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प्लास्टिक के बोझ तले दबती सभ्यता: प्लास्टिक से मुक्ति की राह मिलेगी?

हमारी पृथ्वी अब तक ज्ञात ब्रह्मांड की सारी रचनाओं में सुन्दरतम कृति है. आज विज्ञान ने पृथ्वी पर मौजूद रचनाओं के साथ छेड़छाड़ कर एक समानांतर दुनिया बनानी शुरू की लेकिन न गंगा सरीखी नदी बना पाया ना एवरेस्ट जैसा विशाल पहाड़. हाँ हमने जहरीले रसायन से भरी हुई नदियों के साथ प्लास्टिक के कचरों का पहाड़ खड़ा जरूर कर लिया. कृत्रिम रंगों के फूलों का तो निर्माण कर लिया लेकिन उनमें सुगंध हो, ऐसा नहीं कर पाये, लेकिन प्लास्टिक के कचरे में सुलगती आग के धुँए से हमने हवा को जरूर प्रदूषित कर दिया. हमने इस धरती के सौन्दर्य में इजाफ़ा तो नहीं किया पर इस धरती के साथ खुद के विध्वंस की कहानी लिखनी शुरु की. पृथ्वी पर जो भी वीभत्स, गंदा, अवांछित है वह हमारे पढ़े-लिखे, सभ्य और आधुनिक समाज की देन है. 

पृथ्वी के इस दर्द को पिछली सदी के साठ के दशक से प्रबुद्ध वर्ग ने समझना शुरू किया. साइलेंट स्प्रिंग और लिमिट टू ग्रोथ जैसे लेखों के बाद लाखों लोग पर्यावरण में हो रही गिरावट का विरोध करने और अधिक पर्यावरण संरक्षण की वकालत करने के लिए सड़कों पर उतर आए. इसकी शुरुवात को 22 अप्रैल 1970 को मान सकते हैं जिसे बाद में इस दिन को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाना शुरु हुआ. जिसका श्रेय पृथ्वी दिवस अमरीकी राजनीतिज्ञ गेलॉर्ड नेल्सन को दिया जा सकता है जो 1969 में बड़े पैमाने पर तेल रिसाव के विनाशकारी प्रभावों को देखने के बाद प्रदूषण के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे.

अपनी शुरुआत के बाद से, पृथ्वी दिवस एक वैश्विक आंदोलन बन गया है, जिसमें 190 से अधिक देश पर्यावरण जागरूकता और संरक्षण की कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न गतिविधियों में हर वर्ष भाग लेते हैं. इसे यूँ कह लो पृथ्वी दिवस आठ अरब लोगों का त्योहार है. एक साथ एक दिन पूरी मानवता का इस धरती की धड़कन को महसूस करना एक लयबद्ध कविता से कम नहीं. प्रत्येक वर्ष, पृथ्वी दिवस एक विशिष्ट थीम के साथ मनाया जाता है जो महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जन-जागरूकता को बढ़ावा देता है.

पृथ्वी दिवस 2024 का विषय "पृथ्वी बनाम प्लास्टिक" है. 1950 के दशक में प्लास्टिक के आगमन के बाद से 8.3 बिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक किसी ना किसी रूप में बन चुका है, जो आज भी परिस्थितिकी तंत्र के किसी न किसी भाग में, समुद्र, झील, खेत, जंगल, हमारे रहवास कहीं न कहीं  बिखरा पड़ा है. यानी इस पृथ्वी पर अभी जिंदा हर आदमी अपने हिस्से एक टन से भी ज्यादा प्लास्टिक का बोझ लिए घूम रहा है. अब तक बनाया गया 79% प्लास्टिक अभी भी लैंडफिल या समुद्र सहित प्रकृति में पड़ा हुआ है (थोड़ी मात्रा को छोड़कर जिसे जला दिया गया है या जिनका पुनर्नवीनीकरण किया गया है).

हाल के वर्षों में वैश्विक डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक का सालाना उपयोग लगभग 460 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुँच गया है अनुमान है कि हमारे महासागरों में प्लास्टिक कचरे का अंबार लगते जा रहा है और 2050 तक समुद्र में मछलियां कम और प्लास्टिक के टुकड़े ज्यादा होंगे. दुनिया में हर साल 26 मिलियन टन से अधिक पॉलीस्टाइनिन (प्लास्टिक फोम) का उत्पादन होता है. मानवता की सभी अन्य पहचान के इतर उसके प्लास्टिक प्रेमी वाली पहचान बलवती होती जा रही है, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में हर मिनट दस लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं, जबकि एक साल में पांच ट्रिलियन प्लास्टिक बैग का उपयोग किया जाता है. अरबों-खरबों की संख्या में प्लास्टिक कचरा हमारे महासागरों, झीलों और नदियों को अवरुद्ध कर रहा है और भूमि पर जमा हो रहा है, जो मानव जीवन ही नही पौधों और वन्यजीवों के लिए जानलेवा है. 

2017 में, पैकेजिंग उत्पादन में प्लास्टिक की मांग अपने चरम तक पहुंच गई थी, जिसमें 146 मिलियन मीट्रिक टन का उपयोग हुआ. हर साल कम से कम 14 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे महासागरों में पहुँच जाता है. कई देशों में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए आज भी बुनियादी ढांचे की कमी है खास कर विकासशील और गरीब देशों में,जैसे:सैनिटरी लैंडफिल; इंसिंरेटर; पुनर्चक्रण या रिसाइक्लिंग की क्षमता आदि. उपयोग के बाद प्लास्टिक जब अकुशल प्रबंधन और अक्षम निपटान के बाद लैंडफिल या मिट्टी या समुद्र में पहुँचता है, तो छोटे-छोटे विषैले कणों में टूट कर माइक्रोप्लेटिक बन मिट्टी, पानी, हवा यहां तक खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं जो प्लास्टिक के बाकी अन्य खतरों में डराने वाले हैं.

