एक्सप्लोरर

BLOG: लड़कियों को लड़कियां होना हम बचपन से ही सिखाते हैं

बेटे को रोटी बनाने के लिए हम खुद प्रेरित नहीं करते. क्योंकि परिवार में रोटी बनाने का काम मम्मी करती है, पापा नहीं. कपड़े मम्मी धोती है, पापा नहीं. घर साफ मम्मी करती है, पापा नहीं.

लड़कियों का सम पर आना आसान नहीं. क्योंकि बचपन से ही उन्हें उनकी जगह दिखा दी जाती है. हाल ही में एक स्टडी रिपोर्ट पढ़ी तो यह ख्याल आना स्वाभाविक है. डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर के बच्चों के दिमाग में 10 साल से भी कम उम्र में जेंडर स्टीरियोटाइप्स भर दिए जाते हैं. मतलब नन्ही सी उम्र में ही हम लड़कों को लड़का होना, और लड़कियों को लड़कियां होना सिखा देते हैं. वैसे यह स्टडी हुई तो डिप्रेशन, सुसाइड, हिंसा और एचआईवी पर, लेकिन निष्कर्ष एकदम सटीक निकले.

स्टडी का नाम ग्लोबल अर्ली एडोलेसेंट स्टडी था और उसमें कहा गया कि हम अरबों रुपए टीनएजर्स को लड़का-लड़की की बराबरी का पाठ पढ़ाने में खर्च कर देते हैं, जबकि यह भेद तो बच्चे 10 साल की उम्र से पहले से करना शुरू कर देते हैं. इनकी शुरुआत कौन करता है. बेशक हम खुद. जब छोटे लड़के नेलपॉलिश और बिंदी लगाते हैं तो हम उन्हें लताड़ते हैं. लड़कियां बंदूक या कारें उठाती हैं, तो हम खुद उनके लिए गुड़िया और गुड़िया घर ले आते हैं. लड़कियों के पिंक कपड़े चुनते हैं, लड़कों के लिए नहीं. उन्हें ‘मैस्कुलिन’ रंग दिए जाते हैं. पिंक रंग लड़कियों से जोड़ते हैं तभी यौन आजादी और नो मतलब नो- ये सिखाने वाली फिल्म का नाम भी पिंक ही रख देते हैं. यह स्टीरियोटाइप हमारे खुद के बनाए हुए हैं. मर्जी हो तो इंटरनेट की दुनिया खंगाल कर देख लीजिए.

नन्हीं लड़कियों के ऑनलाइन गेम्स के टिपिकल विजुअल्स और बैंकग्राउंड्स पिंक रंग से भरे पड़े हैं. गेम्स ज्यादातर मेकअप, ड्रेसिंग से जुड़े हुए हैं. एक मशहूर महिला पत्रिका ने जब पांच टॉप ऑनलाइन गेम्स की साइट्स देखीं तो सभी के विषय औरतों की परंपरागत भूमिकाओं को ही पोषित करते थे. यानी, बच्चियां तुम जानों कि तुम्हारा भविष्य क्या है. यही बात हमारी टेक्स्ट बुक्स भी सिखाती हैं. एक्शनएड की एक फ्रेंच इंटर्न ने इस साल एनसीईआरटी की किताबों पर एक अध्ययन किया तो पाया कि हम कक्षा दो से ही बच्चों को लड़के लड़की के कथित खांचों में बंद करने लगते हैं. अध्ययन में कक्षा दो की ही किताबों में अधिकतर पुरुष हेड ऑफ द फैमिली थे, जबकि औरतें घरेलू काम करने वाली, बच्चों की देखभाल करने वाली. पेशेवर औरतों को भी नर्स-डॉक्टर या टीचर के ही रोल में दिखाया गया है. इसी बीच हमें बच्चों की वह कविता याद आती है- पापा का पैसा गोल, मम्मी की रोटी गोल-गोल. रोटी गोल तो सिर्फ औरत की ही होगी- एक लोकप्रिय आइस्क्रीम ब्रांड के विज्ञापन में मां हंसकर सबका मुंह इसलिए मीठा करा रही है क्योंकि बेटी ने पहली बार गोल रोटी बनाई है. बेटा खींसे निपोर रहा है, बेटी गोल रोटी बनाकर उछल रही है.

