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भारतीय भाषाओं के बारे में क्या कहते हैं राजनीतिक दल और कहां पहुंची है हिन्दी

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए देश के राजनीतिक दलों ने जो घोषणा पत्र जारी किए हैं, उनमें भारतीय भाषाओं से संबंधित नीतियां स्पष्ट नहीं है. घोषणा पत्रों में भारतीय भाषाएं चुनाव में हाशिए के मुद्दे के रुप में प्रदर्शित की गई हैं. भारतीय जनता पार्टी ने 'मोदी 2024' के लिए घोषणा पत्र के रुप में 'मोदी की गारंटी संकल्प पत्र' जारी किया है. इस संकल्प पत्र में भारत की ग्लोबल सॉफ्ट पॉवर बढाएंगे शीर्षक के अंतर्गत ये दावा किया गया है कि भारत के प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों में शास्त्रीय भारतीय भाषाओं के अध्ययन की व्यवस्था करेंगे.

इसके अलावा भाषाई अल्पसंख्यकों और जन जातीय भाषाओं के विकास के बारे में उस शीर्षक के तहत चर्चा की गई. जहां उन्हें एक जातीय व धार्मिक समूह चिह्नित किया गया है, जबकि भाषाएं भौगोलिक सीमाओं में तो हो सकती है, लेकिन उन्हें जातीय व धार्मिक नहीं माना जाता है.

भारतीय जनता पार्टी का भाषाओं को लेकर जो नजरिया संकल्प पत्र में प्रस्तुत किया गया है, वो 2019 के घोषणा पत्र में प्रस्तुत नजरिए से भिन्न है. 2019 के घोषणा पत्र में राम मंदिर, सबरी माला, नमामि गंगे आदि के बीच सांस्कृतिक विरासत शीर्षक के अंतर्गत भारतीय भाषाओं के बारे में नजरिया प्रस्तुत किया गया है. ये उल्लेख किया गया है कि “हम भारत की लिखी और बोली जाने वाली सभी भाषाओं तथा बोलियों की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यबल का गठन करेंगे. भारतीय भाषाओं और बोलियों के पुनरुद्धार और संवर्धन के लिए हर संभव प्रयास करेंगे". 

केन्द्रीय संस्थानों से भारतीय भाषाओं की बेदखली

ऐसा कहा गया कि इसके साथ संस्कृत भाषा पर विशेष ध्यान देते हुए हम ये सुनिश्चित करेंगे कि स्कूली स्तर पर संस्कृत की शिक्षा का विस्तार हो. इसके अलावा संस्कृत में अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु शोधार्थियों और विद्वानों के लिए 100 पाणिनि फ़ेलोशिप की शुरुआत करेंगे. भारतीय भाषा समूह ने एक अध्ययन में बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय की आधिकारिक वेबसाइट सर्वप्रथम हिन्दी और अंग्रेजी में शुरू की गई जिसमें मई 2016 में और भाषाएं जोड़ी गई.

2017 के आखिर दिनों तक अंग्रेजी हिन्दी के अलावा सबसे बड़ी नौ बड़ी भारतीय भाषाओं का इस्तेमाल करने का दावा प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर करने का दावा किया गया. इसका अर्थ ये भी निकाला जा सकता है कि इस वक्त तक केवल नौ भाषाओं को जानने वाले प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क बना सकते थे.

भारतीय संविधान में 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता दी गई, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच साल 2018 में वर्ष असमिया और मणिपुरी भाषा को भी इसमें शामिल किया गया. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में उर्दू भाषी आबादी 5 करोड़ है, लेकिन उसे वर्ष 2024 में 21 और 22 जनवरी को शामिल किया गया. प्रधानमंत्री कार्यालय का संपर्क बोड़ो, जोगरी, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, नेपाली, संस्कृत, संथाली और सिंधी से नहीं बन सका.

वेबसाइट की भाषा से भी हिंदी गायब 

प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट की भाषा नीति अन्य अधिकारिक वेबसाइटों की भाषा नीति के रुप में मार्ग दर्शन करती रही है. हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा बड़ी 10 भाषाओं का ही इस्तेमाल करने का दावा करती है. माई जीओवी डॉट इन  Mygov.in और विकसित भारत viksit bharat के उदाहरण देखें जो सकते हैं. भाषिनी एप ने 12 भाषाओं को ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस विकसित करने के लिए चुना है.

सुप्रीम कोर्ट भी अपने कुछ फैसलों और आदेशों को 10 भाषाओं में ही देने का नीतिगत निर्णय किया है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने संपादकों, अनुवादकों, टाइपिस्ट और प्रूफ रीडर्स के अस्थायी पदों पर नियुक्तियों के लिए 13 भाषाओं को जानने वालों से ही आवेदन मांगे है. सैन्य दलों, बैंकों, रेलवे आदि में नियुक्तियों के लिए अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित परीक्षाओं के लिए भी 12 से 15 भाषाओं का चयन किया जा रहा है.

