(Source: ECI / CVoter)
कांग्रेस के घोषणापत्र में पीएसयू व 4-वर्षीय डिग्री पर चुप्पी, फूंक-फूंक कदम रख रही है पार्टी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का घोषणापत्र नेक इरादे वाला है, पर इसमें मौलिक बातें कम है. यह कहीं न कहीं सरकार की वर्तमान नीतियों की छाया में है. पार्टी सतर्क है, भले ही उसका कहना है कि वह एनईपी – नई शिक्षा व्यवस्था – पर पुनर्विवेचना करेगी, लेकिन गिरती अर्थव्यवस्था से निपटने के लिए प्रस्तावित नए रास्ते पर वह कोई निश्चित बात करने से कतराती है. पीएसयू को सशक्त करने और अत्यधिक महंगे अमेरिकी मॉडल पर आधारित अनावश्यक 4-वर्षीय बीए की डिग्री पर चुप है.
संभल कर कदम रखती कांग्रेस
यह एनईपी पर समग्र असंतोष को जाहिर तो करती है पर यह भी कहती है कि वह "राज्य सरकारों के साथ परामर्श के बाद नई शिक्षा नीति (एनईपी) पर फिर से विचार और संशोधन करेगी". क्या इसका मतलब कांग्रेस को 4 साल का डिग्री कोर्स जारी रखना है? इसके ख़त्म होने से युवाओं में आत्मविश्वास बढता. प्रत्येक युवा का कम से कम 3 लाख रुपये प्रति वर्ष अतिरिक्त खर्च होगा और नौकरी के बाजार में पहुंचने में उन्हें देर हो जाएगी. कुल मिलाकर, चार साल की नर्सरी से - नई चार साल की डिग्री तक - एक युवा पढाई के दौरान इस व्यवस्था में चार साल खो देता है. क्या कांग्रेस डिग्री स्तर पर गैर जरूरी चौथे वर्ष को खत्म करने की बात नहीं कर सकती थी? इससे दो करोड़ विद्यार्थिओं पर प्रति वर्ष 6 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाना पढ़ेगा. इस अवधि में बर्बाद हुए कुल चार वर्षों की गिनती वित्तीय और सामाजिक नुकसान के बोझ का आकलन करना भी मुश्किल है.
सार्वजनिक उपक्रमों पर चुप्पी
कांग्रेस का घोषणापत्र सार्वजनिक उपक्रमों – पी एस यू - पर एक शब्द भी कहने से बचता है. नव संकल्प आर्थिक नीति, काम धन और सामजिक कल्याण को आधार बनाती है. इसका उद्देश्य जीएसटी की समीक्षा करना, रोजगारहीन विकास को खारिज करते हुए नौकरियों को आधारशिला बनाना है. 1991 के बाद यह एक नई कल्याणकारी अर्थनीति की शुरुआत है. हालांकि, इसकी कोई नई परिभाषा नहीं दी गयी है. वर्तमान की तरह यह - स्व-रोज़गार और व्यवसाय ही केंद्र में हैं. पार्टी ने बताया कि आरबीआई ने पाया कि 60 प्रतिशत केंद्रीय परियोजनाएं रुकी हुई हैं. इसमें 5 लाख करोड़ रुपये की लागत फंस गई है. पर कांग्रेस ने उहापोह में यह नहीं कहा कि इन्हें ख़ारिज किया जाएगा. श्रम कानूनों पर भी पार्टी श्रमिकों को अधिकारों से वंचित करने वाले संशोधनों को रद्द करने पर कुछ नहीं कहती है.
भ्रष्टाचार पर, वार करते हुए कहा, "नोटबंदी, राफेल सौदा, पेगासस स्पाइवेयर, चुनावी बांड योजना की जांच की जाएगी और उन लोगों को कानूनी दायरे में लाया जाएगा जिन्होंने अवैध लाभ कमाया". लॉन्च के समय राहुल गांधी ने कहा कि चुनावी बांड से पता चलता है कि भाजपा की राजनीतिक फंडिंग "जबरन वसूली” और कॉरपोरेट्स पर "दबाव" डालकर की गई थी. इसमें अग्निवीर सेना भर्ती को उलटने का भी वादा किया गया है. वैसे अधिकांश विपक्षी वादे एक बार सरकार में आने के बाद, ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं और कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि ये घोषणापत्र की तरह "जुमले" थे. कुछ जांचें महज़ दिखावा रही हैं. दिसंबर 2013 में जीएसटी को जनविरोधी बताकर रोक दिया गया था, लेकिन एक बार सत्ता में आने के बाद रोकने वालों ने ही जल्दबाजी में इसे दुनिया की सबसे ऊंची दरों पर लागू कर दिया.
मणिपुर पर बात, आशा की किरण
पार्टी मणिपुर की निराशाजनक स्थिति को स्पष्ट रूप से उजागर कर रही है, जो एक आशा की किरण है. 1971 के कांग्रेस घोषणापत्र को उसके "गरीबी हटाओ" नारे के लिए आज भी याद किया जाता है. नारा पाँच "न्याय", एक अच्छा विचार हो सकता है लेकिन प्रेरणादायक नहीं है. यह न्याय के पांच स्तंभों का आह्वान करता है- युवाओं के लिए न्याय, महिलाओं के लिए न्याय, किसानों के लिए न्याय, श्रमिकों के लिए न्याय और शेयरधारकों के लिए न्याय. इसमें बड़ी बात क्या है? यह क्या भाजपा के “मुमकिन है” नारे का मुकाबला कर सकता है! संयोजक पी.चिदंबरम अपने अखबारी स्तंभों में सरकारी कामकाज की आलोचना करते रहे हैं और नए आंकड़ों को भी चुनौती देते रहे हैं. यह उनके दस्तावेज़ में प्रतिबिंबित नहीं होता है.