बेटे को रोटी बनाने के लिए हम खुद प्रेरित नहीं करते. क्योंकि परिवार में रोटी बनाने का काम मम्मी करती है, पापा नहीं. कपड़े मम्मी धोती है, पापा नहीं. घर साफ मम्मी करती है, पापा नहीं. पापा तो घर में बिजली की ट्यूबलाइट ठीक करते हैं. टीवी ठीक करते हैं. अपनी कारें-मोटर साइकिल धोते हैं. टैक्स रिटर्न जमा करते हैं. इनवेस्टमेंट प्लान करते हैं. इसीलिए सिर्फ यह कहकर लड़कों-लड़कियों को स्टीरियोटाइप से नहीं रोका जा सकता कि लड़कियां वह हर काम कर सकती हैं, जो लड़के. क्योंकि हम खुद उनके लिए अपनी भूमिकाएं नहीं बदलते.

दरअसल पितृसत्ता एक व्यवस्था है, एक विचारधारा नहीं. इसे तोड़ने के बारे में हम खुद नहीं सोचते. इसे समाज विज्ञान, इतिहास, साहित्य, संस्कृति, और सबसे खास विज्ञान के जरिए पुष्ट किया गया है. पीछे ब्रिटिश जर्नलिस्ट एंजेला सैनी की एक किताब आई है इनफीरियर- हाउ साइंस गॉट विमेन रॉन्ग, जो विज्ञान के कई दावों को विज्ञान के ही जरिए खारिज करती है. किताब महिला जीव विज्ञानियों के हवाले से बताती है कि कई वैज्ञानिक निष्कर्ष पुरुष विज्ञानियों के अपने  स्टीरियोटाइप के कारण निकाले गए. मतलब लड़कियों और लड़कों के दिमाग में ऐसा कोई बायोलॉजिकल फर्क नहीं होता जो समाज में उनकी भूमिकाओं को तय करता है. दिमाग से लड़की भी नैचुरल हंटर हो सकती है, और लड़का नैचुरल होममेकर.

हां, लड़कों और लड़कियों में जेंडर स्टीरियोटाइप भरकर हम उनका नुकसान करते हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट जो अलार्म बजाती है, वह यह है कि इससे हम लड़कियों को कमजोर बनाते हैं. हम उन्हें सिखाते हैं कि शरीर तुम्हारा मुख्य एसेट है. उसे बचाना जरूरी है. इस तरह लड़कियां पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर होती हैं. उनके शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार होने की स्थितियां बनती हैं. उनके बाल विवाह, जल्दी मां बनने, एचआईवी और दूसरे यौन संक्रमणों का शिकार होने की आशंका होती है. लड़के भी इसका शिकार होते हैं. हम उन्हें भावुक नहीं बनाते तो वे समाज में लड़कियों की इज्जत नहीं कर पाते. अक्सर हिंसक बनते हैं, नशे का शिकार होते हैं और कई बार आत्महत्या को विवश होते हैं.

कुल मिलाकर समाज लड़कियों और लड़कों के बीच बचपन से भेदभाव करके, असल में उनका ही नुकसान करता है. इसे रोकने के लिए जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को ही बदला जाए. सायास तरीके से. इसके लिए इतिहास से लेकर गणित, साहित्य से लेकर विज्ञान, सभी को बदलना होगा. ताकि भूली बिसरी औरतों को याद किया जा सके. बच्चों को शुरुआत से ही बताना होगा कि औरतों को किस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. ऐसा क्यों है कि उनके योगदान को लगातार नकारा जाता है. जाहिर सी बात है, जिन लोगों ने संसाधन और सत्ता को अपने हाथ में रखा है, उनके बरक्स खड़ा होना आसान नहीं. इसीलिए सांस्कृतिक तरीके से लड़कियों का सशक्तिकरण करना होगा. यह मानना होगा कि कुछ करती हुई लड़कियां हमें चुभे नहीं.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

