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G-20 के जरिए भारत के पास चाबहार बंदरगाह के महत्व को स्पष्ट करने का मौका

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है. इसके एक पोर्ट का संचालन एक भारतीय कंपनी संभालती है. इस पोर्ट से अफगानिस्तान से भारत का प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित हो जाता है.

Chabahar Port & India: चाबहार बंदरगाह दक्षिण-पूर्वी ईरान में ओमान की खाड़ी में स्थित है. यह एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिसकी समुद्र तक सीधी पहुंच है. इसे मध्य एशियाई देशों के साथ भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा व्यापार के सुनहरे अवसरों का प्रवेश द्वार माना जाता है.

भारत और मध्य एशिया संयुक्त कार्य समूह (JWG) के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर पहली बैठक 12-13 अप्रैल को मुंबई में आयोजित हुई. बैठक के बाद साझा बयान जारी किया गया जिसमें निजी हितधारकों की भागीदारी और आफगानिस्तान को गेहूं की मदद करने पर जोर दिया गया.

बैठक की अध्यक्षता सचिव (ER) ने की और इस बैठक में कजाकिस्तान, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के उप मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया. इस आयोजन के लिए विशेष तौर पर संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (UNWFP) के प्रतिनिधि, ईरान के उप-विदेश मंत्री और अफगानिस्तान के महावाणिज्यदूत को आमंत्रित किया गया था.

बैठक के दौरान, इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGAL) के प्रबंध निदेशक ने चाबहार पोर्ट के शहीद बेहस्ती टर्मिनल (Shahid Beheshti) पर सुविधाओं और वर्तमान संचालन पर एक व्यापक प्रस्तुति दी. यूएनडब्ल्यूएफपी के देश के प्रतिनिधि ने गेहूं सहायता के वितरण के लिए अफगानिस्तान में भारत और यूएनडब्ल्यूएफपी के बीच चल रहे सहयोग पर एक प्रस्तुति दी. अफगानिस्तान के महावाणिज्यदूत ने अफगान लोगों के लिए मानवीय सहायता प्रदान करने और अफगान व्यापारियों के लिए आर्थिक अवसर प्रदान करने के लिए चाबहार बंदरगाह के महत्व पर जोर दिया.

प्रतिभागियों ने अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए शिपमेंट को सुविधाजनक बनाने में शाहिद बेहेस्ती टर्मिनल, चाबहार पोर्ट द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की. बता दें कि आईपीजीएल ने दिसंबर 2018 में शाहित बेहस्ती टर्मिनल का संचालन करना शुरू किया था. तब से लेकर अब तक भारत ने अफगानिस्तान को कुल 2.5 मिलियन टन गेहूं और दो हजार टन दालों की शिपिंग के लिए बंदरगाह का उपयोग किया है.

चूंकि व्यापार और वाणिज्य को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय संपर्क का होना आवश्यक है. इसलिए इसे और आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया. इस संदर्भ में ईरान के उप विदेश मंत्री ने निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के साथ ईरान में भारत-मध्य एशिया संयुक्त कार्य समूह (JWG) के अगले दौर के आयोजन का प्रस्ताव रखा, जिसका की प्रतिभागियों ने प्रस्ताव का स्वागत किया. देशों के प्रतिनिधियों ने कहा कि हमें कनेक्टिविटी के विकास के लिए प्राथमिकता देकर काम करना होगा. चूंकि यह व्यापार और वाणिज्यिक सहयोग को कई गुणा बढ़ाने में मददगार हो सकता है. इसके लिए सभी ने बड़े पैमाने पर निजी निवेश की सहभागिता को बढ़ाने, अंतरराष्ट्रीय मानकों को लागू करने, बाजारों तक पारस्परिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की.

उन्होंने पुष्टि की कि कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए की जा रही पहलों को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, कानून के शासन और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के सम्मान की पुष्टि करनी चाहिए और सतत विकास के लिए यह पारस्परिक सहमति के आधार पर होना चाहिए. हमें टिकाऊ कनेक्टिविटी को विकसित करने के लिए पारदर्शिता, व्यापक भागीदारी, स्थानीय प्राथमिकताओं, वित्तीय स्थिरता और सभी के संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का भी ख्याल रखना जरूरी है. दरअसल, यह बात चीन के वन बेल्ट रोड और सीपेक के संदर्भ में कही गई. चूंकि चीन द्वारा विकसित की जारी सीपेक जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरेगी. इस पर भारत ने पहले ही अपनी नाराजगी जाहिर की है और यही वजह था कि चीन के कहने के बावजूद भारत इस प्रोजेक्ट में अपनी सहभागिता देने से पीछे हट गया था.

भारत के लिए क्यों है महत्वपूर्ण

चाबहार बंदरगाह में दो अलग-अलग बंदरगाह शामिल हैं. इसमें से एक का नाम शाहिद कलंतरी और दूसरे का नाम शाहिद बेहेश्टी है. भारतीय फर्म इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड, शहीद बेहेश्टी पोर्ट पर परिचालन कर रही है. चाबहर बंदरगाह के विकास को अलगाव में नहीं बल्कि अवसरों के चश्मे से देखने की जरूरत है. चूंकि भारत-ईरान के द्विपक्षीय संबंध थोड़े जटिल हैं और भारतीय दृष्टिकोण से चाबहार बंदरगाह की व्यवहार्यता के लिए विचार करने की आवश्यकता है. 

