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नज़र में रहते हो जब नज़र नहीं आते, हैप्पी बर्थ डे 'गुलजार'

गुलजार का आज जन्मदिन है. गुलजार, जिसमें एक शायर अंगड़ाई लेता है. एक कहानीकार जो शिकस्त और आरजुओं की बात करता है. एक फिल्मकार जो रुपहले पर्दे पर जज़्बात की तपिश पेश करता है.

'गुलजार' का आज 89वां जन्मदिन है. गुलजार की शख्सियत इतनी विशाल है कि उसे किसी एक खांचे में समेटना मुश्किल है. सही मायने में गुलजार हुनर का एक इतना बड़ा केनवास हैं कि उसमे रंगों के कई शेड्स दिखाई पड़ते हैं. यही खास बात गुलजार को दूसरों से अलग बनाती है. गुलजार क्या हैं? जन्मदिन के अवसर पर पेश है ये विशेष-

गुलजार का जन्म पाकिस्तान के 'दीना' गांव में 18 अगस्त 1934 को हुआ. गुलजार का मूल नाम 'सम्पूरण सिंह कालरा' है. जहां पर गुलजार पैदा हुए वो इलाका जिला झेलम में आता है. जहां पंजाबी और उर्दू जबान बोली जाती है. दीना के इस गांव में आज भी प्राइमरी स्कूल मौजूद है. जहां पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई. गालिब की शायरी से उर्दू अदब से लगाव हुआ, लेकिन प्यार बंगला भाषा था. आरंभ से ही गुलजार बंगला साहित्य के दीवाने थे.

पार्टीशन के बाद 'दीना' को छोड़कर गुलजार दिल्ली आ गए. जहां गुलजार ने अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण साल गुजारे. इसके बाद वे मुंबई आ गए. मुंबई के वर्ली इलाके में उनका नया ठिकाना बना एक मोटर गैराज.

इस मोटर गैराज में गुलजार एक्सीडेंटल कारों का डेंट निकालते और उन पर पेंट किया करते थे. लेकिन ये उनका पसंदीदा काम नहीं था, उनका मन तो किताबें पढ़ने में लगता था.

इब्ने सफी, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, बंकिम चंद्र चटर्जी हों या फिर रवींद्र नाथ टेगौर, इन सबके वे दीवाने थे. गुलजार को जब भी गैराज के काम से समय मिलता तो नॉबेल पढ़ते. रवींद्र नाथ टेगौर के साहित्य के गुलजार मुरीद थे.

''गुलजार की नॉबल पढ़ने की रफ़्तार इतनी तेज थी कि इन किताबों को किराए पर देने वाला दुकानदार भी घबरा जाता और हाथ जोड़ लेता.''

दिल्ली में कुछ समय बीताने के बाद गुलजार मुंबई आ गए. साहित्य और शायरी की समझ को परिपक्व करने के लिए वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गए. जहां पर उनकी जिंदगी ने अहम मोड़ लिया.

यहां पर उनकी मुलाकात लोकप्रिय गीतकार शैलेंद्र से हुई. शोमैन राज कपूर शैलेंद्र को कविराज कहकर बुलाते थे. शैलेंद्र राज कपूर के सबसे पसंदीदा गीतकार थे. यही कारण था कि राज कपूर के लिए उन्होने कई सुपरहिट गीत लिखे.

सन 1963 की बात है प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक बिमल रॉय एक फिल्म बना रहे थे. जिसका नाम ‘बंदिनी’ था. बिमल रॉय की किसी बात को लेकर गीतकार शैलेंद्र से अनबन हो गई. गुलजार की प्रतिभा को शैलेंद्र ने भांप लिया था.

एक दिन शैलेंद्र ने गुलजार को बिमल रॉय से मिलने के लिए कहा. गुलजार जब बिमल रॉय के ऑफिस पहुंचे तो बिमल राय ने गुलजार को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन जब गीत लिखकर दिया तो वे हतप्रभ रह गए और वे गुलजार की प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि गुलजार से पूछा क्या करते हो, तब गुलजार ने कहा वे मोटर गैराज में काम करते हैं.

इस पर बिमल रॉय ने कहा- ‘वहां जाने की कोई जरुरत नहीं है, गैराज में जाकर अपना समय खराब मत करो.’

बंदिनी में उनका लिखा गीत “मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दइ दे” बेहद मशहूर हुआ. इसके बाद गुलजार ने पीछे मुडकर नहीं देखा. बीते चार दशक से गुलजार की कलम सक्रिय है.

गुलजार के लिखे गीत, गजल, शेर, कहानी और त्रिवेणी में वहीं बांकपन आज भी महसूस होता है, जो ‘बंदिनी’ के गीतों में पहली बार महसूस हुआ था. जमाने के साथ सुर, लय और ताल मिलाते, वे नई पीढ़ी पर छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. कम शब्दों में बात कहनी हो तो गुलजार से बेहतर भला कौन हो सकता है. 