PM Modi Muscat Visit: 'ऐसा लगा कि भगवान के हो गए दर्शन', ओमान में पीएम मोदी से मिलकर किसने कहा ये
'ऐसा लगा कि भगवान के हो गए दर्शन', ओमान में पीएम मोदी से मिलकर किसने कहा ये
'लखनऊ में AQI को लेकर फैल रहा भ्रम, असल हालात इतने खराब नहीं', UP सरकार की अपील- प्राइवेट ऐप पर ध्यान न दें
'लखनऊ में AQI को लेकर फैल रहा भ्रम, असल हालात इतने खराब नहीं', UP सरकार की अपील- प्राइवेट ऐप पर ध्यान न दें
नीतीश कुमार ने हटाया मुस्लिम महिला का हिजाब तो भड़के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद, कहा- 'उनकी मानसिक स्थिति...'
नीतीश कुमार ने हटाया मुस्लिम महिला का हिजाब तो भड़के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद, कहा- 'उनकी मानसिक स्थिति...'
साउथ अफ्रीका के खिलाफ आखिरी दो टी-20 से बाहर हो गया ये स्टार बल्लेबाज! टीम इंडिया को बड़ा झटका
साउथ अफ्रीका के खिलाफ आखिरी दो टी-20 से बाहर हो गया ये स्टार बल्लेबाज! टीम इंडिया को बड़ा झटका
ABP Premium

वीडियोज

UP News:स्कूल के मिड-डे मील में रेंगते मिले कीड़े, हड़कंप मचने के बाद BSA ने बैठाई जांच! | Mau
Janhit with Chitra Tripathi : सोनिया-राहुल को मिली राहत पर राजनीति? | National Herald Case
डांस रानी या ईशानी की नौकरानी ? Saas Bahu Aur Saazish  (17.12.2025)
Sandeep Chaudhary: नीतीश की सेहत पर बहस, CM पद को लेकर बड़ा सवाल | Nitish Kumar Hijab Row
Bharat Ki Baat: असल मुद्दों पर सियासत..'राम-राम जी'! | VB–G RAM G Bill | BJP Vs Congress

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
PM Modi Muscat Visit: 'ऐसा लगा कि भगवान के हो गए दर्शन', ओमान में पीएम मोदी से मिलकर किसने कहा ये
'ऐसा लगा कि भगवान के हो गए दर्शन', ओमान में पीएम मोदी से मिलकर किसने कहा ये
'लखनऊ में AQI को लेकर फैल रहा भ्रम, असल हालात इतने खराब नहीं', UP सरकार की अपील- प्राइवेट ऐप पर ध्यान न दें
'लखनऊ में AQI को लेकर फैल रहा भ्रम, असल हालात इतने खराब नहीं', UP सरकार की अपील- प्राइवेट ऐप पर ध्यान न दें
नीतीश कुमार ने हटाया मुस्लिम महिला का हिजाब तो भड़के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद, कहा- 'उनकी मानसिक स्थिति...'
नीतीश कुमार ने हटाया मुस्लिम महिला का हिजाब तो भड़के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद, कहा- 'उनकी मानसिक स्थिति...'
साउथ अफ्रीका के खिलाफ आखिरी दो टी-20 से बाहर हो गया ये स्टार बल्लेबाज! टीम इंडिया को बड़ा झटका
साउथ अफ्रीका के खिलाफ आखिरी दो टी-20 से बाहर हो गया ये स्टार बल्लेबाज! टीम इंडिया को बड़ा झटका
Dhurandhar BO Day 13: भौकाल मचा रही  'धुरंधर', दूसरे बुधवार तोड़ा 'बाहुबली' का 10 साल पुराना रिकॉर्ड, बमफाड़ है 13 दिनों का कलेक्शन
भौकाल मचा रही 'धुरंधर', दूसरे बुधवार तोड़ा 'बाहुबली' का 10 साल पुराना रिकॉर्ड
रोहतास: दो बाइक की आमने-सामने टक्कर में चार युवकों की मौत, एक वाहन जलकर खाक
रोहतास: दो बाइक की आमने-सामने टक्कर में चार युवकों की मौत, एक वाहन जलकर खाक
देश में 100 करोड़ हिंदू, लेकिन एक-दो नहीं बल्कि 5 से ज्यादा राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक? जानें इनके नाम
देश में 100 करोड़ हिंदू, लेकिन एक-दो नहीं बल्कि 5 से ज्यादा राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक? जानें इनके नाम
चमकेगा घर का कोना-कोना, संडे को ऐसे करें डीप क्लीनिंग, देखें पूरी चेकलिस्ट
चमकेगा घर का कोना-कोना, संडे को ऐसे करें डीप क्लीनिंग, देखें पूरी चेकलिस्ट
Embed widget