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BLOG : पीरियड लीव...ये आइडिया कुछ जमा नहीं
पीरियड्स औरतों के लिए कोई टैबू टॉपिक नहीं है. अगर वे दफ्तरों में पीरियड लीव ले सकती हैं तो बॉस से धड़ल्ले से यह भी कह सकती हैं कि मुझे आज दिन भर की तकलीफ से बचने के लिए छुट्टी चाहिए.
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मुंबई की एक ‘कूलेस्ट’ स्टार्टअप कंपनी ने अपने महिला एंप्लॉयीज को पीरियड लीव देने का फैसला किया तो केरल की एक मीडिया कंपनी भी उसी के नक्शेकदम पर चल पड़ी. कंपनियों ने सोचा कि औरतों के प्रति थोड़ा उदार रवैया अपनाया जाए. उन्हें उन तकलीफदेह दिनों के लिए खास छुट्टी दी जाए- क्योंकि उन खास दिनों में औरतों की देह कुछ आराम की मांग करती हैं. इसमें किसी का क्या जाता है- औरतें समाज का स्तंभ हैं. वे खुश और स्वस्थ रहेंगी तो सब दुरुस्त रहेगा. तो, औरतों को फर्स्ट डे ऑफ पीरियड लीव दे दी गई.
वैसे इस पीरियड लीव का अनुभव हमसे पहले की पीढ़ी की बहुत सी (हमारी पीढ़ी में से भी कई) औरतों ने भी हासिल किया है. उन्हें घर में दो एक दिन किचन, पूजाघर वगैरह से पीरियड लीव दे दी जाती है. इस लीव का आनंद घर के किसी कोने में रहकर उठाया जाता था. बड़े-बूढ़े कहते हैं, इसे छुआछूत मत मानो. इससे तुम्हें उन खास दिनों में आराम करने का मौका ही तो मिलता है. औरतें खुश हो जाती थीं, चूल्हे चौके से जितने दिन छुट्टी मिले, उतना अच्छा. औरतों को जरा समझा दो, वो खुश हो जाती हैं. इस बार भी औरतें खुश हैं. उनके आराम के बारे में कोई सोच रहा है. समाज बराबरी की तरफ बढ़ चला है. इसलिए ऑफिस में एक दिन की छुट्टी तय की जा रही है. बात आराम की है, कंफर्ट की है. उन खास दिनों में औरतों को स्ट्रेस न दिया जाए. इसी स्ट्रेस से औरतों को मुक्त रखना है इसीलिए मैनेजमेंट अक्सर उन्हें बड़े पदों पर रखने से कतराता है. हाई वैल्यू क्लाइंट मीटिंग से उन्हें दूर रखता है. बिजनेस डील्स क्लोज करने में उन्हें शामिल नहीं करता. यह सब स्ट्रेसफुल चीजें हैं. और औरतों को आराम देना है, इसलिए उन्हें स्ट्रेसफुल चीजों से भी दूर रखा जाना चाहिए. औरतें डेकोरेटिव पीस की तरह ऑफिस में सजी रहती है. औरतों के लिए इतना सोचने वाले सिर्फ हमारे देश में नहीं. दूसरे देशों में भी हैं. जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, चीन- इन सभी देशों में सरकारी कानून है कि औरतों को पीरियड लीव मिले. बस, चीन में ऐसी लीव लेने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट दिखाना पड़ता है और दक्षिण कोरिया के मर्द इसे भेदभाव वाला कानून मानते हैं. स्पोर्ट्स के जूते, कपड़े वगैरह बनाने वाली कंपनी नाइकी तो 2007 से ऐसी छुट्टी देती आ रही है और किसी भी बिजनेस पार्टनर से वह मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग साइन कराती है कि उसके नियम कानून पार्टनर कंपनी भी मानेगी. ओह... दुनिया में औरतों को बराबरी पर लाने के कितने ही काम हो रहे हैं. उनके आराम के बारे में सोचा जा रहा है. वैसे यह अलग बात है कि नाइकी के कई मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट्स में मजदूरों को शारीरिक, मानसिक और सेक्सुअल उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है. 