एक्सप्लोरर

BLOG: फिल्म संगीत के कोहिनूर थे खय्याम

खय्याम साहब की उम्र 92 बरस से भी कुछ अधिक थी. अपनी जिंदगी में उन्होंने कई बेहद शानदार काम किए, बहुत मान सम्मान पाये और करोड़ों लोगों का प्यार भी. अपनी जिंदगी को भी उन्होंने भरपूर जिया, वह भी अपने अंदाज़ से. इस सबके बावजूद इस उम्र में उनका हमारे बीच होने का एहसास ही खूबसूरत था. उनके होने से संगीत की दुनिया धनवान थी, लेकिन उनके जाने से संगीत का अनमोल रत्न चला गया.

शाम ए गम की कसम, आज गमगीन हैं हम. संगीतकार खय्याम की फिल्म 'फुटपाथ' का यह गीत यूं तो हम बरसों से सुनते आए हैं, लेकिन अब जब खय्याम नहीं रहे तो यह गीत और भी ज्यादा याद आ रहा है. खय्याम का इस दुनिया से कूच करना सभी को गमगीन कर गया है. हालांकि खय्याम साहब की उम्र 92 बरस से भी कुछ अधिक थी. अपनी जिंदगी में उन्होंने कई बेहद शानदार काम किए, बहुत मान सम्मान पाये और करोड़ों लोगों का प्यार भी. अपनी जिंदगी को भी उन्होंने भरपूर जिया, वह भी अपने अंदाज़ से. इस सबके बावजूद इस उम्र में उनका हमारे बीच होने का एहसास ही खूबसूरत था. उनके होने से संगीत की दुनिया धनवान थी, लेकिन उनके जाने से संगीत का अनमोल रत्न चला गया.

फिल्म संगीत के कोहिनूर थे खय्याम

खय्याम जब फिल्मों में आए तब अनिल बिस्वास, हुस्नलाल भगत राम, गुलाम हैदर, नौशाद, चित्रगुप्त, वसंत देसाई, रोशन, मदनमोहन, ओपी नय्यर और शंकर जयकिशन सहित और भी कई जाने माने संगीतकार फिल्मी दुनिया में मौजूद थे. सभी ने फिल्म संगीत को बहुत कुछ दिया लेकिन खय्याम का संगीत सभी से जुदा रहा. खय्याम ऐसे संगीतकार भी थे जिन्होंने कभी कोई समझोता नहीं किया. हमेशा अपनी पसंद के लोगों के साथ काम किया. कई बार तो वह अपनी फिल्म के निर्माताओं से नाराज भी हो जाते थे. ऐसे कई मौके आए जब खय्याम ने फिल्मों में संगीत देने के निर्माताओं के प्रस्ताव को सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि उनकी शर्तें, उनकी बातें उन्हें पसंद नहीं आयीं.

सभी को सम्मान देते थे खय्याम

मुझे खय्याम साहब से कुछ बार व्यक्तिगत रूप से मिलने और कुछ बार उनसे फोन पर बातचीत करने का मौका भी मिला. वह जितने अच्छे संगीतकार थे उतने अच्छे इंसान भी. उनके जन्म दिन पर मैं उन्हें पिछले दो तीन बरसों से फोन पर बधाई भी दे रहा था. करीब 25 बरस पहले जब दिल्ली में मेरी उनसे पहली बार एक अच्छी मुलाक़ात हुई. तब मुलाक़ात के बाद मैंने उनसे कहा कि आपके बेटे का नाम प्रदीप है और मेरा भी तो आप मेरा नाम तो भूलेंगे नहीं! यह सुन वह हंसते हुए बोले बिल्कुल, बिलकुल मुझे आपका नाम याद रहेगा. कुछ समय पहले अपनी मुंबई यात्रा के दौरान मैंने उनसे फोन करके मिलना चाहा तो वह बोले "बेटे आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है, 92 साल का हो गया हूं तो ज्यादा देर बात नहीं कर सकता. लेकिन अगर एक दिन और मुंबई में हो तो कल परसों में मिल सकते हैं." लेकिन मुझे दिल्ली उसी दिन वापस लौटना था, तो उनसे मुलाक़ात नहीं हो सकी और अब कभी हो भी नहीं सकेगी.

