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Pandora Papers Leak: किसान आंदोलन की आड़ में आखिर क्यों भूला दिए गये अमीरजादों के काले कारनामे?

किसान आंदोलन से भड़की आग ने एक बेहद सनसनीखेज जानकारी की तरफ से लोगों का ध्यान भटका दिया,जो भारत समेत दुनिया के 91 देशों के लिए अब तक की सबसे चौंकाने वाली खबर है.बाकी देशों को छोड़ भी दें,तो भारत के लिए ये खुलासा इसलिये भी अहम है कि इसमें देश के ऐसे तीन सौ ताकतवर अमीरजादों के नाम हैं,जिन्होंने इनकम टैक्स की चोरी करने के लिए अपनी बेशुमार काली कमाई को विदेशों में छुपाकर रखा.उसके लिए ऑफशोर यानी फर्जी कंपनियां बनाने के तमाम हथकंडे अपनाये गए लेकिन कहते हैं कि जुर्म के पैर ज्यादा लंबे नहीं होते,सो एक दिन तो उनका कानूनी जंजीरों की जकड़ में आना तय है.

काले धन को सफेद करने के दुनिया के इस सबसे बड़े खुलासे को पेंडोरा पेपर्स लीक का नाम दिया गया है.अगर इसका हिंदी अनुवाद करें,तो इसे 'भानुमति का पिटारा खुलना' कह सकते हैं.दरअसल,दुनिया भर में पैसों का लेन-देन और हेराफेरी कैसे होती है औऱ काली कमाई से खरीदी संपत्ति को कैसे बचाना है ,टैक्स चोरी करने के साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग कैसे की जाती है,इन सब बातों का खुलासा इसमें किया गया है.

इस खुलासे ने 91 देशों की सरकारों को हिलाकर रख दिया है क्योंकि इसमें ऐसे चर्चित नेताओं के भी नाम हैं,जिन्होंने या तो अपने देश पर राज किया या आज भी वे हुकूमत में हैं.ऐसे तमाम नेताओं ने अरबों रुपये की काली कमाई से विदेशों में निवेश किया,ताकि उस धन को सफेद कर सके.हालांकि इस खुलासे में भारत के किसी बड़े नेता के नाम को फिलहाल उजागर नहीं किया गया है.लेकिन पैंडोरा पेपर लीक' करने वाली संस्था का कहना है कि धीरे-धीरे नामों का खुलासा पर्याप्त सबूतों के साथ किया जाएगा.फिलहाल इसमें भारत से दो बड़े नाम सामने आए हैं.इनमें से एक क्रिकेट-जगत के महान सितारा रह चुके हैं जबकि दूसरे देश के नामी उद्योगपति हैं.

यह बताना जरुरी है कि इस खुलासे से जुड़ी रिपोर्ट को "इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स" ने जारी किया है, जो 117 देशों के 150 मीडिया संस्थानों के 650 पत्रकारों की मदद से तैयार की है. इन मीडिया संस्थानों में बीबीसी, द गार्डियन, द वाशिंगटन पोस्ट, ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन सहित एक भारतीय अंग्रेजी अखबार भी शामिल है. इसे अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों का ऐसा समूह कह सकते हैं,जिसने अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों को निभाते हुए जोखिम भरी खोजपूर्ण रिपोर्टिंग करते हुए सारे सबूत जुटाकर उसे दुनिया के सामने रखा.

बाक़ी देशों के बारे में कुछ नहीं कह सकते लेकिन मोदी सरकार ने इस रिपोर्ट को बेहद गंभीरता से लेते हुए तत्काल इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं.शायद इसकी एक बड़ी वजह ये भी कही जा सकती है कि 2014 में सत्ता संभालने से पहले ही नरेंद्र मोदी ने विदेशों में छुपाए गए काले धन को वापस लाने का जो वादा किया था,ये रिपोर्ट उसमें काफी हद तक मददगार साबित हो सकती है.यही कारण है कि मीडिया में ये रिपोर्ट आते ही मोदी सरकार ने केंद्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड यानी CBDT के चेयरमैन की निगरानी मे इसकी जांच करने का निर्देश दिया है.साथ ही जांच से जुड़ी टीम में सीबीडीटी के अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ED), भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (FIU) के सदस्य भी शामिल होंगे.इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सरकार इस मामले में शामिल किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति को बख्शने को तैयार नहीं दिखती.हालांकि ये तो जांच होने के बाद ही पता चलेगा कि कितनी बड़ी मछलियां जाल में फंस पाती हैं.

