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43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
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30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
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OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
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INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

बेंगलुरू तो झांकी है, जल-संकट से अभी पूरे देश को जूझना बाकी है

जलवायु परिवर्तन दबे पांव हर देश में, खास कर दक्षिण के देशों के शहरों में और भी प्रभावी ढंग से दस्तक दे रहा है. जीवन चलाने के लिए तीन चीज़ें हवा, पानी और खाना मूलभूत जरूरतें हैं और हमारे शहर हवा और पानी के मामले में पटखनी खा रहे हैं. हवा जहरीली हो रही है तो पानी के लिए आसपास से लेकर सैकड़ों किलोमीटर तक का पानी भी कम पड़ रहा है. पिछले एक दशक से जहाँ  सर्दियों की शुरुआत में  देश की राजधानी दिल्ली हवा सांस लेने लायक ना होने के कारण ‘प्रदूषण की छुट्टी’ मनाती है, वहीं पिछले कुछ सालों में गर्मी शुरू होते ही देश की सिलिकॉन वैली बेंगलुरु पानी की किल्लत के कारण अघोषित रूप से वर्क फ्रॉम होम पर शिफ्ट होने लगा है. हालांकि, हवा के मामले में बेंगलुरु दिल्ली की तुलना में काफी बेहतर है, पर पानी के मामले में बेंगलुरु दिल्ली सहित बाकी शहरी के लिए भविष्य की उसी तरह झांकी प्रतीत होता है जैसे कुछ सालों से दक्षिण अफ्रीकी शहर केपटाउन पानी विहीन हो चला है

पानी संकट के लिए कुख्यात केपटाउन

साल 2015 से 2019 तक दक्षिण अफ्रिका का केपटाउन शहर पिछले 400 साल के सबसे विकराल पानी के संकट के लिए वैश्विक सुर्खियों में रहा, यहां तक कि 2018 में शहर पानी विहीन (शून्य जल) के मुहाने तक जा पहुँचा था. शून्य जल, जलसंकट को बताने का एक जरिया है जब केपटाउन को पानी मुहैया कराने वाले बांध पर पानी मात्र 13.5% बच जाता. आज भारत का सिलिकॉन वेली बेंगलुरु, केपटाउन बनने के कगार तक जा पहुँचा  है. वृहत् शहर के 13900 बोरवेल में से 6900 के नीचे का पानी खिसक चुका है, बेहद जरुरी इस्तेमाल के अलावा पानी के किसी भी अन्य इस्तेमाल पर 5000 तक के जुर्माने का प्रावधान हो चुका है, जिसमें  कार धोना, स्विमिंग पूल और यहाँ तक कि बगीचे की सिंचाई भी शामिल है. शहर के पोखर तालाबों  पर पाट के बनाये गए आधुनिक समृद्धि  के प्रतीक  ऊँची-ऊँची चमकती इमारतों के नलके,और शावर सूख चले हैं. लगभग 65000 आईटी कंपनियों से समृद्ध शहर के कामकाजी युवा अब वर्क फ्रॉम मांग रहे है ताकि कुछ कम पानी में दिनचर्या चल जाये. शहर के कुलीन और महंगे रिहाइश  वाले लोग की दिनचर्या भी टैंकर के भरोसे हो गयी है, वहीं  टैंकर से पानी आपूर्ति की कीमत आसमान छू रही है. और ये सब उस शहर में हो रहा है जिसे हम दुनिया को अब तक भारत की नयी पहचान,आईटी हब, सिलिकॉन वेली और स्मार्ट सिटी के रूप प्रस्तुत करते आये हैं.

बेंगलुरूः हमारी उपेक्षा का चमकता मीनार 

बेतरतीब शहरीकरण, भूजल का  निर्ममता से दोहन और और पानी का गैर जरुरी इस्तेमाल ये सब कुछ दीर्घकालिक प्रवृत्तियां  रहीं जिसके कारण बेंगलुरु धीरे-धीरे गर्मी के आगमन के साथ ही सूखने लगा है. हालांकि, पिछले साल की कम बारिश और अलनीनो के प्रभाव से इस साल पानी का संकट अभूतपूर्व हो चला है. पानी के मामलें में बेंगलुरु किसी नदी के किनारे नहीं बसा है, पर नदी की कमी को ऐतिहासिक रूप से एक बड़े भू-भाग में फैले छोटे बड़े एक-दूसरे से जुड़े लगभग 262 पोखर तालाब और झीलें  पूरी करती रही हैं. पानी की बढ़ती जरूरतों  को पूरा करने के लिए भारत के तमाम आधुनिक और स्मार्ट शहरों  की भांति बेंगलुरु को अधिकांश पानी 90 किलोमीटर दूर कावेरी नदी से मुहैया होता है. वहीं  पानी की बाकी जरूरतें  14000 बोरवेल और आसपास के शहरों  के पानी के टैंकर पूरा करते हैं. अब पहले के दोनों ही स्त्रोत सूख रहे हैं, भूजल का स्तर तो पाताल  तक पहुँच चुका है. मौसम विभाग के अनुसार अलनीनो के मजबूत रहने के कारण बेंगलुरु ज्यादा गर्म होता जा रहा है,जो फ़रवरी के बीतते ही आए इस महासंकट की तस्दीक करता है.

