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UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
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29
TMC
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INDIA
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INDIA
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GUJARAT (26)
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INDIA
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(Source: ECI / CVoter)
BLOG: सर्जिकल स्ट्राइक से चुनावी लाभ
यहां हम गर्व से कह सकते हैं कि भारतीय सेना के शानदार कारनामे से पाकिस्तान की सेना अभी तक उभर नहीं सकी है, वहां की सेना और सरकार ने अभी तक नहीं सर्जिकल स्ट्राइक होने को नहीं स्वीकारा है. वहां की सेना और आतंकवादी इसका बदला लेने के लिए तरस रहे हैं लेकिन एक साल में भारत पर एक भी बड़ा आतंकवादी हमला करने में कामयाब नहीं हुए हैं.
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल बाद भी इसके नफा-नुकसान पर बहस जारी है. सर्जिकल स्ट्राइक के पक्ष के लोग कहते हैं कि भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर करार जवाब दिया है. स्ट्राइक से पहले के एक साल में 100 आतंकवादी मारे गये थे और उसके एक साल बाद 178 आतंकवादियों को मारने में भारतीय सेना ने सफलता पाई है. उधर स्ट्राइक का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सीमा पर या सीमा के अंदर आतंकवाद को रोका नहीं जा सका है. स्ट्राइक से पहले के नौ महीनों में भारत के 38 सैनिक आंतकवादी हमलों में घाटी में शहीद हुए थे लेकिन स्ट्राइक के एक साल बाद उनका आंकड़ा बढ़ कर 69 हो गया है.
सवाल उठता है कि सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता और असफलता को हम शहीद सैनिक बनाम आतंकवादियों की मौत के आंकड़े से तौल सकते हैं या इसके गहरे अर्थ निहित हैं. वैसे कहने को तो लोग यहां तक कह रहे हैं कि मोदी सरकार से पहले भी भारतीय सेना सीमा पार जाकर हमले करती रही थी, लेकिन तब की सरकारें उसकी उस तरह नुमायश नहीं करती थी जैसा कि मोदी सरकार कर रही है. हालांकि भारतीय सेना ऑफ द रिकार्ड तो यही कहती रही है कि दुश्मन को टार्गेट बनाकर बाकायदा योजना बनाकर पहली बार इस तरह का हमला किया गया और उसमें शत प्रतिशत सफलता भी हासिल की गयी लिहाजा इसे सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा सकता है.
वैसे दिलचस्प तथ्य है कि इस हमले के एक साल भी हमें यह नहीं पता कि भारतीय सैनिक पाकिस्तान सेना के कितने जवानों और कितने आतंकवादियों को मार कर आए. सेना का कहना है यह आंकड़ा जरुरी नहीं है. जरुरी यह था कि भारत का एक भी सैनिक वहां छूटना नहीं चाहिए था और ऐसा हुआ भी. हम सेना के कथन पर यकीन करते हुए इस बहस को तो विराम देते हैं लेकिन यह सवाल तो हमेशा उठता ही रहेगा कि आखिर सर्जिकल स्ट्राइक से हम पाकिस्तान की सरकार, वहां की सेना और आंतकवाद को पनाह देने वाली आईएसआई को कितने दबाव में डालने में कामयाब हुए.
यहां हम गर्व से कह सकते हैं कि भारतीय सेना के शानदार कारनामे से पाकिस्तान की सेना अभी तक उभर नहीं सकी है, वहां की सेना और सरकार ने अभी तक नहीं सर्जिकल स्ट्राइक होने को नहीं स्वीकारा है. वहां की सेना और आतंकवादी इसका बदला लेने के लिए तरस रहे हैं लेकिन एक साल में भारत पर एक भी बड़ा आतंकवादी हमला करने में कामयाब नहीं हुए हैं. घाटी में भी उनकी गतिविधियों में कुछ हद तक कमी देखी जा सकती है. पत्थरबाजी के पीछे उनकी तरफ से मिलने वाले पैसों का खुलासा हुआ है. अलगाववादियों के चेहरे बेनकाब हुए हैं. भारतीय सेना ने चुन चुन कर घाटी में छुपे आतंकवादियों को मार गिराना शुरु का है. लश्कर से लेकर अन्य संगठनों के स्थानीय सरगना मारे गये हैं. सबसे बड़ी बात कि इस एक साल में सेना पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का कोई गंभीर आरोप नहीं लगा है.