दरअसल,ये खुलासा भी कुछ दिनों या महीनों में नहीं हुआ है,इसके लिए पत्रकारों के समूह ने कड़ी मेहनत करते हुए तकरीबन एक करोड़ 20 लाख दस्तावेजों को खंगाला है.ये दस्तावेज़ ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड, पनामा, बेलीज़, साइप्रस, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों के 14 फाइनेंशिल सर्विस कंपनी से लीक हुए हैं. वैसे जिन लोगों के नाम इस लीक में सामने आए हैं, उनमें से कुछ लोग पहले से ही मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स घोटाले जैसे आरोप झेल रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ी जानकारी इस बात को लेकर सामने आई है कि कैसे अमीर और शक्तिशाली लोग क़ानूनी तौर पर कंपनियाँ बना कर ब्रिटेन और विदेशों में संपत्तियाँ ख़रीद रहे हैं.दस्तावेज़ों के मुताबिक़ इन ख़रीदारियों के पीछे 95,000 ऑफ़शोर विदेशी कंपनियाँ हैं.इस खुलासे के तहत भारत सहित दुनिया के 91 देशों के सैकड़ों नेताओं, अरबपतियों, मशहूर हस्तियों, धार्मिक नेताओं और नशीले पदार्थों के कारोबार में शामिल लोगों के ऐसे निवेशों का खुलासा हुआ है, जिसे उन्होंने पिछले 25 सालों से विदेशों में गुप्त निवेशों के जरिए छुपाकर रखा हुआ था.

फिलहाल इस रिपोर्ट में जिन बड़े लोगों के नाम सामने आए हैं, उनमें जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय, ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर, चेक गणराज्य के प्रधानमंत्री आंद्रेज बाबिस, केन्या के राष्ट्रपति उहुरू केन्याटा और इक्वाडोर के राष्ट्रपति गुइलेर्मो लासो के अलावा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोगी शामिल हैं.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पैंडोरा पेपर्स लीक में 64 लाख दस्तावेज, लगभग 30 लाख तस्वीर, करीब 10 लाख से ज्यादा इमेल्स और करीब 5 लाख स्प्रेडशीट शामिल हैं.जबकि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ये  दावा किया गया है कि पैंडोरा पेपर्स लीक में भारत की 300 से ज्यादा बड़ी हस्तियों के नाम हैं, जिनमें से 60 मशहूर शख्सियतों के बारे में सबूतों का पिटारा ही हाथ लग गया है. 'पैंडोरा पेपर लीक' करने वाली संस्था का कहना है की धीरे-धीरे नामों का खुलासा सबूतों के साथ किया जाएगा. बताया गया है कि इन लोगों ने टैक्स से बचने के लिए कई तरह के गैर-कानूनी काम किए, जिनमें समोआ, बेलीज, कुक आइलैंड के अलावा ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड और पनामा में टैक्स हेवन बनाने का काम किया है.

हालांकि पैंडोरा पेपर्स लीक' करने वाली संस्था आईसीआईजे के मुताबिक, दुनियाभर के अमीर कारोबारियों, राजनेताओं और हस्तियों ने कितने पैसों की हेराफेरी की है, ये निश्चित तौर पर बताना नामुमकिन है.लेकिन आईसीआईजे का अनुमान है कि दुनियाभर में करीब 5.6 ट्रिलियन डॉलर से 32 ट्रिलियन डॉलर तक रुपये विदेश में बेनामी कंपनी बनाकर जमा किए गये और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि टैक्स हेवन के उपयोग से दुनिया भर में सरकारों ने हर साल टैक्स के तौर पर उसे मिलने वाला करीब 600 अरब डॉलर गंवाया है.

अर्थव्यवस्था से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए तो ये खुलासा और भी ज्यादा घातक इसलिये है कि इसका सीधा असर देश के 135 करोड़ लोगों के जीवन पर पड़ता है क्योंकि हमारे यहां गरीबी एक बड़ी समस्या है.यही पैसा बच्चों के लिए स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाएं जुटाने के साथ ही अन्य विकास योजनाओं पर खर्च हो सकता था.लिहाज़ा,सरकार को अब दोषियों के खिलाफ कोई रियायत नहीं बरतनी चाहिए.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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