"नजर में रहते हो जब नजर नहीं आते. ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते." पार्टिशन के दर्द को इस तरह से सिर्फ गुलजार ही बयां कर सकते हैं. गुलजार जब बात हिन्दुस्तान की करते हैं तो चंद लाइनों में भूत, वर्तमान और भविष्य आंखों के सामने रख देते हैं और कहते है-

हथेलियों में भरें धूप और उजाला करें, 
उफक पे पांव रखो और चलो अकड़ के,
चलो फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो,
तुम चलो तो हिंदुस्तान चले।

इस तरह की बात वही कह सकता है जिसने इस देश को अपने भीतर जज्ब कर लिया हो. गुलजार का परिचय महज इतना ही नहीं कि वे फिल्मों में लिखते हैं.

उनका एक परिचय ये भी होना चाहिए कि वे हिन्दुस्तान की जबान, तहजीब और अदब की नुमाइंदगी करने वाले इंसान भी हैं. जो अपनी बात को कहने के लिए अलग-अलग मीडियम का प्रयोग करते हैं, और इस अंदाज से करते हैं कि सामने वाला बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता है. जब वे किसी साहित्यकार की कृति का अनुवाद करते हैं तो अलग नजर आते हैं.

गुलजार अपनी बात कहने के लिए जिस भी मीडियम का प्रयोग करें, पढ़ने-सुनने वाले पर उनका तिलिस्म सिर चढ़कर बोलता है. 

उम्र के इस पड़ाव पर भी 'गुलजार', गुलजार हैं. ये उनकी जिंदादिली है. यही इनकी सबसे बड़ी खासियत भी है. वे किसी चुनौतियों से घबराते नहीं हैं, उनकी शायरी या गीत हमेशा एक उम्मीद पेश करती है. गुलजार सिनेमा में उस परंपरा को लेकर चलने वालों की फेहरिस्त में सबसे आगे नजर आते हैं, जिसकी नींव बिमल रॉय ने रखी थी. गुरुदत्त ने इसे उर्वरा शक्ति प्रदान की. शैलेंद्र ने हुस्न बक्शा और ऋषिकेश मुखर्जी ने जिसे अपने हुनर से संवारा.

गुलजार आम बोलचाल के शब्दों से ऐसी तरतीब पेश करते हैं जो सुनने वालों के सालों साल बांधकर रखती है.जैसे-

जंगल जंगल बात चली है पता चला है
जंगल जंगल बात चली है पता चला है
अरे चड्डी पहन के फूल खिला है फूल खिला है

या फिर 

मास्टरजी की आ गयी चिट्ठी
चिट्ठी में से निकली बिल्ली
अरे चिट्ठी में से निकली बिल्ली

इस गीत को देखें

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
वो सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
वो और मेरे इक ख़त मैं लिपटी रात पड़ी है
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है

पतझड़ है कुछ, है ना?

वो पतझड़ मैं कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों मैं एक बार पहन के लौट आयी थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक काँप रही है
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो

एक अकेली छतरी मैं जब आधे आधे भीग रहे थे
एक अकेली छतरी मैं जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गीले, सुखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो

एक सो सोला चाँद की रातें
एक तुम्हारे काँधे का तिल
एक सो सोला चाँद की रातें
एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली महेंदी की खुशबु झूठ मूठ के शिकवे कुछ
झूठ मूठ के वादे सब याद करा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो

एक इजाज़त दे दो बस
जब इसको दफ़नाउन्गी
मैं भी वहीं सो जाउंगी
मैं भी वहीं सो जाउंगी

गुलजार के हिस्से में सर्वाधिक फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का भी रिकॉर्ड है.'स्लमडॉग मिलेनियर' के गीत 'जय हो'को भी गुलजार ने ही लिखा था. इसके लिए संगीतकार ए आर रहमान को ऑस्कर अवॉर्ड भी मिला था.

कोई विधा हो, हर विधा में गुलजार शत प्रतिशत खरे उतरते हैं. फिर चाहें बच्चों के लिए बालगीत ही क्यों न हों. गुलजार ने सृजन की हर विधा को समृद्ध किया है. गुलजार रुपहले पर्दे पर भी कैमरे से कहानी कहने में भी माहिर हैं. परिचय, कोशिश, आंधी, मौसम, अंगूर, इजाजत, लेकिन, माचिस आदि ऐसी फिल्में हैं जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता है.  इसमे दो राय नहीं है कि गुलजार विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं. उनमें प्रतिभा इस कदर भारी हुई कि देखकर अचरज होता कि आखिर एक व्यक्ति में इतनी खूबियां कैसे हो सकती हैं-

इतने बरस से पढ़ रहा हूं
सुन भी रहा हूं
देख भी रहा हूं
कभी चड्डी पहन कर फूल खिलाते हो
तो कभी कतरा-कतरा जिंदगी के मानी बताते हो
तेरी बातों में किमाम की खूशबू है
तेरा आना भी गर्मियों की लू है
क्या हो
रुपहले पर्दे पर,तो कभी आ जाते हो लबों पर
गुनगना लेता हूं तुम्हें
जिगर में बड़ी आग है
पढ़ते-सुनते ये भेजा बहुत शोर करता है
जैसे पडोसी के चूल्हे से आग ले ली हो
एक बात जो उलझ जाती है
हैरान करती है
न कसूर न फितूर
खुदा एक इंसान में इतनी खूबी कैसे भर देता है
जबकि उम्र कब की बरस के सुफेद हो गई
जलन होती है
गुलजार तुमसे
हैप्पी बर्थडे

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