लेकिन क्या इतने भर से हमें खुश हो जाना चाहिए. पाकिस्तान अभी भी सीमा पार से आतंकवादी भेज रहा है. अभी भी वहां लांचिग पैड बने हुए हैं जहां से आतंकवाद घाटी में घुसने के मौके देख रहे हैं, पाकिस्तान ने एक साल में 450 से ज्यादा बार सीजफायर का उल्लंघन किया है, एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर फायरिंग कर बेगुनाह भारतीयों को मारा है, घाटी के अंदर सेना को प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, यहां तकि सेना को एक कश्मीरी नागरिक को अपनी जीप के आगे बांध कर ले जाना पड़ा ताकि कुछ नागरिकों की जान बचाई जा सके, भारत को लेकर पाकिस्तान की नीति में कोई फर्क नहीं आया है यहां तक कि चीन भी आतंकवाद के मुददे पर पाकिस्तान का साथ देने लगा है. भारत और कश्मीर के बीच बातचीत बंद है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम पाकिस्तान को नीचा दिखाने में कामयाब हुए हैं लेकिन सीमा पर तनाव कम नहीं कर पाए हैं. सच्ची बात तो यह है कि भारत से ज्यादा नये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान पर दबाव डालने में ज्यादा कामयाब हुए हैं.
कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर केन्द्र सरकार की दश्कों पुरानी नीतियों को बदलने से मोदी सरकार को चुनावों में कहीं राजनीतिक फायदा जरुर हुआ हो लेकिन घाटी में घमासान वैसा ही मचा हुआ है. यहां तर्क दिया जा सकता है कि नई नीति के क्रियान्वयन के लिए मोदी सरकार को वक्त दिया जाना चाहिए. आखिर दश्कों तक चली नीतियों से भी कहां पाकिस्तान को हम थामने में कामयाब हो सके थे और घाटी में अलगाववादियों को सरकारी सब्सिडी से हम घाटी में जबरन शांति खरीद रहे थे. जब सात साल अटलबिहारी वाजपेयी और दस साल हमनें मनमोहनसिंह सरकार को दे दिये तो मोदी सरकार की कश्मीर नीति को तीन साल में खारिज नहीं किया जा सकता. अलबत्ता नीति में हो रहे यू टर्न जरुर चिंतित करते हैं कि आखिर हमारे पास क्या कोई नीति है भी या हम हवा हवाई ज्यादा हो रहे हैं.
अंत में, कहा जाता है कि सत्तारुढ़ दल अपने राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए कई तरह की योजनाएं बनाते हैं. वैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश में सैनिक कार्रवाई की आड़ में अगर राजनीतिक हित भी सध रहे हों और सेना का मनोबल भी बढ़ रहा हो तो उससे बड़ी कोई दूसरी कामयाबी नहीं हो सकती. इस नजरिए से देखा जाए तो सर्जिकल स्ट्राइक को दस में से बीस नंबर दिये जा सकते हैं. घाटी में एक जगह स्ट्राइक होती है और पूरे भारत में मोदी के नाम का डंका बजता है. देशभक्ति का ज्वार पैदा किया जाता है. इससे मूल मुद्दे हाशिए पर रखने में आसानी होती है. विपक्ष को बैकफुट पर लाया जाता है. पंचायत हो या नगर निगम नगर पालिका या फिर विधानसभा सत्तारुढ़ दल चुनाव जीत लेता है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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शशि शेखर, स्वतंत्र पत्रकारJournalist
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