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भारत में 50 करोड़ युवा हैं, यह एक चमत्कार बन सकता है, सदगुरु से जानें लोकतंत्र में रहने का मतलब
![भारत में 50 करोड़ युवा हैं, यह एक चमत्कार बन सकता है, सदगुरु से जानें लोकतंत्र में रहने का मतलब 500 million youth in India this can become a miracle learn from Sadhguru what it means to live in a democracy भारत में 50 करोड़ युवा हैं, यह एक चमत्कार बन सकता है, सदगुरु से जानें लोकतंत्र में रहने का मतलब](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/07/08/d7633e581bf1a8614d73abd8836d074d1688793914815606_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
भारत की 60% से अधिक आबादी तीस साल से कम उम्र की है. अगर वे स्वस्थ, प्रशिक्षित, एकाग्र और केंद्रित हों, सिर्फ तभी पचास करोड़ युवा एक जबरदस्त संभावना होते हैं. यह एक चमत्कार बन सकता है. धरती पर जो काम कोई देश नहीं कर सकता, उसे यह देश कर सकता है, क्योंकि अभी यह इतनी विशाल संभावना की दहलीज पर खड़ा है.
आमतौर पर, पुरानी पीढ़ी हमेशा युवाओं को इस तरह संभालने की कोशिश करती है जैसे कि यह कोई बीमारी हो जिसे ठीक करने की ज़रूरत है या जिसके इलाज की ज़रूरत है. युवाओं को किसी इलाज की जरूरत नहीं है. जीवन से दूर जा चुके बुजुर्ग लोगों को ही इलाज की जरूरत है. तो युवावस्था को हमेशा किसी ऐसी बीमारी के रूप में देखने के बजाय, जिसे ठीक करने की जरूरत है, आपको यह समझना चाहिए कि युवावस्था मानवता के दूसरे हिस्सों की तुलना में कहीं अधिक जीवंत होती है. बात बस इतनी है, चूंकि वे निष्क्रिय ऊर्जा की एक खास स्थिति में हैं, अगर कोई प्रेरणा मौजूद न हो, अगर कोई उचित मार्गदर्शन मौजूद न हो, तो यह बहुत आसानी से नकारात्मक हो जाती है.
अब तक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू जिस पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है, वह है युवाओं में प्रेरणा की संपूर्ण कमी. इसका कारण शिक्षा में प्रेरक आयाम का पूर्णतया निष्क्रिय हो जाना है. प्रेरणा के बिना कोई भी मनुष्य उन सीमाओं से ऊपर नहीं उठ पाता जिनमें वह रहता है, चाहे वे शारीरिक, मानसिक या सामाजिक सीमाएँ हों. जब मनुष्य प्रेरित होता है सिर्फ तभी वह उन सीमाओं से परे जाने की इच्छा रखता है जिनमें वह अभी मौजूद है. तो जैसे हम अपने युवाओं को जानकारी आधारित ज्ञान प्रदान करने में अपना समय, संसाधन और ऊर्जा का निवेश कर रहे हैं, वैसे ही हमें युवाओं को प्रेरित करने के लिए भी एक खास मात्रा में समय, ऊर्जा और संसाधनों का निवेश करना होगा.
इस देश में सैकड़ों पीढ़ियों से लोग उन्हीं परिस्थितियों में रह रहे हैं. हाँ, महाराजा के पास सोने की चप्पलें, हीरे के मुकुट और जो कुछ भी था, लेकिन इस देश में पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग हमेशा बहुत ही वंचित परिस्थितियों में रहते आए हैं, और यह अभी भी वैसा ही है. मैं इस बात को लेकर बहुत चिंतित हूं क्योंकि मैं जहां भी जाता हूं, देखता हूं कि लोग अति-आत्मविश्वास में हैं. "ओह, भारत एक महाशक्ति बनने जा रहा है."
हम भूल जाते हैं कि हमारे पास चीजों को गड़बड़ कर देने का एक लंबा इतिहास है. हम इसमें बहुत माहिर हैं. हम लगभग किसी भी चीज़ को गड़बड़ कर सकते हैं, है न? हम ऐसी चीजों में सक्षम हैं, क्रिकेट मैच से लेकर कुछ भी - यहां तक कि उसे भी जो हमारे हाथ में है. तो, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम इसमें गड़बड़ी न करें क्योंकि अगर हम इसे सही तरीके से संभालते हैं तो पचास करोड़ लोगों का जीवन नाटकीय ढंग से बदल सकता है.
अगर हम इस बार समृद्धि की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो हमें कुछ चीजों के बारे में समझदारी से काम लेना होगा और उनमें से एक है - हमारे पास मौजूद विशाल युवा आबादी को संगठित करना, पोषित करना, मार्गदर्शन करना, प्रेरित करना, प्रशिक्षित करना और उन पर ध्यान केंद्रित करना. और ये काम अपने आप नहीं होने वाला है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
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