उनसे बातचीत में जो उनकी बात सबसे खास और अच्छी लगती थी वह यह थी कि वह सभी को बहुत सम्मान देते थे. मैं अक्सर जब भी फिल्म वालों से मिलता हूं तो देखता हूं कुछेक को छोड़कर अधिकतर लोग अन्य कलाकारों, फ़िल्मकारों की बुराई और अपनी प्रशंसा करते रहते हैं. लेकिन खय्याम साहब दूसरे संगीतकारों की भी तारीफ करते थे और अपने गीतकारों की भी. अपने गीतों की सफलता में वह गीतों के बोलों की अहमियत को भी बताते थे और गायक गायिकाओं के सुरों की भी.

यहां तक अपनी पत्नी जगजीत कौर और उनके हुनर की तो वह हमेशा दिल खोलकर प्रशंसा करते थे.वह कहते थे –आज खय्याम को जो भी कामयाबी मिली है उसमें जगजीत कौर जी का बड़ा योगदान है. एक बार खय्याम ने कहा था, "मेरी जिंदगी में कई मुश्किल दौर आए, लेकिन मेरी शरीक-ए हयात जगजीत जी ने उन मुश्किल घड़ियों को इतना आसान बना दिया कि बुरा वक्त कब गुजर गया पता ही नहीं लगा." यहां तक जगजीत कौर के परिवार वालों खासतौर से अपनी सास जिन्हें वह बीजी कहते थे, उनकी भी वह बहुत तारीफ करते थे.

के एल सहगल से प्रभावित थे खय्याम का जन्म 18 फरवरी 1927 को जालंधर शहर के नवांशहर के राहोन में हुआ था. इनका पूरा नाम मोहम्मद ज़हूर हाशमी खय्याम था. इनके पिता मस्जिद में इमाम थे. लेकिन खय्याम अपने बचपन से ही मस्जिद की अजान के साथ मंदिरों की आरती भी एक भाव, एक चाव से सुनते थे. शायद यही कारण था कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे. वह जब 13 साल के थे तो उनका मन फिल्मों में काम करने के लिए मचलने लगा. असल में खय्याम अपने छुटपन से ही गायक-अभिनेता के एल सहगल से काफी प्रभावित थे. यह संयोग था कि सहगल भी जालंधर से ही थे. खय्याम चाहते थे कि वह भी गायक और अभिनेता बनें. इसी चक्कर में वह घर से भागकर अपने चचा जान के पास दिल्ली आ गए.

चाचा को पता लगा वह घर से भागकर आया है तो उन्होंने बाल खय्याम की पिटाई कर दी. लेकिन खय्याम की दादी ने उन्हें बचा लिया. कुछ दिन बाद चाचा ने अपने जानकार संगीतकार हुस्नलाल भगतराम और पंडित अमरनाथ से खय्याम को संगीत की विधिवत शिक्षा दिलवानी शुरू कर दी. करीब 5 बरसों तक इनसे संगीत सीखा. इसी दौरान खय्याम उस दौर के फिल्म केंद्र लाहौर और मुंबई के चक्कर भी लगाने लगे. लाहौर में जाने माने संगीतज्ञ चिश्ती बाबा से मिले तो वह खय्याम से अच्छे खासे प्रभावित हो गए. उन्होंने खय्याम को अपना सहायक बना लिया. बाद में फ़िल्मकार बी आर चोपड़ा ने भी खय्याम की प्रतिभा देखी तो उन्होंने खय्याम को 125 रुपए महीने के वेतन पर अपने समूह का हिस्सा बना लिया.

सबसे पहले जिस फिल्म में खय्याम को संगीत देने का मौका मिला वह फिल्म थी सन 1948 में प्रदर्शित "हीर रांझा". निर्देशक वली की इस फिल्म में जहां एक संगीतकार अज़ीज़ खान थे, वहां खय्याम भी इसके संगीतकार थे लेकिन तब उन्होंने इस फिल्म में शर्मा जी वर्मा जी के नाम से संगीत दिया था. इसमें वर्मा जी के रूप में इनके एक और दोस्त रहमान थे. लेकिन देश विभाजन के बाद रहमान पाकिस्तान चले गए. इसके बाद भी खय्याम कुछ फिल्मों में शर्मा जी के नाम से संगीत देते रहे.

