(Source: ECI / CVoter)
एनडीए को अनंत सिंह से फायदा, नीतीश को लड़नी पड़ रही है कई मोर्चों पर लड़ाई
देश में लोकसभा चुनाव चल रहा है. दो चरणों के चुनाव हो चुके है और तीसरे चरण के चुनाव में 48 घंटे से भी कम का समय बचा है. यूपी में अखिलेश और राहुल गांधी के चुनाव मैदान में उतरने से राजनीतिक गर्मी बढ़ गई है. दूसरी ओर बिहार में दबंग नेता और कई आरोपों में घिरे अनंत सिंह के पैरोल पर बाहर आने से मुंगेर सहित कई सीटों पर सरगर्मी ला दी है. अनंत सिंह को काफी लंबे समय से जेल में रखा गया था, वर्तमान में उनको 15 दिनों की पेरोल पुश्तैनी जमीन के बंटवारे के नाम पर मिली है. फिलहाल मुंगेर लोकसभा सीट से ललन सिंह चुनाव मैदान में हैं.
बिहार की राजनीति और बाहुबल
2019 में अनंत सिंह की पत्नी नीलम सिंह इसी सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार थी. ललन सिंह बनाम अनंत सिंह की 2019 से ही कांटे की टक्कर थी. जब वह जेल नहीं गए थे या जेल में रहते हुए कोर्ट आते-जाते थे, तो उसी दौरान मीडिया के सवालों पर अक्सर अनंत सिंह बोलते रहते थे कि वह इस बार ललन सिंह को चुनाव में हरा देंगे. बिहार में 17 महीने के बाद सरकार गिरी और नीतीश कुमार ने अपना पाला बदल लिया . उसके बाद देखा गया कि जो आरजेडी खेमे के नेता थे, वे एनडीए के खेमे में देखे गए, जिसमें एक नीलम सिंह भी थी. जबकि अनंत सिंह आरजेडी के लंबे समय तक जुड़े रहे और कांग्रेस में भी उन्होंने अपना समय दिया. नीतीश कुमार से वो अक्सर खफा रहते थे. इस वक्त चुनाव के बीच में उनका पैरोल पर बाहर आना कई वजह हो सकता है. नीतीश कुमार की राजनैतिक मजबूरी भी इसके पीछे दिख रही है.
आरक्षण का मुद्दा और मतदान
अनंत सिंह का पेरोल पर बाहर आना इंडिया गठबंधन के लिए नुकसान और एनडीए के लिए अच्छी खबर है, ऐसा माना जा रहा है. हालांकि, उससे पहले देखना चाहिए कि बिहार की राजनीति में आरक्षण का मुद्दा सामने आने लगा है. लालू यादव की मौजूदगी में आरक्षण को लेकर कई तरह की बात हो रही है जिसमें माना जा रहा है कि बीजेपी देश में आरक्षण को खत्म करने के लिए काम करने वाली है. हालांकि, इसके बारे में बीजेपी और आरएसएस ने अभी तक कुछ नहीं कहा है. राजद की ओर से आरक्षण खत्म करने पर लगातार मोदी और अमित साह से सवाल पूछे जा रहे हैं. 2015 में मोहन भागवत ने सिर्फ एक वाक्य बोला था कि वह आरक्षण की समीक्षा करना चाहते हैं, उसके बाद लालू यादव ने उस बात के दम पर मौके को भुना लिया और बिहार में अच्छी सीटें लाने में कामयाब रहे. इस वक्त बिहार में आरक्षण और अगला बनाम पिछड़ा का चुनाव ही चौथे और पांचवे चरण में हो जाएगा, ऐसी संभावना कुछ विश्लेषक जता रहे हैं.
