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गरीबी के अभिशाप से निकलता भारत, नीति आयोग की रिपोर्ट से निकलती नई राह, लेकिन लंबा सफर है बाकी

Poverty MPI: नीति आयोग की रिपोर्ट से ये जरूर पता चलता है कि 5 वर्षों में 13.5 करोड़ नागरिक बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं, लेकिन अभी भी देश में गरीबी का दंश झेल रहे लोगों की एक बड़ी आबादी है.

NITI Aayog MPI: आजादी के 75 साल बाद भी भारत के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, इनमें गरीबी सबसे प्रमुख है. गरीबी के अभिशाप से देश की एक बड़ी आबादी को निकालने के लिए इस दौरान  सरकारी स्तर पर लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं. इसके बावजूद अभी भी देश में एक बड़ा तबका है, जो बुनियादी सुविधाओं के अभाव वाला जीवन जीने को मजबूर है.

अब इस मोर्चे पर नीति आयोग ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उससे कुछ राहत भरी खबर सामने आई है. नीति आयोग की गरीबी से जुड़ी इस रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं.

13.5 करोड़ लोग 5 साल में गरीबी से बाहर निकले

नीति आयोग ने 17 जुलाई को 'राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023' के नाम से ये रिपोर्ट जारी किया है. इसके अनुसार वर्ष 2015-16 से 2019-21 के दौरान 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं. नीति आयोग की ओर से राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) का यह दूसरा संस्करण है. इस तरह का पहला संस्करण नवंबर 2021 में जारी किया गया था.

देश में बहुआयामी गरीबों की संख्या 14.96%

भारत में वर्ष 2015-16 में बहुआयामी गरीबों की संख्या कुल आबादी की 24.85% थी, जो 2019-21 में घटकर 14.96% हो गई. यानी इस अवधि के दौरान गरीबी की संख्या में आबादी के अनुपात में 9.86% की गिरावट दर्ज की गई है. देश में करीब 15 फीसदी आबादी अभी भी बहुआयामी गरीब हैं, ये चिंताजनक है. इतनी बड़ी आबादी को बहुआयामी गरीब की कैटेगरी से बाहर निकालने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

12 मानकों के आधार पर तय गरीबी सूचकांक

नीति आयोग ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक का निर्धारण स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर से जुड़े 12 मानकों को ध्यान में रखकर किया है. इन मानकों या पैमाने में  संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य से जुड़े संकेतकों को शामिल किया गया है. इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई गैस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, परिसंपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं. नीति आयोग का कहना है कि देश में इन सभी मानकों पर इस अवधि के दौरान उल्लेखनीय सुधार हुआ है.

यूपी में संख्या के हिसाब से सबसे ज्यादा कमी

राज्यवार बात की जाए, तो उत्तर प्रदेश में गरीबों की संख्या में सबसे ज्यादा कमी आई है.  इस अवधि में उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ लोग गरीबी के अभिशाप से बाहर निकले हैं. इसके बाद बिहार से 2.25 करोड़ और मध्य प्रदेश से 1.36 करोड़ लोग गरीबी के कुचक्र से बाहर निकले हैं. नीति आयोग ने माना है कि बहुआयामी गरीबों की संख्या में सबसे तेज कमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में दर्ज की गई है. नीति आयोग की इस रिपोर्ट से 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 707 प्रशासनिक जिलों के लिए बहुआयामी गरीबी संबंधी अनुमान मिलते हैं.

संख्या में भले ही यूपी में सबसे ज्यादा गरीबी घटी है, लेकिन जनसंख्या के प्रतिशत के मामले में बिहार में सबसे ज्यादा गरीबी कम हुई है. 2015-16 में बिहार की 51.89% आबादी बहुआयामी गरीबी के दंश को झेलने को मजबूर थी, वहीं 2019-21 के दौरान ये आंकड़े सुधर कर 33.76% गया है. मध्य प्रदेश के लिए ये आंकड़ा 20.63% और यूपी के लिए 22.63% रहा.

इस प्रगति के बावजूद बिहार अभी भी आबादी के प्रतिशत के हिसाब से देश का सबसे गरीब राज्य है. इसके बाद झारखंड और मेघालय का नंबर आता है. फिर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का नंबर है. असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नागालैंड और राजस्थान आबादी के प्रतिशत हिसाब से 10 सबसे गरीब राज्यों में शामिल हैं.

देश में केरल है सबसे कम गरीब राज्य

आबादी के प्रतिशत हिसाब से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर गरीबी के मोर्चे पर सबसे बेहतर पुडुचेरी की है. वहीं राज्यों में सबसे बेहतर स्थिति केरल की है. उसके बाद गोवा और तमिलनाडु का नंबर आता है. नीति आयोग की ये रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि अभी भी केरल ही देश का सबसे कम गरीब राज्य है यानी यहां के नागरिकों का जीवन स्तर औसतन सबसे बढ़िया है.