'फुटपाथ' से बने खय्याम

देखा जाये तो खय्याम का फिल्म संगीत का सफर सही मायने में 1953 से तब शुरू हुआ जब उन्होंने फिल्म 'फुटपाथ' का संगीत दिया. इस फिल्म का संगीत पहले किसी और संगीतकार से कराने की बात थी. लेकिन नर्गिस की मां जद्दनबाई ने इस फिल्म के निर्माता चंदूलाल शाह से खय्याम को मिलवाते हुए कहा- "इस लड़के में बहुत हुनर है, 'फुटपाथ' का म्यूजिक इससे कराओ. तब फिल्म के हीरो दिलीप कुमार और हीरोइन मीना कुमारी तक ने खय्याम के काम को देखा तो वे भी खुश हो गए.

'फुटपाथ' के लेखक, निर्देशक जिया सरहदी ने ही मोहम्मद ज़हूर खय्याम हाशमी को सलाह दी कि तुम अपने नाम के एक हिस्से खय्याम के नाम से ही संगीत दो. बस तभी से यानि फिल्म 'फुटपाथ' से वह ख्य्याम नाम से संगीत देने लगे. देखते ही देखते उनके नाम और काम की धूम पूरी फिल्म इंडस्ट्री में हो गयी.

पहली फिल्म से ही संगीत हुआ हिट

खय्याम नाम से स्वतंत्र संगीत निर्देशक के रूप में आई उनकी पहली फिल्म 'फुटपाथ' तो हिट हुई ही फिल्म का संगीत भी हिट हो गया. इस फिल्म में तलत महमूद से खय्याम ने 'शाम-ए- गम की कसम, आज गमगीन हैं हम' ऐसा गवाया जिसका जादू आज 66 बरस बाद भी कायम है. इस गीत में खय्याम ने संगीत के परंपरागत मुख्य साधन ढोलक और तबला का प्रयोग न करते हुए भी इसे इतना खूबसूरत बना दिया कि सभी हैरान रह गए. इस फिल्म के बाद खय्याम को फिल्में तो कई मिलती रहीं जैसे-'गुलबहार', 'धोबी डाक्टर', 'तातार का चोर', 'बारूद', और 'बंबई की बिल्ली', आदि. लेकिन ये फिल्में चली नहीं.

सात साल बाद मिली दूसरी सफलता

'फुटपाथ' की सफलता के बाद दूसरी अच्छी सफलता पाने के लिए खय्याम को सात साल तक कडा संघर्ष करना पड़ा. खय्याम की सूनी जिंदगी तब बदली जब उनकी फिल्म 'फिर सुबह होगी' 1960 में प्रदर्शित हुई. फ़िल्मकार रमेश सहगल की इस फिल्म में राज कपूर नायक थे. तब राज कपूर बतौर नायक ही नहीं एक दिग्गज निर्माता निर्देशक के रूप में काफी ख्याति अर्जित कर चुके थे. राज कपूर की पसंद के संगीतकार शंकर जयकिशन थे. लेकिन जब रमेश सहगल ने राज कपूर से खय्याम को मिलवाया तो वह भी उनकी काबलियत देखकर हैरान हो गए.

'फिर सुबह होगी' फिल्म तो खास नहीं चली लेकिन फिल्म का संगीत सुपर हिट हो गया. वो सुबह कभी तो आएगी, आसमां पे है खुदा और ज़मीन पे हम और रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा, ये वे गीत थे जो तब बच्चे बच्चे की जुबान पर चढ़ गए थे. 'फिर सुबह होगी' से एक अच्छी बात यह हुई कि इस फिल्म के गीत साहिर लुधियानवी ने लिखे थे. इस फिल्म के बाद साहिर और खय्याम का साथ जब भी हुआ तब सदाबहार गीतों का जन्म हुआ. इसके बाद खय्याम इतने लोकप्रिय हो गए कि इन्हें एक साथ कई फिल्में मिल गईं. जिनमें 'शोला और शबनम', 'शगुन', 'मोहब्बत इसको कहते हैं' और 'आखिरी खत' तो अहम हैं. जिनमें 'शगुन' (1964) की खास बात यह है कि इस फिल्म में उनकी पत्नी जगजीत कौर का गाया एक गीत- 'तुम अपना रंज ओ गम और ये परेशानी मुझे दे दो' तो अमर गीत बन गया.