जर्मनी में शोधकर्ताओं ने संकेत दिया है कि स्थलीय माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण, समुद्री माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण की तुलना में बहुत अधिक है. विभिन्न रूपों में माइक्रोप्लास्टिक दुनिया की लगभग सभी जल-प्रणालियों में मौजूद हैं, चाहे वे नदी, तालाब, झील या महासागर हों. एक अंदाजा तो ये भी है आकाशगंगा में तारों की तुलना में समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक अधिक है. 

महासागरों में प्लास्टिक कण का बढ़ता अंबार सारी समुद्री परिथितिकी तंत्र का नाश कर रहा है जिसके चपेट में मूंगा चट्टान भी शामिल है. 2018 में, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 159 प्रवाल भित्तियों के सर्वेक्षण से पता चला कि 11.1 बिलियन से अधिक प्लास्टिक कण मूंगों को बर्बाद कर रहे हैं, और यह संख्या 2025 तक 40% तक बढ़ने का अनुमान है. महत्वपूर्ण बात यह है कि मूंगा चट्टान पारिस्थितिकी तंत्र में मछलियों, अकशेरुकी जीवों, पौधों, समुद्री कछुओं, पक्षियों और समुद्री स्तनधारियों की 7000 से अधिक प्रजातियाँ पाई जा सकती हैं.

प्रशांत सहित अन्य महासागर समुद्र में फेंके जा रहे प्लास्टिक का अंबार बनता जा रहा है जिसे समुद्री लैंडफिल भी कह सकते है, जिसमें सबसे विशाल प्रशांत सागर का ग्रेट पैसिफ़िक गारबेज पैच है, जिसपे अब जानवर कब्जा जमा रहे है, जिसका अर्थ है कि वे प्लास्टिक कचरे का उपभोग कर रहे हैं और पहले से निर्जन क्षेत्रों में भी रह है जो प्राकृतिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे की घंटी हैं. खाद्य श्रृंखला के सबसे निचले स्तर के जीव माइक्रोप्लास्टिक खाते हैं, और कई स्तरों से होते हुए सी फूड के रूप वही प्लास्टिक सिंथेटिक फाइबर, माइक्रोफाइबर समुद्र तट पर रहने वाली 85% आबादी तक पहुँच जा रही है. वहीं समुद्री नमक के रास्ते समुद्री में जमा होता माइक्रोप्लास्टिक घर-घर तक पहुंच रहा है. पानी के रास्ते से अलग माइक्रोप्लास्टिक गाड़ी के टायरों और सड़क के बीच घर्षण से बनती है वहाँ से हवा, पानी, मिट्टी के रास्ते हम तक बड़ी मात्रा में पहुंच रही है. एक अंदाज के मुताबिक कार के टायर हर 100 किलोमीटर पर 20 ग्राम प्लास्टिक धूल छोड़ते हैं. 

प्लास्टिक पारिस्थितिकी के अलावा मानव स्वास्थ्य को कई स्तरों पर प्रभावित कर रहे हैं और इसके दुष्परिणाम रोज-रोज नए-नए रूप में सामने आ रहे हैं. यह मुख्य रूप से मानव शरीर के सबसे संवेदनशील अंतःस्रावी तंत्र यानी हार्मोन के उत्पादन और उसके प्रभाव तंत्र को बर्बाद कर रहा है, जिसका अर्थ है कि यह अंतःस्रावी गतिविधि को कम या बढ़ा रहा है. इस प्रकार आज जब प्लास्टिक ने यत्र-तत्र-सर्वत्र अपना स्थान स्थापित कर लिया है फिर इस बीमार धरती को स्वस्थ कर पाना बीतते समय के साथ और भी कठिन होता जा रहा है. 

अब हमें अपनी आदतों में बदलाव की जरुरत है, प्लास्टिक के विकल्प खोजने के साथ ही साथ हमें प्लास्टिक के उपयोग की जो प्रवृति बढ़ी है हमें उस प्रवृति और सोच को बदलने की जरूरत है. हमें यह समझना होगा यह प्लास्टिक युग हमारी त्रासदी है. अपनी चाल में हमने अपनी धरती की चाल और लय को भुला दिया है. अपने स्वार्थों के लिए और विकास के नाम पर हम जिस तरह अपनी प्रकृति का दोहन कर रहे हैं, जिस वजह से हम  अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुजर रहे हैं. हम अपने बाद प्लास्टिक प्रदूषित, बंजर, धरती छोड़कर जाना चाहेंगे जहां हमारे बच्चें बिना प्लास्टिक के पानी और ताजी हवा के एक झोंके के लिए भी तरस जाएं. कैंसर जैसी बीमारी लाखों लोगों की रोज़ जान लेती रहे. आज छात्रों, अभिभावकों, व्यवसायियों, यूनियनों, व्यक्तियों और गैर सरकारी संगठनों को मानव और ग्रह स्वास्थ्य की खातिर प्लास्टिक के अंत का आह्वान करने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता की जरुरत है, 2040 तक प्लास्टिक और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्लास्टिक मुक्त भविष्य का निर्माण एक अंतिम लक्ष्य और विकल्प है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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