राजद और महागठबंधन आरक्षण, संविधान को बदलने और जातीय जनगणना के मुद्दे को जनता के बीच ले जाने की उम्मीद लगा कर बैठी है. ऐसी स्थिति बिहार में बनती है तो निश्चित तौर पर भाजपा और एनडीए के लिए आगामी चरण का चुनाव कठिन हो जाएगा. अनंत सिंह का जातीय विशेष में अपना एक प्रभाव है. ललन सिंह के खिलाफ अशोक महतो की पत्नी को चुनाव में खड़ा किया गया है. अशोक महतो के जीवन पर ही 'खाकी: द बिहार चैप्टर' नामक वेब सीरीज बनी है. उसके जरिए मुंगेर और उसके आसपास के क्षेत्रों में अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई काफी पहले से चलते आ रही है. मोदी के नाम पर लोकसभा के चुनाव में वोट पड़ते हैं ये बात सही है, लेकिन मुंगेर में भाजपा का कैंडिडेट नहीं है बल्कि जदयू के ललन सिंह है.
फिर से दरार के अनुमान
बिहार में दो-तीन सभा को छोड़ दें तो नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी की किसी भी सभा में अब नहीं दिख रहे हैं. नीतीश कुमार अपनी अलग सभा कर रहे हैं. जदयू का कहना है और भाजपा दोनों का कहना है कि साथ में सभा करने से मना कर दिया है. ये थोड़ा शर्मिदगी का भी सवाल बना था. कहीं न कहीं नीतीश कुमार के लिए ये सीट प्रतिष्ठा की सीट बन गया है. उनको भी ये आभास है कि इस सीट पर अगड़ा बनाम पिछड़ा की गोल बंदी कर के इस सीट पर हराने का काम किया जा रहा है. मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग से आते हैं, पर महादलित और दलित की बात करें तो पांच प्रतिशत वोट के नुमाइंदे चिराग पासवान भी है. चिराग पासवान और नीतीश कुमार के संबंधों के बारे में सभी जानते हैं.
नीतीश कुमार की यात्रा 360 डिग्री पूरी
बिहार में भाजपा ने अपने पास 17 सीटें रखी है और जदयू को 16 सीटें दी है. भाजपा अपनी सीटों पर ही ज्यादा फोकस कर रही है. भाजपा को ये फिक्र नहीं है कि ललन सिंह चुनाव जीतेंगे या नहीं. चिराग पासवान के द्वारा नीतीश कुमार को लेकर बयान देने का मतलब साफ है कि वो उनके साथ नहीं है. पहली सभा के बाद से नीतीश कुमार और चिराग पासवान एक साथ नहीं दिखे हैं. जहां तक बात रही है सोशल इंजीनियरिंग की तो भाजपा के अलावा लालू यादव भी इसके अच्छे खिलाड़ी रहे हैं. इसका उदाहरण विधानसभा 2015 और 2020 में देखने को साफ तौर पर मिला है. बिहार में लोकसभा चुनाव में सिर्फ मोदी के चेहरे पर वोट पड़ती है. अगड़ा बनाम पिछड़ा की बात है तो इसमें जातीय जनगणना की रिपोर्ट और जातियों की संख्या के साथ आरक्षण को खत्म करने आदि के परशेप्शन बनाने की कोशिश की जा रही है. 2015 वाली ही कहानी को दोहराने का काम किया जा रहा है.
अगर अनंत सिंह ललन सिंह का चुनाव प्रचार और समर्थन करते हैं तो उनके बाहर आने से मुंगेर सहित कई सीटों पर फायदा हो सकता है, लेकिन उनका असर सिर्फ उनकी जाति पर ही पड़ेगा बाकी अन्य जातियों पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. अंत भला तो सब भला ये कहावत है लेकिन आखिरकार नीतीश कुमार फिर उसी चक्रव्यूह में फंस गए. बाहुबल के दम पर ही वो सरकार में आए थे बाद में अब वो फिर से चुनाव में बाहुबल का सहारा ले रहे हैं. ये उनके राजनीतिक करियर के लिए दुखद स्थिति है.
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