ग्रामीण इलाकों में गरीबी में तेजी से कमी

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच बहुआयामी गरीबी में असमानताएं अभी भी मौजूद हैं. ग्रामीण इलाकों में गरीबी का दंश ज्यादा व्यापक है. राहत की बात ये है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में इस दौरान गरीबी तेज गति से घटी है. शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65% से से घटकर 5.27% हो गई, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी 32.59% से गिरकर  19.28% हो गई है. नीति आयोग ने शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच मौजूद इस फर्क को लेकर चिंता भी जाहिर किया है.

एसडीजी लक्ष्य तय समय से पहले कर लेंगे हासिल

एमपीआई मूल्य पांच साल में 0.117 से लगभग आधा होकर 0.066 हो गया है. इसकी वजह से  2015-16 से 2019-21 के बीच गरीबी की तीव्रता या गहनता 47% से घटकर 44% हो गई है. गरीबी की तीव्रता या गहनता किसी भी देश में रहने वाले लोगों के बीच औसत अभाव को मापता है. इसका परिणाम ये है कि भारत 2030 की तय समय सीमा से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा कम करने का लक्ष्य) को हासिल करने की राह पर आगे बढ़ रहा है.

बहुआयामी गरीबी में कमी की बड़ी वजह

नीति आयोग ने माना है कि पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा के वर्षों, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन की गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है. आर्थिक तौर के कमजोर लोगों तक बिजली पहुंच,  बैंक खातों तक पहुंच और पेयजल सुविधा पहुंचने से एक बड़ी आबादी के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है.

बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मोर्चे पर जो उल्लेखनीय प्रगति हुए है, उसके लिए नीति आयोग ने सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रमों, स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन को महत्वपूर्ण बताया है. इसमें कहा गया है कि पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे कार्यक्रमों से स्वास्थ्य में अभावों को कम करने में मदद मिली है. स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन जैसी पहल से स्वच्छता संबंधी सुधार में मदद मिल रही है. नीति आयोग की रिपोर्ट में गरीबी को कम करने में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जनधन योजना और समग्र शिक्षा जैसी पहलों बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. कहा गया है कि पीएम उज्ज्वला योजना से रसोई गैस की कमी में 14.6% का सुधार देखा गया है.

बहुआयामी गरीबी सूचकांक गरीबी मारने का एक ऐसा पैमाना है, जो सिर्फ किसी शख्स के इनकम या आय से ही नहीं जुड़ा हुआ है. जिन 12 एमपीआई संकेतकों के जरिए गरीबी को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाती है, उसमें मात्रा के साथ ही गुणवत्ता पर भी फोकस है.

बहुआयामी गरीब और असल गरीब में फर्क

इन 5 सालों में बहुआयामी गरीबी के मौर्चे पर तो हमने काफी सुधार देखा है. इसका ये मतलब नहीं है कि अब देश में गरीबी की समस्या जल्द खत्म हो जाएगी. दरअसल बहुआयामी गरीबी सूचकांक और वास्तविक गरीबी में फ्रर्क है. इसे एक उदाहरण के तौर पर समझें तो बहुआयामी गरीबी के हिसाब से 2019-21 के बीच 11.90% लोग पोषण के इंडिकेटर पर गरीब थे. ये सेंसर्ड हेडकाउंट रेशियो है. लेकिन अनसेंसर्ड हेडकाउंट रेशियो के मामले में देश की 31% से ज्यादा आबादी पोषण के इंडिकेटर पर गरीब थे. उसी तरह से 12 इंडिकेटर में दोनों तरह के हेडकाउंट रेशियो में काफी फर्क है.

UNDP के आंकड़े राहत के साथ चिंताजनक भी

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी UNDP ने भी हाल ही ग्लोबल एमपीआई इंडेक्स जारी किया है. इसमें भारत में गरीबी को लेकर जो हालात बताए गए हैं, वो भी बेहद सकारात्मक है.  इसमें कहा गया है कि 2005 से 2021 के बीच करीब 41.5 करोड़ लोग भारत में गरीबी से बाहर निकले हैं. इसमें कहा गया है कि भारत सर्बिया वियतनाम, मोरक्को, कंबोडिया, कांगो, होंडुरास, इंडोनेशिया, चीन समेत 25 देशों में से एक है, जो 15 वर्षों के भीतर वैश्विक एमपीआई वैल्यूज को आधा करने में सफल रहा है.

यूएनडीपी के मुताबिक भारत में गरीबी 2005-06 में 55% से गिरकर 2021 में 16% रह गई है. हालांकि इन आंकड़ों के मुताबिक अभी भी भारत में 23 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हैं. इस आबादी के अतिरिक्त  यूएनडीपी ने 2001 में 18.7% को बहुआयामी गरीबी के प्रति संवेदनशील कैटेगरी में रखा है. इस कैटेगरी में आने वाले लोगों की संख्या 2021 में  26 करोड़ से ज्यादा थी. ये कैटेगरी ऐसी है जो गरीब नहीं हैं, लेकिन गरीबी मापने के लिए अपनाए गए कई संकेतकों में वंचित हैं.

यूएनडीपी के इन दोनों को कैटेगरी को मिला दें तो भारत में ये संख्या करीब 50 करोड़ हो जाती है और गरीबी के खिलाफ लड़ाई में ये संख्या बहुत बड़ी चुनौती है. इस चुनौती से निपटने के लिए अभी देश को लंबा सफर तय करना बाकी है.

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