![metaverse](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-top.png)
Kamakhya Shakti Peeth: तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है देवी भगवती का ये शक्तिपीठ
एक शक्ति धाम है मां कामख्या का मंदिर. जिसका पौराणिक इतिहास व महत्व लोगों को हैरान कर देता है. कहते हैं यहां पर कोई मूर्ति नहीं बल्कि यहां देवी सती के योनि भाग की ही पूजा अर्चना की जाती है.
![Kamakhya Shakti Peeth: तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है देवी भगवती का ये शक्तिपीठ Kamakhya Shakti Peeth of Goddess Bhagwati is famous for tantrik sadhna Kamakhya Shakti Peeth: तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध है देवी भगवती का ये शक्तिपीठ](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/06/02164444/pjimage-3.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
भारत में देवी के शक्तिपीठों की बहुत मान्यता है. कुल 51 शक्तिपीठ हैं जो अलग अलग जगहों पर मौजूद हैं और हर शक्तिपीठ का अपना एक अलग इतिहास और महत्व है. ऐसा ही एक शक्ति धाम है मां कामख्या का मंदिर. जिसका पौराणिक इतिहास व महत्व लोगों को हैरान कर देता है. कहते हैं यहां पर कोई मूर्ति नहीं बल्कि यहां देवी सती के योनि भाग की ही पूजा अर्चना की जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस शक्तिपीठ को तंत्र मंत्र की साधना के लिए भी सबसे उत्तम माना गया है.
तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है मंदिर
मान्यता है कि भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर जब देवी सती के अलग अलग अंग भिन्न भिन्न स्थलों पर गिरे तो देवी का योनि भाग असम के गुवाहाटी की एक पहाड़ी पर गिरा. और यहीं पर मां कामाख्या मंदिर की स्थापना हुई. यह मंदिर खासतौर से तंत्र साधना के लिए विख्यात है. जहां देवी सती के योनि भाग की आज भी पूजा की जाती है. यूं तो साल भर यहां तांत्रिकों का जमावड़ा लगा ही रहता है लेकिन नवरात्रों में खासतौर से यहां पर सिद्धियां प्राप्त करने के लिए व तंत्र साधना के लिए लोग उमड़ते हैं.
हर साल लगता है अम्बुवाची मेला
जून के महीने में हर साल कामाख्या देवी के मंदिर में अम्बुवाची मेला भी आयोजित होता है जिसका इतिहास और महत्व सभी को हैरानी से भर देता है. कलयुग में यहां एक चमत्कार देखने को मिलता है. कहते हैं इस मेले के दौरान मां कामाख्या मंदिर के गर्भ गृह के कपाट तीन दिनों के लिए खुद ही बंद हो जाते हैं और इस दौरान कोई भी मां के दर्शन नहीं कर पाता. मान्यता है कि इन तीन दिनों तक देवी मां रजस्वला रहती हैं. और चौथे दिन जब गर्भ गृह के द्वार खुद खुलते हैं तो देवी के आसपास बिछा सफेद वस्त्र रक्त से लाल हो जाता है. जिसे भक्तों में बांटा जाता है. कहते हैं मां के प्रसाद के रूप में मिले इस कपड़े को धारण करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है.
मां कामाख्या से पहले ज़रुरी है भैरव के दर्शन
कहा जाता है कि कामाख्या मंदिर से कुछ ही दूर उमानंद भैरव का मंदिर है। जिसके दर्शन बेहद ही ज़रुरी होते हैं. बिना उमानंद भैरव के दर्शनों के कामाख्या देवी के दर्शन नहीं किए जाते. यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के टापू पर स्थित है.
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![metaverse](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![डॉ. सब्य साचिन, वाइस प्रिंसिपल, जीएसबीवी स्कूल](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/045c7972b440a03d7c79d2ddf1e63ba1.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)