UPA पर निशाना INDIA पर चुप्पी, अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह की समझें सियासी रणनीति
बुधवार 9 अगस्त को गृहमंत्री संसद में मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देने उतरे थे. यह अविश्वास प्रस्ताव मणिपुर के मसले पर विपक्षी दल लाए थे. हालांकि, इस प्रस्ताव से सरकार को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि केवल भारतीय जनता पार्टी के ही 303 सांसद हैं. यह बहुमत के लिए जरूरी 272 सांसदों से कहीं अधिक हैं, लेकिन इस पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री को भी बोलना पड़ेगा, जो विपक्षी दलों की मांग थी. गृहमंत्री शाह ने बोलते समय न केवल कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर चुटकी ली, बल्कि विपक्षी गठबंधन को भी बार-बार यूपीए कह कर पुकारा. इसके पीछे भाजपा की एक सोची-समझी रणनीति दिखाई पड़ रही है.
"इंडिया" नहीं "यूपीए" बताया विपक्षी गठबंधन को
गृहमंत्री अमित शाह अपने संबोधन के दौरान तमाम मसलों पर बोले. विकास से लेकर विदेश नीति तक. कोरोना से लेकर मुफ्त गैस सिलेंडर और अनाज तक. किसानों की ऋण माफी से सड़कों की लंबाई तक. वह नहीं बोले तो विपक्षी गठबंधन का नया नाम आईएनडीआईए, जिसे प्रचलित तौर पर "इंडिया" लिखा और बोला जा रहा है. इसके पीछे न तो उनकी स्मृति का दोष था, न ही कोई चूक. यह जानबूझकर भाजपा की तरफ से वैसी रणनीति है, जिससे विपक्षी गठबंधन को डिसक्रेडिट किया जा सके. कांग्रेस की अगुआई में जो गठबंधन 2004 से 2014 तक देश पर शासन करता रहा, वह यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी "यूपीए" के नाम से बना गठबंधन था. अमित शाह ने जान-बूझकर यूपीए का कई बार उल्लेख किया. इसलिए भी किया क्योंकि यूपीए के नाम पर कई घोटालों के दाग हैं, जिन्हें उन्होंने याद भी दिलाया. कॉमनवेल्थ घोटाला, टू जी घोटाला, कोयला घोटाला, मनरेगा घोटाला इत्यादि का नाम लेते हुए उन्होंने यूपीए शासन की याद दिलाई. इससे पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से 8 अप्रैल को "कांग्रेस फाइल्स" नामक सीरीज भी चलाई थी, जिसमें कांग्रेसनीत यूपीए के शासनकाल में 48 खरब रुपए के घोटाले का भी आरोप लगाया था. अमित शाह यह जानते हैं कि वोट बैंक की राजनीति में बार-बार विरोधी दल पर आरोप लगाना ही सबसे बड़ी चाल होती है, इसलिए वह जानबूझकर "यूपीए" नाम का उल्लेख कर रहे हैं. उनको पता है कि उनके भाषण के क्लिप्स सोशल मीडिया पर उनकी पार्टी और आम लोगों के हैंडल्स से शेयर होंगे, इसलिए वह एक तरह से कैंपेन का मोड सेट कर रहे हैं.
अमित शाह ने विपक्षी गठबंधन की "वैधता" पर भी घोटालों की आड़ से सवाल दागे. वह केवल यूपीए तक ही नहीं रुके, वरन् नरसिंह राव की सरकार में हुए झामुमो सांसद रिश्वत कांड की भी याद दिला गए और 2008 ईस्वी में मनमोहन सरकार के विश्वास-प्रस्ताव का भी जिक्र किया, जब सांसदों को रिश्वत देने की चर्चा हुई थी. जाहिर है कि कांग्रेस का मतलब करप्शन स्थापित करना ही गृहमंत्री का उद्देश्य था. वह शुचिता के मामले में भाजपा को कांग्रेस से बीस दिखाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने अटलजी की सरकार के समय के अविश्वास-प्रस्ताव का भी जिक्र किया, जब एक वोट से उनकी सरकार गिर गयी थी. बारहां यूपीए का जिक्र भी एक सुलझी हुई रणनीति है, जिसके जरिए कांग्रेसनीत वर्तमान गठबंधन को डिस्क्रेडिट करना ही उद्देश्य है.
राहुल पर प्रहार, विपक्ष को चोट का लक्ष्य
गृहमंत्री अमित शाह ने राहुल गांधी पर भी चुटकी लेते हुए कहा कि उनको 13 बार लांच किया गया है और वह 13 बार असफल भी साबित हुए हैं. इससे पहले की बहस में भाजपा नेता निशिकांत दुबे ने तो सोनिया गांधी का जिक्र करते हुए यह भी कहा था कि वह बेटे को "सेट" करना और दामाद को "भेंट" करना चाहती है. जाहिर है कि बीजेपी की रणनीति यही है कि राहुल गांधी एक बार फिर विपक्षी "एकता" के केंद्र में रहें और विपक्ष के आपसी विरोधाभास और भी मुखर हो सकें. राहुल अगर केंद्र में रहेंगे तो उनसे कुछ चूक होने की संभावना भी रहेगी ही और इस बहाने बीजेपी को उन पर हमलावर होने का मौका भी मिलेगा. जैसे, बुधवार की बहस के बाद राहुल के "फ्लाइंग किस" को भी मुद्दा बना दिया गया.
"इंडिया" के बदले "यूपीए" गठबंधन पर आक्रमण वैसे भी आसान है. इसकी एक बड़ी वजह तो यही है कि इंडिया पर प्रहार करना भाषाई और नैतिक तौर से उचित नहीं होगा. दूसरे, मोदी सरकार ने खुद न जाने कितनी योजनाएं चलाई हैं, जिनके नाम में इंडिया है, जैसे- मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्किल इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, डिजिटल इंडिया मिशन इत्यादि. इसीलिए, अब बीजेपी ने एक तरफ तो संसद में, दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर और जमीनी तौर पर भी I.N.D.I.A नाम को स्थापित नहीं होने देने की रणनीति बनाई है. एक तर्क भाजपा की तरफ से यह भी दिया जा रहा है कि अगर USA को उसा और UNGA को उंगा नहीं कहते तो आइएनडीआइए को इंडिया क्यों कहा जाए? यह तर्क जोरशोर से सोशल मीडिया पर दिया और बांटा जा रहा है.
साथ ही, यूपीए नाम के साथ जुड़े घोटालों का बारबार उल्लेख कर लोगों को भ्रष्टाचार की याद दिलाते रहना भी भाजपा का लक्ष्य है. यही कारण है कि झामुमो हों या केजरीवाल, द्रमुक हों या ममता, इन सबका विरोध कांग्रेस से रहा है. यही नहीं कांग्रेस ने कभी न कभी भ्रष्टाचार के मसले पर या तो इनकी सरकारों का विरोध किया है, या फिर केजरीवाल की तरह ये पार्टियां कांग्रेस विरोध से ही सत्ता तक पहुंची हैं. गृहमंत्री का अविश्वास-प्रस्ताव के जवाब में दिया गया बयान बस इसी रणनीति को दिखाता है ताकि आम जनता को वह सब कुछ फिर से याद दिलाया जा सके. अगर भाजपा की यही रणनीति कायम रही, तो चुनाव के समय के करीब आने तक राहुल गांधी और कांग्रेस और उनके बहाने विपक्षी गठबंधन पर भाजपा के प्रहार और तीखे होंगे, और भी कड़वे होंगे.
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