यहां तक कि मैनिफेस्टो 3-ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के आंकड़ों पर भी सवाल नहीं उठाता है, जिसमें 10 लाख करोड़ रुपये ऋण की देनदारी है. इससे 2024-25 का 47 लाख करोड़ रुपये का बजट घटकर 37 लाख करोड़ रुपये का हो जाता है. वर्ल्ड बैंक की ओर से 7 फीसदी ग्रोथ के आंकड़ों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. जैसा कि आरबीआई के उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण से पता चलता है, पांच साल पहले की तुलना में उपभोक्ता कमजोर हो गया है. 2024 में, कम लोगों की रोजगार या आमदनी सुधरी है. मध्यम वर्ग को स्थिर आयकर का वादा किया गया है. यह वादा नहीं किया गया कि यह 22 प्रतिशत कॉर्पोरेट दरों के बराबर होगा. यानी भाजपा की नीतियां चलती रहेंगी.
बेरोजगारी पर बेदम दावे
बेरोजगारी से निपटने के लिए, कांग्रेस ने 25 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक डिप्लोमा धारक या कॉलेज स्नातक को एक निजी या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में एक साल के प्रशिक्षण की गारंटी दी है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत श्रमिकों की मजदूरी भी बढ़ाकर 400 रुपये प्रति दिन कर दी जाएगी - जो कि इसकी घोषणा की न्यूनतम राष्ट्रीय मजदूरी है. ऐसा लगता है कि वे भूल गए हैं कि प्रशिक्षुता योजना 1970 के दशक में इंदिरा गांधी द्वारा शुरू की गई थी. कई बार इसे दोहराया गया. हर बार यह असफल रहा क्योंकि निजी क्षेत्र ने इसे कभी पसंद नहीं किया और पीएसयू उदासीन रहे. हवाई यात्रा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ट्रेनों के गतिशील किराये के साथ रेलवे, एयर इंडिया की आपदा की राह पर है. कांग्रेस के पास इसे बचाने का कोई तरीका नहीं है. मेट्रो रेल कोलकाता को छोड़कर देश के सभी नगरों में घाटे में चल रहीं हैं. घोषणापत्र में इस पर जोर दिया जा सकता था और पैसे खर्च करने वाली व्यवस्था की जगह सस्ती एलिवेटेड ट्राम जैसे किफायती और पर्यावरण-अनुकूल समाधान सुझाए जा सकते थे.
जाति आधारित राजनीति
जाति आधारित जनगणना से कुछ हद तक राजनीतिक मदद मिल सकती है लेकिन यह रोजगार सृजन का रोडमैप नहीं हो सकता. लगता है कि यह जाति की राजनीति के जाल में फंस गया है. घोषणापत्र में पेट्रोल की ऊंची कीमतों की बात की गई है, “सेस” पर सवाल उठाया गया है. लेकिन 32 रुपये के अत्यधिक ऊंचे पेट्रोल रोड सेस टोल पर यह चुप है. इसे टोल गेट ख़त्म करने के वादे के साथ लाया गया था. सेस और टोल गेटों के माध्यम से 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की जबरन वसूली से मुक्ति की आवश्यकता है. यह उच्च मुद्रास्फीति का कारण है. कांग्रेस इस पर कुछ नहीं कहती है. इसी तरह, यह कार/ट्रैक्टर कबाड़ और उच्च शिक्षा शुल्क के लिए अवैध कानूनों को खत्म करने पर चुप्पी साधे है. इनसे किसानों और औसत परिवारों को भारी धन हानि होती है. थोड़ी सी सहानुभूति के साथ यह लाखों दिलों को छू सकता था. यह लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बड़ा राजनीतिक अवसर है. यह वादा अच्छा है कि नौकरी के आवेदनों पर कोई शुल्क नहीं लगेगा. अधिक केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय खोलने का आह्वान आश्वस्त करने वाला है.
शिक्षा पर विचार
दसवीं कक्षा तक निःशुल्क शिक्षा लागू करने का कदम उचित है. क्या प्राइवेट पब्लिक स्कूलों में भी ऐसा होगा? उत्तर प्रदेश में 1960 के दशक में, कांग्रेस सरकार ने शिक्षा परिदृश्य में आवश्यक बदलावों की शुरुआत करते हुए निजी स्कूलों के लिए भी शिक्षकों के वेतन सरकारी खजाने से भुगतान की प्रणाली शुरू की. उससे मूलभूत अंतर आया. कांग्रेस ने दूरसंचार अधिनियम, 2023 की समीक्षा करने और निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाले भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानों को हटाने का निर्णय लिया है. यह अधिक कठोर भारत संहिता या भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अन्य संशोधनों की उपेक्षा करता है. ईडी, सीबीआई और अन्य निकायों का दुरुपयोग करने की शक्तियां इससे उत्पन्न होती हैं. फिर भी, कांग्रेस का भयमुक्त समाज का वादा उम्मीद जगा सकता है. हो सकता है कि इन नये कदमों से राजनीतिक विमर्श बेहतरी की ओर मुड़े.
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