जगजीत कौर निश्चय ही प्रतिभाशाली गायिका रही हैं. हालांकि उन्होंने फिल्मों में गीत बहुत कम गाने गाये हैं. लेकिन यह एक गीत ही उनकी अनुपम गायन प्रतिभा की ऐसी सुंदर बानगी पेश करता है जिसे बरसों बरसों तक भुलाया नहीं जा सकेगा. 'कभी कभी', 'उमराव जान', 'बाज़ार' और 'रजिया सुल्तान' खय्याम के साथ यह विचित्र संयोग रहा कि बड़ी सफलता के बाद भी उनके पास काम कम ही रहा. कभी इसलिए कि वह निर्माताओं की शर्तों पर काम नहीं करते थे और कभी इसलिए कि खय्याम का संगीत तो हिट हो जाता था लेकिन उनकी फिल्में व्यावसायिक रूप से असफल हो जाती थीं या कम सफल होती थीं. वह जुबली फिल्मों का दौर था फ़िल्मकार जुबली फिल्मों की ही लालसा रखते थे. इसलिए कई फ़िल्मकार खय्याम के साथ काम करने में कतराते थे. वह चाहकर भी खय्याम को सिर्फ इसलिए नहीं लेते थे कि इनको ले लिया तो फिल्म सफल नहीं होगी. ऐसी ही आशंका के चलते फिल्मकार यश चोपड़ा ने भी 'कभी कभी' फिल्म में खय्याम को लेने के लिए दस बार सोचा. यहां तक अपनी इस आशंका को उनसे साफ शब्दों में व्यक्त भी कर दिया. लेकिन 'कभी कभी' का संगीत तो लोकप्रिय हुआ ही इस फिल्म ने सिल्वर ही नहीं गोल्डन जुबली मनाकर खय्याम के प्रति गलत धारणा को भी खत्म कर दिया.

हालांकि फिल्म 'आखिरी खत' (1966) में लता मंगेशकर के सुर में 'बहारों मेरा जीवन भी संवारो' जैसा सदाबहार गीत देने के बाद भी खय्याम को कुछ बरसों तक सफलता नहीं मिली. यूं इस दौरान खय्याम ने 'संकल्प', 'प्यासे दिल' और, 'मुट्ठी भर चावल' जैसी कुछ फिल्मों का संगीत दिया. जिसमें 'संकल्प' मे सुलक्षणा पंडित को अपने गाये गीत 'तू ही सागर तू ही किनारा' के लिए सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला. खय्याम के निराशा के दौर में 'कभी कभी' की अपार सफलता उनके लिए वरदान साबित हुई. मैं पल दो पल का शायर हूं, कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, मेरे घर आई एक नन्ही परी और तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती' जैसे गीतों ने उन्हें नयी पीढ़ी के लोगों में भी लोकप्रिय बना दिया.

सही मायने में खय्याम के लिए वह दौर उनके कार्यकाल का 'गोल्डन पीरियड' साबित हुआ. 'कभी कभी' के बाद आई उनकी' त्रिशूल' 'चंबल की कसम', 'शंकर हुसैन', 'खानदान', 'थोड़ी सी बेवफाई', 'नूरी', 'नाखुदा', 'दर्द', 'आहिस्ता आहिस्ता' जैसी लगभग सभी फिल्मों का संगीत लोकप्रिय साबित हुआ. लेकिन उनकी जिंदगी की वे तीन फिल्में जिनसे खय्याम अमर हो गए वे हैं -'उमराव जान', 'बाज़ार' और 'रज़िया सुल्तान'. इनमें कमाल अमरोही की 'रज़िया सुल्तान' (1983) अच्छा बिजनेस नहीं कर सकी लेकिन इसका संगीत इतना दिलकश रहा कि लता मंगेशकर ने अपनी एक बातचीत में कहा था कि 'रज़िया सुल्तान' का एक गीत 'ए दिल ए नादान' की रिकॉर्डिंग के बाद महीनों तक ये गीत उनके दिमाग में गूंजता रहा. ये गीत सुनकर जो सुकून मिलता है उसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. यूं 'रज़िया सुल्तान' से पहले सान 1981 में आई फिल्म 'उमराव जान' से संगीतकार खय्याम इतने मशहूर हो गए कि इस फिल्म ने भी इतिहास लिख दिया. दर्शकों के लिए फिल्म का पहला आकर्षण इसका संगीत था.

'दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए', 'इन आँखों की मस्ती के' और 'ये क्या जगह है दोस्तो' जैसे गीत खय्याम की धुनों और आशा भोसले के सुरों में फिल्म संगीत की धरोहर बन गए हैं. आशा भोसले ने इस फिल्म से पहले सैंकड़ों, एक से एक खूबसूरत गीत दिये, लेकिन आशा भोसले को जिन गीतों के लिए सबसे पहले याद किया जाएगा वे इस फिल्म के गीत हैं. आशा भौंसले 'उमराव जान' से शिखर पर ही नहीं पहुंची, वह इस फिल्म के गीतों से अमर हो गयी हैं. अपने लंबे करियर में खय्याम साहब ने कई अविस्मरणीय गीत दिये लेकिन उन्हें फिल्मफेयर का पहला पुरस्कार फिल्म 'कभी कभी' के लिए मिला. जबकि 'उमराव जान' के लिए खय्याम को फिल्मफेयर तो फिर से मिला ही, साथ ही इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. उधर आशा भौंसले को भी 'उमराव जान' के गीत 'दिल चीज़ क्या है' के लिए सर्वश्रेष्ठ गायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. साथ ही रेखा ने इन गीतों पर और पूरी फिल्म में जो अभिनय किया उससे रेखा फिल्म आकाश पर ऐसे चमक उठी जिसकी चमक आज तक फीकी नहीं हो सकी है.

फिल्म 'उमराव जान' के अगले ही साल आई फिल्म 'बाज़ार' ने भी खय्याम की उच्च कोटि की बेमिसाल प्रतिभा को फिर से साबित कर दिया. सागर सरहदी के निर्देशन में बनी फिल्म 'बाज़ार' के गीत -'देख लो आज हमको जी भर के', 'दिखाई दिये यूं', 'फिर छिड़ी रात' और 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी', ने कानों में रस घोलने के साथ ऐसा सुकून दिया कि दर्शक फिल्म में इन गीतों को देखते-सुनते समय मंत्र मुग्ध हो गए. 'देख लो आज जी भर के' को तो जगजीत कौर जी ने ही गाया.

खय्याम साहब ने अपनी जिंदगी में जहां कई संघर्ष किए वहां खूब शोहरत भी पाई और दुनिया को बता दिया कि खय्याम होने का मतलब क्या है. अनेक यशस्वी संगीतकारों के बीच में भी खय्याम अलग ही थे. वह यूं अपने दुख और गम की घड़ी में विचलित नहीं होते थे. लेकिन अपनी जिंदगी में उन्हें एक गम ऐसा मिला जो उन्हें विचलित कर गया. वह गम था उनकी एक मात्र संतान प्रदीप खय्याम का सन 2013 में युवावस्था में ही निधन. इससे खय्याम और जगजीत कौर दोनों बुरी तरह टूट गए थे.

करीब दो साल पहले अपने 90 वें जन्म दिन पर खय्याम ने केपीजे (खय्याम प्रदीप जगजीत) के नाम से एक ट्रस्ट बनाकर अपनी करीब 12 करोड़ रुपए की संपत्ति को दान दे दिया था. उस राशि के ब्याज से ही प्रधानमंत्री राहत कोश और मुख्यमंत्री राहत कोश में तो प्रति वर्ष पांच-पांच लाख रुपए की राशि प्रदान की जाएगी. साथ ही पांच लाख रुपए संगीत के क्षेत्र में या फिल्म क्षेत्र में जरूरतमन्द लोगों को प्रदान किए जाएंगे. इस ट्रस्ट का काम काज गायक तलत अज़ीज़ और उनकी पत्नी वीना अज़ीज़ के साथ अनूप जलोटा जैसे कलाकार देखेंगे.