2011 में इंडोनेशिया के एक प्लांट की महिला कर्मचारियों ने कहा था कि उन्हें गालियां दी जाती हैं और सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार बनाया जाता है. कई प्लांट्स में प्रेग्नेंट औरतों को हमेशा के लिए छुट्टी दे दी जाती है- चलो अब तुम आराम ही करो. अब जरा औरतों से भी पूछ लीजिए कि उन्हें यह आराम चाहिए या नहीं. सेनेटरी पैड्स के एक विज्ञापन में एक बच्ची को फुटबॉल खेलते और टीम को जिताते दिखाया गया है. मां कहती है, ये सिलेक्शन आज ही होना था. बच्ची कहती है, पीरियड्स का क्या है. ये तो हर महीने आते हैं. पर कुछ मौके लाइफ में सिर्फ एक बार आते हैं. लड़की के खेलने के स्किल से उसका सिलेक्शन हो जाता है. मशहूर इजरायली ऐक्ट्रेस गैल गेडोट के जीवन में वंडरवुमेन जैसा मौका एक बार आना था. इसलिए पांच महीने की प्रेग्नेंट गैल ने आराम नहीं किया, शूटिंग की. सेरेना विलियम्स ने भी इस मौके का भरपूर फायदा उठाया और दो महीने की प्रेग्नेंसी में ऑस्ट्रेलियन ओपन जीता. कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि पीरियड्स औरतों को बेचारी नहीं बनाते. इनके साथ औरतों भाग सकती हैं, तैर सकती हैं, दफ्तरों में काम कर सकती हैं और मंदिरों में प्रार्थना भी कर सकती हैं. न तो इस समय औरतें पगला जाती हैं, न ही मूड स्विंग्स का शिकार होती हैं, न हिंसक. ये कभी भी, कोई भी हो सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की समर्थक एक महिला वोटर ने कहा था, हिलेरी को मैंने सिर्फ इसलिए वोट नहीं दिया कि औरतों का हार्मोनल विस्फोट उन्हें भयंकर बना सकता है- युद्ध का जनक भी हो सकता है. पर इतिहास गवाह है, दुनिया के तमाम युद्ध आदमियों के हार्मनोनल विस्फोट के चलते हुए हैं. औरतों का उसमें राई-रत्ती भर का योगदान नहीं है.![BLOG : पीरियड लीव...ये आइडिया कुछ जमा नहीं](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2016/03/08123415/PERIOD-SONG.jpg)
पीरियड्स औरतों के लिए कोई टैबू टॉपिक नहीं है. अगर वे दफ्तरों में पीरियड लीव ले सकती हैं तो बॉस से धड़ल्ले से यह भी कह सकती हैं कि मुझे आज दिन भर की तकलीफ से बचने के लिए छुट्टी चाहिए. यूं तकलीफ होने पर कोई भी छुट्टी ले सकता है, आदमी भी. औरतों को तकलीफ से बचाना है तो दफ्तरों, काम करने की जगहों को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाना चाहिए. औरतों को भी किसी ऑर्गेनाइजेशन का अच्छा एसेट, इनवेस्टमेंट मानना चाहिए.
इंटरनेशनल पोलस्टर इपसॉस मोरी-रॉयटर्स का जी 20 देशों का सर्वे कहता है कि औरतों को समान वेतन, हैरेसमेंट, करियर के अवसर, वर्क लाइफ बैलेंस और करियर में प्रेग्नेंसी- पांच चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कोशिश यह की जानी चाहिए कि औरतों को इन चुनौतियों का सामना न करना पड़े. भारत में कई सर्वे बता चुके हैं कि यहां आदमियों को औरतों से 25 परसेंट ज्यादा वेतन मिलता है.
इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन का सर्वे कहता है कि 2013 के सेक्सुअल हैरेसमेंट एट वर्कप्लेस कानून के बावजूद 70 परसेंट औरतें यौन शोषण के मामले इसलिए छिपा जाती हैं ताकि उनकी नौकरियां न जाएं. इसी तरह मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट के तहत भले ही औरतों को प्रेग्नेंसी के दौरान नौकरियों से निकालना गैरकानूनी है, लेकिन काम से छुट्टी देने के कितने ही मामले सामने आते हैं. कामवाली बाइयों को तो मेटरनिटी लीव पर तनख्वाह हममें से कोई नहीं देता. क्या वे भी वर्किंग वुमेन नहीं? वर्किंग वुमेन को मौका चाहिए, आराम नहीं. मौका ही उन्हें आराम देता है. मौका नहीं मिलता तो उनका आराम हराम हो जाता है. अपनी सोच बदलिए. खाए-पिए-अघाए लोगों के पीरियड लीव जैसे बेवकूफाना आइडिया से अच्छा यह होगा कि पीरियड्स में हाइजीन का महत्व बताया जाए. सेनेटरी पैड्स को मुफ्त बांटा जाए. वर्किंग वुमेन का जो तबका असंगठित क्षेत्र में है, उनके बारे में सोचा जाए. महिलाओं का भला सिर्फ शहरी क्षेत्रों में नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी किए जाने की जरूरत है.नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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