बेंगलुरू का संकट सर्वव्यापी

अब बेंगलुरु में इस समय जो हो रहा है, इसे समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है, जिसे बेंगलुरु में पिछले कुछ दशको के आये बदलाव में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की एक रिपोर्ट  के मुताबिक 1973 में शहर में हरित क्षेत्र 78% और कंक्रीट यानी  मकान, सड़क आदि 8% था जो आज क्रमशः घटके 3% और बढ़कर 86% तक हो गया है. इसी अवधि  में पानी से भरे क्षेत्र यानी पोखर, झील और उसको  जोड़ने वाले चैनल लगभग 80% तक कम हो गए है. शहर में कभी 262 छोटे-बड़े पोखर झील थे जिसमें से अधिकांश एक-दूसरे से जुड़े थे और हरियाली  शहर की पहचान हुआ करती थी, तभी तो बेंगलुरु को ‘झीलों का शहर’ और यहां तक ‘बगीचों का शहर’ कहा जाता था. शहर में कंक्रीट का बढ़ता दायरा, पानीदार क्षेत्र यानी  वेटलैंड और हरित इलाकों  का घटता दायरा बिहार के मोतिहारी से तमिलनाडु के चेन्नई तक लगभग हर भारतीय शहर के विकास की कहानी है.  ऊपर से जलवायु के बदलते मिजाज और मौसम की चरम परिस्थितियों के कारण हमारे शहरों को बारिश में बाढ़ और बरसात के इतर दिनों में पानी की भयंकर किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. बेंगलुरु शहर के साथ एकदम से यही हुआ है, अधिकांश झीलों पर शहर बसा देने से और हरित क्षेत्र पर कंक्रीट की परत चढ़ जाने से से भूमिगत जल का बरसात के दिनों में रिचार्ज नहीं हो पाता और शहर की बढती पानी की मांग को पूरा करने के लिए दशकों से क्षमता से अधिक भूमिगत जल का दोहन अनवरत जारी है. 

पूरे देश की हालत भयावह

बेंगलुरु वो सिर्फ एक झांकी, या चेतावनी मात्र है. उससे ज्यादा भयावह हालत तो देश के दूसरे राज्यों में हो सकते हैं, जिसकी तरफ इशारा नीति आयोग अपनी रिपोर्ट में कर चुका है. इसके अलावे भी कई शोध भारत में तेजी से बढ़ रहे जल संकट की ओर इशारा कर चुके है. कम से कम 21 शहरों में 2047 तक पानी की एक बूंद के लिए तरसने जैसे हालात बन सकते हैं.,नीति आयोग की कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स  रिपोर्ट भारत में पानी के किल्लत की एक और भयावह तस्वीर पेश करती है, जिसके मुताबिक देश में प्रदूषित पानी पीने से हर साल 2 लाख लोगों की मौत होती है, तीन-चौथाई घरों  में पीने का साफ पानी नहीं पहुँच पाता है. यहाँ तक कि 2030 तक तो देश की 40 फीसद आबादी के पास पीने का पानी ही नहीं मिलेगा. भारत जल संकट का एक गंभीर और जानलेवा भविष्य के कगार पर है. यह  कोई एक दिन में नहीं होने वाला है, जैसे बेंगलुरु का जल संकट पिछले कई दशको के परम्परागत जल-संस्कृति को दरकिनार कर मूर्खतापूर्ण और तकनीकी  ठसक वाले पानी-प्रबंधन का परिणाम है, पर पानी के कई बड़े छिटपुट संकट की घटनाओ के बाद भी पानी प्रबंधन की यही प्रवृति जारी है.

भारत की आबादी अधिक, पानी कम

ऊपर से यह  चिंता की बात जरूर है कि भारत में पूरी दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन उस अनुपात में भारत में पूरी दुनिया का सिर्फ 4% मीठा पानी उपलब्ध है. पिछले कई दशको में पानी की प्रति व्यक्ति औसत हिस्सेदारी भी काफी तेजी से घटी है, जो भारत में बढती जनसंख्या के हिसाब से समझा जा सकता है. पर इन सारी प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी मौजूदा जल संकट के लिए हमारा मूर्खतापूर्ण पानी-प्रबंधन ज्यादा जिम्मेदार प्रतीत होता है, जहाँ हमने शहर के नियोजन को पानी के इतर समझ शहर को आर्थिक विकास में झोंक दिया. हम आसपास की नदियोंं का सारा पानी घेर के, शहर पर कंक्रीट पाट उसके अन्दर हजारो साल से जमा भूजल को सोख के फैलते शहर को पानी मुहैया कराते रहे, पर जल के सबसे आसान सिद्धांत जल चक्र को ही भूल गए. अब बिना भूजल रिचार्ज किये कब तक शहर को पानी मिल पायेगा?  ये त्रासदी जब ‘झीलों के शहर’ के साथ हो सकती  है, तो फिर देर सबेर हमारी समृद्धि  के कई केंद्र जल संकट की जद में होंगे चाहे दिल्ली हो या गांधी नगर, बेंगलुरु तो सिर्फ झांकी है.    

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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