लोकसभा सचिवालय ने संविधान की भाषा सूची में उल्लेखित भाषाओं में सबसे ज्यादा 21 भाषाओं में ठेके पर इंटरप्रेटर( दुभाषिया) रखने के लिए 21 भाषाओं का चयन किया और बड़ी राशि खर्च कर प्रशिक्षण के कार्यक्रम आयोजित किया. लेकिन उन दस भाषाओं में ही सेवाएं शुरू की, जिन भाषाओं में प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट मार्गदर्शन करती है. 

देखने में हिंदी लेकिन अंग्रेजी के नाम से काम 

गौरतलब है कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद सरकार के कार्यक्रमों के नामकरण के लिए एक नई संस्कृति विकसित की गई. मसलन अमृत योजना के रुप में प्रचारित योजना का असल नाम अफॉर्डबल मेडिसिन एंड रिलायवल इम्प्लांट्स फॉर ट्रीटमेंट हैं. कुसुम, पहल, उदय, स्वयं, संकल्प, प्रगति, सेहत, उस्ताद, सम्पदा और हृदय सब नाम अंग्रेजी के हैं.  ये सभी अंग्रेजी के पूरे नाम के संक्षिप्त नाम है जो कि उनके देवनागरी में लिखने की वजह से हिन्दी के शब्द होने का भ्रम पैदा करते हैं.

योजना आयोग के बदले हुए नाम के साथ जो नीति शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, वो हिन्दी में बरते जाने वाली नीति नहीं है. ये नीति अंग्रेजी के नामकरण एन आई टी आई से बनाया गया है. योजना आयोग का परिवर्तित नाम नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया है. लेकिन रोमन में जब इन चार शब्दों के पहले अक्षर (एनआईटीआई) लिखते है तो उसे हिन्दी में नीति पढ़ा जा सकता है. जबकि हिन्दी में योजना आयोग का नया नाम राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था हैं.

इसी तरह सरकार ने लोगों को किसी तरह के भुगतान के लिए एक ऐप का इस्तेमाल करने की सुविधा देने का दावा किया. सरकार ने उस ऐप को भीम नाम दिया. लोगों में ये भ्रम पैदा हुआ कि इस ऐप का नामकरण संस्कार डॅा. भीम राव अम्बेडकर के नाम से किया गया है, लेकिन देवनागरी में लिखे इस भीम के अक्षर अंग्रेजी के है. ये अक्षर बी एच आई एम है और इन अक्षरों का पूरा नाम भारत इंटरफेस फॉर मनी है. नामकरण का राजनीतिक इस्तेमाल करने के इरादे एक नई राजनीतिक संस्कृति के रुप में विकसित हुई है. इसीलिए बी एच आई एम को मिलाकर ऐप का नाम भीम के रुप में प्रचारित किया गया.

सीपीएम की घोषणा में भाषा पर चर्चा 

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम ने अपने घोषणा पत्र में लिखा है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भारतीय भाषाओं को सामान स्तर पर मजबूत करने की पक्षधर और हिन्दी के थोपे जाने की नीति के खिलाफ है. कांग्रेस ने घोषणा पत्र में हिस्सेदारी न्याय शीर्षक के अंतर्गत संविधान की आठवीं अनुसूची में और भाषाओं को शामिल करने का आश्वासन दिया है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई ने सभी भाषाओं को समान रुप से संरक्षित करने, उन्हें विकसित करने की नीति पर जोर दिया है. इसके साथ सीपीआई ने आदिवासी भाषाओं और लिपियों को विकसित करने के लिए अलग से जोर दिया है. सीपीआई के घोषणा पत्र में यह भी काबिले गौर है कि उसने मणिपुरी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का आश्वासन दिया है.   

भारतीय भाषाओं की  स्थिति कमजोर 

भारतीय भाषा समूह का ये मानना है कि भारतीय भाषाएं अपने हितों को साझी लड़ाई से ही सुरक्षित रह सकती हैं. भारत में भारतीय भाषाओं के बीच आपस में जितनी ज्यादा आवाजाही होगी, देश के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को समानता के संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में उतनी ही मदद मिलेगी. विदित है भारतीय भाषाओं के प्रतिनिधियों ने वर्ष 2017 में नई दिल्ली में अपनी भाषाओं के हितों में सामूहिक आवाज उठाने के लिए भारतीय भाषा समूह यानी इंडियन लैंग्यूज ग्रुप का गठन किया था.

भारतीय भाषा समूह ने अपनी इस बैठक में यह आकलन प्रस्तुत किया था कि 1947 के बाद सत्ता के केन्द्र दिल्ली में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से भारतीय भाषाओं की जो उपस्थिति सुनिश्चित की गई थी, वे भाषाएं कैसे बेदखल की जा रही है. इनमें आकाशवाणी, संसद आदि संस्थानों में भारतीय भाषाओं की कमजोर होती स्थिति पर रोशनी डाली गई थी. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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