जन्म लिखा है. इसलिए अभी इसके नौ दिन बाकी हैं. तुम लोग जाओ और दसवें दिन आकर इसे ले जाना. तब मैं तुम लोगों को नहीं रोकूंगा.

राम की बात सुन और आंखों में आंसू भरे हुए वे दूत यम लोक को लौट गए. राम भी लौटकर अयोध्या चले आए. यहां स्त्रियों ने उनकी आरती उतारी और राम सुमन्त्र के घर गए. वहां सब लोगों को सुमंत्र के साथ प्रसन्न देखा. सुमन्त्र ने राम को देखते ही प्रणाम किया और उनकी पूजा की. इसके बाद राम अपने भवन गए. सुमंत्र ने अपने जीवन के केवल नौ दिन बाकी जानकर राम की आज्ञानुसार खूब दान-पुण्य आरम्भ कर दिया.

जब राम के युद्ध करने के लिए तैयार हुए यमराज

उधर वे यमदूत यम के आगे पहुंचकर कहने लगे, हे यमराज! आप कैसे अपने अधिकार की रक्षा करते हैं? रास्ते में राम ने मारकर सुमन्त्र को छुड़ा लिया. क्योंकि उसके जीवन के नौ दिन बाकी थे. राम वह नौ दिन पूरा कर लेने पर सुमन्त्र को जाने देंगे. अब हम लोग जल में डूबकर अपने प्राण दे देंगे. इस प्रकार दूतों को बात सुनकर यमराज मारे क्रोध के लाल हो गए. उन्होंने दूतों से कहा- घबराओ मत, आज ही राम को बांधकर मैं उनकी इस दृष्टता का दण्ड दूंगा. तुम जाकर सेना तैयार करो. तब तक मैं देवराज इन्द्र को सूचित करता आऊं. ऐसा कहकर यमराज तुरंत इन्द्र के पास गए. उन्हें सारा हाल सुनाया और सहायता करने की प्रार्थना की. यमराज की बात सुनकर इंद्र ने कहा- यमराज! क्या तुम पागल हो गये हो, जो विष्णु भगवान के साथ युद्ध करना चाहते हो?  चुपचाप अपनी यमपुरी को लौट जाओ. राम का तुम क्या कर लोगे? उनसे डरकर मैं अपने हाथों से पारिजात और कल्पवृक्ष इन दोनों देववृक्षों को उठाकर दे आया था.

राम संग युद्ध करने के लिए यमराज को नहीं मिली किसी की सहायता

ऐसा वचन सुनकर यम अग्निलोक गए, उनसे सहायता मांगी तो अग्नि ने भी वैसा ही उत्तर दिया. इसके बाद वरुण,  वायु, कुबेर, ईशान, रवि, चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि मङ्गललोक गए. यमराज ने सभी से सहायता की प्रार्थना की, किन्तु यमराज को सबने इन्द्र के समान ही नकारत्मक उत्तर दिया. तब यमराज लौटकर ब्रह्मा के पास गए. पाताल में रहने वाले राजाओं तथा सप्तद्वीप के राजाओं से भी जाकर सहायता की प्रार्थना की. लेकिन उन्होंने भी कहा कि राम के विरुद्ध हम आपकी सहायता नहीं कर पाएंगे. इसके बाद क्रोधाविष्ट होकर यमराज अपनी ही सेना लेकर राम के साथ युद्ध करने अयोध्या चले. उस समय उनके समस्त गण साथ थे और यमराज एक बड़े भारी भैसे पर सवार थे. वहां पहुंच कर उन्होंने चारों ओर से उस अयोध्या नगरी को घेर लिया.

युद्ध भूमि में हुआ राम पुत्र लव और यमराज के बीच महाभयंकर युद्ध

यमराज से घिरी अयोध्या को देखकर राम ने लव से कहा- तुम यमराज से युद्ध करने के लिए जाओ. युद्ध भूमि में आने के पश्चात लव ने यमराज के साथ महाभयंकर युद्ध प्रारम्भ कर दिया. उस समय समस्त देवता अपने विमानों पर आरूढ़ होकर समरक्षेत्र में आए और वह युद्ध देखने लगे. इसके बाद लव ने अपने बाणों की वर्षा से यमराज के भैंसे को घायल कर दिया और वेग के साथ बाण चलाते हुए सौ बाणों की वर्षा से यमराज पर प्रहार किया. तब यमराज ने अतिशय क्रुद्ध होकर लव पर यमदण्ड छोड़ा. यमदण्ड को देखकर लव ने ब्रह्मास्त्र चला दिया, जिससे यमदण्ड लौट पड़ा. तब यमराज वहां से भाग निकले और ब्रह्मास्त्र उनके पीछे-पीछे चला. उस ब्रह्मास्त्र को देखकर सूर्य ने समझा कि इससे यम नहीं बच सकता. मेरा बेटा अवश्य पराजित होगा. तब सूर्य देव स्वयं रथ पर आरूढ होकर लव के पास आये और प्रार्थना करने लगे.