भुलाए नहीं जा सकेंगे खय्याम

अपनी फिल्मों के साथ अनेक गैर फिल्मी रचनाओं को देकर खय्याम ने संगीत की दुनिया में जो योगदान दिया है उसके लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी और दीना नाथ मंगेशकर जैसे पुरस्कारों के साथ भारत सरकार द्वारा पदम विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. खय्याम अपनी धुनों से इतना कुछ दे गए हैं कि उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

Alamgir Alam Remand: मंत्री आलमगीर आलम को झटका, कोर्ट ने ED को दी 6 दिन की रिमांड, कल हुई थी गिरफ्तारी
मंत्री आलमगीर आलम को झटका, कोर्ट ने ED को दी 6 दिन की रिमांड, कल हुई थी गिरफ्तारी
हीरामंडी की साईमा का जब नेशनल टीवी पर उड़ा लुक्स को लेकर मजाक, कंगना रनौत ने किया था सपोर्ट
हीरामंडी की साईमा का जब नेशनल टीवी पर उड़ा लुक्स को लेकर मजाक
चुनाव के बीच नासिक में सीएम एकनाथ शिंदे के बैग की हुई जांच, पुलिस को क्या मिला?
चुनाव के बीच नासिक में सीएम एकनाथ शिंदे के बैग की हुई जांच, पुलिस को क्या मिला?
Yellow Fever: येलो फीवर क्या है ? जानें इस बुखार के शुरुआती लक्षण, कारण और इलाज का तरीका
येलो फीवर क्या है ? जानें इस बुखार के शुरुआती लक्षण, कारण और इलाज का तरीका
for smartphones
and tablets

वीडियोज

Elections 2024: आजमगढ़ में सीएम योगी का धुआंधार प्रचार, सभा को संबोधित करते हुए सुनिए क्या कहाPM Modi Exclusive: पीएम मोदी ने हिंदू-मुस्लिम करने वालों को दिया करारा जवाब | ABP News | BreakingPM Modi Exclusive: 'वो पार्टी नहीं संभाल पाए...' - उद्धव और शरद पवार पर पीएम मोदी का करारा हमलाLoksabha Elections 2024: मुफ्त राशन को लेकर पर बीजेपी-विपक्ष में बयानबाजी हुई तेज | ABP News

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Alamgir Alam Remand: मंत्री आलमगीर आलम को झटका, कोर्ट ने ED को दी 6 दिन की रिमांड, कल हुई थी गिरफ्तारी
मंत्री आलमगीर आलम को झटका, कोर्ट ने ED को दी 6 दिन की रिमांड, कल हुई थी गिरफ्तारी
हीरामंडी की साईमा का जब नेशनल टीवी पर उड़ा लुक्स को लेकर मजाक, कंगना रनौत ने किया था सपोर्ट
हीरामंडी की साईमा का जब नेशनल टीवी पर उड़ा लुक्स को लेकर मजाक
चुनाव के बीच नासिक में सीएम एकनाथ शिंदे के बैग की हुई जांच, पुलिस को क्या मिला?
चुनाव के बीच नासिक में सीएम एकनाथ शिंदे के बैग की हुई जांच, पुलिस को क्या मिला?
Yellow Fever: येलो फीवर क्या है ? जानें इस बुखार के शुरुआती लक्षण, कारण और इलाज का तरीका
येलो फीवर क्या है ? जानें इस बुखार के शुरुआती लक्षण, कारण और इलाज का तरीका
Chah Bahar Deal: चीन को तबाह करना चाहता है US! भारत में देखता है 'ड्रैगन' को मैनेज करने का माद्दा- ईरान के साथ बड़े करार पर बोले PAK के कमर चीमा
चीन को तबाह करना चाहता है US! भारत में देखता है मैनेज करने का माद्दा- बोले PAK के कमर चीमा
इस महीने Renault की कारों पर मिल रही है भारी छूट, जल्दी उठाएं मौके का फायदा
इस महीने Renault की कारों पर मिल रही है भारी छूट, जल्दी उठाएं मौके का फायदा
Swati Maliwal: 'केजरीवाल के साथ घूम रहा मारपीट करने वाला PA विभव कुमार', स्वाति मालीवाल केस को लेकर BJP ने लगाया आरोप
'केजरीवाल के साथ घूम रहा PA विभव कुमार', स्वाति मालीवाल केस को लेकर BJP ने लगाया आरोप
Weight Loss: वेट ही नहीं हार्ट हेल्थ का रिस्क भी घटाती हैं वजन कम करने वाली दवाईयां, जानें क्या कहती है रिसर्च
वेट ही नहीं हार्ट हेल्थ का रिस्क भी घटाती हैं वजन कम करने वाली दवाईयां, जानें क्या कहती है रिसर्च
Embed widget