चाबहार पोर्ट के क्या हैं फायदे

अफगानिस्तान के लिए सीधा मार्ग: यह भारत और अफगानिस्तान के बीच राजनीतिक रूप से स्थायी संपर्क की स्थापना सुनिश्चित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान जाने वाले भारतीय ट्रकों द्वारा अपने क्षेत्र के उपयोग होने देने से इनकार करता है. चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान को अन्य देशों के साथ व्यापार करने में भी मदद करेगा. इसके शुरू हो जाने से पाकिस्तान पर अफ़ग़ानिस्तान की निर्भरता कम होगी और अफ़ग़ानिस्तान की घरेलू राजनीति पर पाकिस्तान का प्रभाव भी काफी हद तक कम होगा, जिससे भारत को रणनीतिक रूप से फायदा होगा.

चीन का मुकाबला करने में भी मददगार साबित होगा: चाबहार बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के साथ-साथ अरब सागर में चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने में भी भारत के लिए फायदेमंद होगा, जिसे चीन ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने में पाकिस्तान की मदद करके सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है. बता दें कि ग्वादर पोर्ट, चाबहार पोर्ट से सिर्फ 72 किलोमीटर ही दूर है.

व्यापार और वाणिज्य को मिलेगा बढ़ावा: चाबहार बंदरगाह से भारत में लौह अयस्क, चीनी और चावल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि होगी. भारत को तेल की आयात करने में जो लागत आती है उसमें भी काफी गिरावट देखने को मिलेगी. वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, चाबहार बंदरगाह, INSTC के साथ, भूमध्य-सुएज़ मार्ग की तुलना में 30% सस्ता आयात प्रदान करता है. इसके अलावा मध्य एशिया से प्राकृतिक गैस चाबहार बंदरगाह के जरिए भारत को निर्यात की जा सकती है. चूंकि भारत पहले से ही तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत (तापी) पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं का हिस्सा है. इसके अलावा, पश्चिम द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाए जाने के बाद से भारत ने पहले ही ईरान से कच्चे तेल की खरीद को बढ़ा दी है.

मानवीय संचालन का होगा फायदा: राजनयिक दृष्टिकोण से, चाबहार बंदरगाह का उपयोग भारत द्वारा एक बिंदु के रूप में किया जा सकता है, जहां से मध्य और दक्षिण एशिया में मानवीय कार्यों का समन्वय स्थापित किया जा सकता है. 

अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ परिवहन कॉरिडोर से लिंक: चाबहार बंदरगाह ईरान तक भारत की आसान पहुंच बनाने के लिए मददगार होगा. अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ परिवहन कॉरिडोर का प्रमुख प्रवेश द्वार जिसमें भारत, रूस, ईरान, यूरोप और मध्य-एशिया के बीच समुद्र, रेल और सड़क मार्ग शामिल हैं.

चाबहार बंदरगाह के विकास में  चुनौतियां

ईरान-चीन के बीच का बढ़ता संबंध: हाल के दिनों में ईरान, चीन के और करीब आ गया है. चीन, ईरान के साथ अपने संबंधों को और तेजी से विकसित कर रहा है. चीनी राष्ट्रपति ने 2016 में ईरान की यात्रा की थी. उन्होंने उस दौरान दोनों देशों के बीच सहयोग के लिए व्यापक योजना करार किया था. इसके अलावा ईरान ने चीन के साथ बहुप्रचारित रणनीतिक साझेदारी के मसौदे को मंजूरी दी. इसके तहत दोनों देशों ने 400 अरब अमेरिकी डॉलर के समझौते के माध्यम से अपनी दीर्घकालिक साझेदारी को एक नए स्तर पर ले जाने का प्रस्ताव दिया.

ईरान-अमेरिका के बीच खराब संबंध: चाबहार पोर्ट की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध किस तरह विकसित होते हैं. चूंकि भारत, ईरान के साथ अपने संबंधों को मजबूत और टिकाऊ बनाना चाहता है. लेकिन इसके लिए ईरान को अमेरिका से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में सदस्यता के लिए समर्थन और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अमेरिका से समर्थन की आवश्यकता है.  भारत दोनों देशों के बीच एक संतुलन को स्थापित करने में मदद कर सकता है और अपने राष्ट्रीय हित के अनुरूप शांति-स्थिरता के रूप में वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठा सकता है.

आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?

चूंकि भारत इस साल G20 समिट का आयोजनकर्ता और अध्यक्ष है. ऐसे में भारत के पास अपने भू-राजनीतिक हितों और भू-आर्थिक विषयों को बुनने का बड़ा अवसर है. अब तक, भारत को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में माना जाता रहा है जो वैश्विक शक्ति बनने के लिए प्रयासरत है. 2023 में भारत के पास चाबहार बंदरगाह के महत्व को स्पष्ट करने का अवसर है. चाबहार पोर्ट भारत की वैश्विक उपस्थिति का द्वार बन सकता है. भारत खुद को दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रख सकता है और एक विस्तारित पड़ोस (ईरान-अफगानिस्तान) से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है.इससे न केवल व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा में मदद मिलेगी, बल्कि महाशक्ति बनने की दिशा में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है. चाबहार बंदरगाह के सुचारू विकास और दोनों देशों की आर्थिक समृद्धि के लिए, भारत और ईरान के बीच मजबूत द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक संबंधों का होना महत्वपूर्ण है.

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