सूर्य देव ने की अपने पुत्र यमराज की रक्षा 

सूर्यं ने कहा- हे पुत्र लव! इस अस्त्र को लौटाकर यम को बचाओ. तुम्हीं ने इसे चलाया है और तुम्हीं इसका निवारण भी कर सकते हो. तुम अस्त्रविद्या जानने वालों में सर्वश्रेष्ठ हो. तुम हमारे वंश में उत्पन्न हुए हो और यम भी मेरा ही पुत्र हैं. क्या अपने पूर्वज यम को ही तुम मार डालना चाहते हो? सूर्य के प्रार्थना करने पर लव ने अपना ब्रह्मास्त्र वापिस कर लिया. इसके बाद लव को आगे करके यमराज के साथ-साथ सूर्य रामचन्द्र का दर्शन करने के लिए हर्षपूर्वक अयोध्या नगरी में गये. उस समय देवताओं ने अपने बाजे बजाये, लव पर फूलों की वर्षा की और अप्सराएं नृत्य करने लगीं. विजयी बालक लव, राम के पास पहुंचा और प्रणाम किया. राम ने सूर्य भगवान का आगमन सुनकर उनकी अगवानी की, प्रणाम किया और हाथ पकड़कर सभा–भवन में ले गए. इसके बाद अपने पूर्वज सूर्य को राम ने सिंहासन पर बिठलाया और षोडशोपचार से उनकी पूजा की. फिर राम ने सूर्य भगवान से कहा- आप हमारे पूर्वज हैं. अतएव लव ने जो कुछ अपराध किया हो, सो क्षमा कीजिए.

राम की ऐसी बात सुनकर सूर्य ने भगवान से कहा- हे राम! आप ही के नाभि–कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए थे और उनसे मरीचि आदि उत्पन्न हुए. मरीचि से कश्यप हुए और कश्यप से मैं उत्पन्न हुआ हूं. अतएव मैं आपके पोत्र का पौत्र हूं. हमारे पुत्र यम ने जो अपराध किया हो, सो क्षमा करिए. इस प्रकार विनय करके सूर्य ने राम को आासन पर बिठलाया और यम से प्रणाम करवाया. इसके बाद समस्त देवता वहां पहुंचे. राम ने भी सादर सब देवताओं की पूजा की. इसके बाद राम की आज्ञा से इन्द्र ने संग्राम में मरे हुए लोगों पर अमृत की वर्षा की और वाहन समेत समस्त वीरों को उठा-कर खड़ा किया. तदनन्तर राम ने यमराज से कहा कि जब तक मैं पृथ्वी पर शासन करता रहूं, तब तक तुम उन्हीं मनुष्यों को अपने लोक में ले जाओ, जिनकी आयु पूर्ण हो गयी हो और किसी को नहीं. राम की बात सुन कर यमराज ने कहा कि "ऐसा ही होगा".

रामराज्य यानी त्रेतायुग में दस हजार वर्ष थी मानव की आयु

इसके बाद दसवें दिन सुमंत्र ने राम को प्रणाम करके उनके सामने ही प्राण त्याग दिया. राम के समक्ष मरने से वे समस्त देवताओं के साथ दिव्य लोक को गए. इसके बाद सूर्य भी राम से आज्ञा लेकर यम के साथ लौट गए. राम ने सुमन्त्र के पुत्र सुमन्तु के हाथों सुमंत्र की क्रिया करवायी ओर पिता के आसन पर उसी पुत्र को बिठाया. फिर राम ने लक्ष्मण को पृथ्वीतल में इस बात की घोषणा की. वे हाथी पर सवार हो तथा सातों द्वीपों में जा जाकर नगाड़े बजाते हुए राम की आज्ञा सुनाने लगे. उन्होंने कहा- राजा रामचन्द्र का आदेश है कि यदि राज्य में कोई मनुष्य बिना आयु पूर्ण हुए ही मरे तो उसे मेरे पास ले आया जाए. कोई मनुष्य अपने नित्य-नैमित्तिक कर्मो को न छोड़े. जो लोग दुराचारी हों, उन पर कड़ा शासन किया जाए, धर्म-कर्म सदा होता रहे. इस प्रकार लव ने यमराज को पराजित करके सिद्ध कर दिया की राम पुत्र होना कोई साधारण बात नहीं हैं.

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[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

मुंबई के रहने वाले अंशुल पांडेय धार्मिक और अध्यात्मिक विषयों के जानकार हैं. 'द ऑथेंटिक कॉंसेप्ट ऑफ शिवा' के लेखक अंशुल के सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म और समाचार पत्रों में लिखते रहते हैं. सनातन धर्म पर इनका विशेष अध्ययन है. पौराणिक ग्रंथ, वेद, शास्त्रों में इनकी विशेष रूचि है, अपने लेखन के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहें.
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