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उत्तराखंड: आखिर और कितनी मासूम अंकिता भंडारी बनेंगी ऐसी हवस का शिकार?

साल 1985 में  एक फिल्म आई थी- "राम तेरी गंगा मैली"...उस जमाने के मशहूर अभिनेता राज कपूर ने उसका निर्देशन किया था और उसके मुख्य किरदार मंदाकिनी और उनके पुत्र राजीव कपूर थे. वह राज कपूर की आखिरी फिल्म थी, लेकिन 1985 में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली इकलौती हिन्दी फिल्म थी. उसकी अधिकांश शूटिंग ऋषिकेश में गंगा के किनारे हुई थी. फिल्म के एक दृश्य में पारदर्शी साड़ी पहनी मंदाकिनी के स्नान करने और स्तनपान कराने के लिए वो फ़िल्म विवादों में भी रही थी. उसी फ़िल्म का मुख्य गीत था- "राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते-धोते!" संयोग देखिये कि 37 बरस बाद वही सच होता हुआ देश ने भी देख लिया.

देवभूमि कहलाने वाले उत्तराखंड में राजनीतिक रसूख रखने वाले पिता के एक बिगड़ैल बेटे ने अपनी हवस की भूख मिटाने के लिये जिस करतूत को अंजाम दिया है, उसने इस पहाड़ी प्रदेश की सभ्यता,संस्कृति आतिथ्य संस्कार की बरसों पुरानी परंपरा पर ऐसा दाग़ लगा दिया है, जिसे धोने में सालों लग जाएंगे. अपना करियर बनाने की चाहत में गांव से निकलकर डेढ़ सौ किलोमीटर दूर आकर ऋषिकेश के पास रिजॉर्ट में नौकरी करने वाली अंकिता भंडारी की निर्मम हत्या ने पूरे समाज को तो आक्रोशित कर दिया है, लेकिन इसके दूसरे पहलू पर गौर करेंगे, तो समझ जाएंगे कि इस हत्याकांड के बाद अपनी उम्मीदों को पूरा करने का सपना देखने वाली कोई भी युवती प्रदेश के बड़े शहरों में आकर नौकरी करने से डरेगी. इस एक वारदात ने लड़कियों-महिलाओं के लिये पूरे उत्तराखंड को असुरक्षित राज्य बनाकर रख दिया है.

उत्तराखंड की इकोनॉमी के सबसे बड़े स्रोत में वहां का पर्यटन भी शामिल है. हालांकि रिजॉर्ट मालिक पुलकित आर्य और उसके मैनेजर के तमाम दबाव व धमकी के बावजूद जिस्मफरोशी से इनकार करने वाली निडर अंकिता भंडारी की हत्या के तीनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. हैरानी ये है कि इसे लेकर प्रदेश सरकार के कुछ मंत्रियों के ऐसे बयान सामने आये हैं, मानो उन्होंने बहुत बड़ा किला फ़तह कर लिया हो. पर, सरकार के आला हुक्मरान में थोड़ी-सी भी गैरत बाकी हो, तो उन्हें इस घिनौनी व निर्मम वारदात पर शर्मिंदगी ज़ाहिर करते हुए उत्तराखंड की जनता से माफ़ी मांगनी चाहिये कि वे एक मासूम बेटी की जान नहीं बचा पाये.

ये खौफनाक घटना सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशी मीडिया में भी सुर्खी बनी है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसने एक काला दाग तो लगा ही दिया लेकिन आने वाले दिनों में उत्तराखंड को इसका बड़ा नुकसान ये झेलना पड़ेगा कि अब विदेशी पर्यटक यहां आने से बचेंगे, खासकर महिलाएं. वैसे भी भारत में आने वाले  विदेशी पर्यटक अपनी यात्रा शुरु करने से पहले ही ये पता लगा लेते हैं कि यहां का कौन-सा राज्य कानून-व्यवस्था के लिहाज से ज्यादा सुरक्षित है,जहां जाना उनके लिए महफ़ूज़ रहेगा. अब उनकी लिस्ट में एक नया नाम जुड़ गया नाम-उत्तराखंड.

अंकिता भंडारी की हत्या ने एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल खड़ा कर दिया है, जिस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार कितना गौर करेगी या नहीं, हम नहीं जानते. लेकिन इस पर केंद्र की मोदी सरकार को गंभीरता से लेना चाहिये, जिसने सबसे पहले ये स्लोगन दिया था- "बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ." सवाल ये है कि ऋषिकेश के एक होटल की इस घटना ने तो सबका ध्यान खींचा लिया लेकिन पूरे उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों मसलन, नैनीताल, मसूरी, देहरादून में ऐसे कितने होटल हैं, जहां ऐसी न जाने कितनी युवतियां रिसेप्शनिस्ट की नौकरी कर रही हैं और अपनी मजबूरी के चलते मालिकों के हर तरह का शोषण झेलने पर मजबूर हैं. 

आज तक बनी किसी भी सरकार ने क्या अभी तक ये ब्यौरा इकट्ठा करने की जहमत उठाई कि कितने होटलों-रिजॉर्ट में लड़कियां-महिलाएं नौकरी कर रही हैं, जिनका निजी रिकॉर्ड पुलिस-प्रशासन के पास मौजूद हो. अगर ये सिस्टम बना होता, तो पुलकित आर्य जैसा रसूखदार, बिगड़ैल बेटा भी अंकिता की हत्या करने से पहले दस बार सोचता. इस हत्याकांड में एक और अहम सवाल ये भी उठता है कि आखिर इस घटना के बाद पुलिस-प्रशासन को उस रिजॉर्ट पर बुलडोज़र चलाने की इतनी जल्दी भी क्या थी. खासकर, उस कमरे को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया, जहां अंकिता रहा करती थी जो होटल प्रबंधन ने ही उसे दे रखा था. अंकिता के परिजन अगर इसे सबूत मिटाने की सोची-समझी साजिश कह रहे हैं,तो उनकी आशंका को भला गलत कैसे ठहराया जा सकता है? प्रशासन का तर्क है कि इस रिजॉर्ट में अवैध निर्माण किया गया था, इसलिये तोड़ा गया. तो इसके बनने से लेकर अब तक पुलिस-प्रशासन के अधिकारी कौन-सी उम्दा किस्म वाली अफ़ीम की गोली खाकर सोए हुए थे कि उन्हें अंकिता की हत्या के बाद ही होश आया कि यहां तो अवैध निर्माण हुआ पड़ा है?

बाकी पूरा प्रदेश छोड़ दीजिए, ऋषिकेश के साथ ही सिर्फ नैनीताल व मसूरी के तमाम होटलों-रिजॉर्ट की ईमानदारी से जांच कराने की हिम्मत अगर सरकार जुटा ले,तो उसे पता लग जायेगा कि हरेक के पीछे बिल्डर माफ़िया को शह देने वाला और उसे बचाने वाला नेता किस पार्टी से ताल्लुक रखता है. इसलिये कि बहुतेरे नेताओं ने इन होटलों में पैसा तो खुद का निवेश कर रखा है लेकिन कागजों पर किसी बिल्डर का ही नाम है. सरकार बेशक न करवाये ऐसी जांच, तो फिर इसके लिए भी तैयार रहे कि कब कोई ऐसी दूसरी अंकिता भंडारी उसकी सोई हुई आत्मा को झिंझोड़ते हुए उसे सरे राह लाकर खड़ा कर देगी!

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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