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Bharat Gaurav: अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम..मलूक दास के इस दोहे के पीछे है बहुत रोचक कहानी

Maluk Das: रीतिकाल के महान संत और कवि मलूक दास के दोहे और कविताएं आज भी प्रांसगिक है. उन्होंने अपने दोहे और कविताओं के माध्यम से समाज को जागरुक करने का प्रयास किया.

अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए सब के दाता राम।।

Bharat Gaurav, Maluk Das: यह दोहा संत मलूक दास के है, जो आज भी बहुत प्रासंगिक है. उन्होंने अपने दोहे और कविताओं से लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया. मुगल सम्राट औरंगजेब भी मलूक दास से प्रभावित था और उनका बहुत सम्मान करता था. संत मलूक दास ने कभी भी धर्म व जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया. 

दास मलूका कौन थे?

संत मूलक दास का जन्म संवत 1631 की वैशाख बदी पंचमी को कड़ा के कक्कड़ खत्री के घर पर हुआ. उनके बचपन का नाम मल्लू था. मलूक दास बचपन से ही कोमल और उदार हृदय के थे. मलूक दास के तीन भाई थे जिनका नाम हरिश्चंद्र, शृंगार तथा रामचंद्र था. मलूक दास के गुरु संत विट्ठल दास थे. वे उन्हीं के बातए मार्ग पर चलने चले और प्रभु भक्ति करने लगे. उनकी एक बेटी हुई लेकिन कुछ समय बाद पत्नी और पुत्री दोनों का देहांत हो गया. इसके बाद वे प्रभु भक्ति में लीन हो गए. 108 वर्ष की उम्र में मलूक दास जी का निधन हो गया.

मलूक दास जी के दोहे

संत मलूक दास की रचनाओं की संख्या 21 बताई जाती है. इनमें अलखबानी, गुरुप्रताप, ज्ञानबोध, पुरुषविलास, भगत बच्छावली, भगत विरुदावली, रतनखान, रामावतार लीला, साखी, सुखसागर और दसरत्न अधिक उल्लेखनीय हैं.

मलूक दास के दोहे और पदों में लोकोक्तियां और मुहावरे अधिक मिलते थे. उनके काव्यों की विशेषता यह थी कि, बिना पढ़े-लिखे लोगों की जुबान पर भी चढ़ जाती थी. उनके कई दोहे में यह दोहा सबसे अधिक प्रचलित हुआ-

'अजगर करै न चाकरी पंछी करै न काम। दास मलूका कह गए, सब के दाता राम।।'

इस दोहे के कारण मलूक दास आज भी प्रसिद्ध हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मलूक दास ने आखिर इसकी रचना कैसे और कब की. मलूक दास जोकि शुरुआत में बहुत ज्यादा धार्मिक नहीं थे. एक दिन उनके गांव में एक साधु कुछ दिनों के लिए आए. वे गांव वालों को सुबह-शाम रामायण का पाठ सुनाते थे.

एक दिन मलूक दास भी पहुंच गए. उस समय साधु गांव वालों को रामजी की महिमा के बारे में बता रहे थे कि, 'राम जी दुनिया के सबसे बड़े दाता हैं. वे भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र और आश्रयहीनों को आश्रय देते हैं.' साधु की यह बात मलूक दास के पल्ले नहीं पड़ी. उन्होंने साधु से कहा- क्षमा करे महात्मन! लेकिन मैं चुपचाप बैठकर यदि राम का नाम लूं और काम न करूं क्या तब भी राम भोजन देंगे?'
साधु ने कहा- अवश्य देंगे
मलूक दास ने कहा- यदि मैं घनघोर जंगल में अकेला बैठ जाऊं, तब?
साधु ने कहा- तब भी राम भोजन देंगे.

बस साधु की यही बात मलूक दास को लग गई और वे जंगल पहुंच गए, जहां वे एक ऊंचे पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठ गए. जंगल के चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़ और कंटीली झाड़ियां थी. दिन ढल गया और चारों ओर अंधेरा छा गया. लेकिन मलूक दास को कहीं से भोजन नहीं मिला और न ही वे स्वयं पेड़ से नीचे उतरे. इसी तरह वे पूरी रात पेड़ पर ही बैठे रहे. अगली सुबह जंगल के सन्नाटे में मलूक दास को कहीं से घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दी. थोड़ी देर में चमकदार पोशाकों में कुछ राजकीय अधिकारी उसी पेड़ के पास उतरे जिसके ऊपर मलूक दास बैठे थे. एक अधिकारी थैले से भोजन का डिब्बा निकाल ही रहा था कि शेर की दहाड़ सुनाई पड़ी. शेर की दहाड़ का सुनकर सभी घोड़े भाग गए. अधिकारी भी डर गए और भोजन का थैला वहीं छोड़कर भाग गए. शेर भी दहाड़ता हुआ दूसरी ओर भाग गया. ये सभी घटनाएं मलूक दास पेड़ के ऊपर से देख रहे थे.

मलूकदास ने सोचा कि रामजी ने उसकी सुन ली है, वरना इस घने जंगल में भला मेरे लिए भोजन कैसे पहुंचता?  लेकिन फिर भी उन्होंने नीचे उतरकर भोजन नहीं किया. इसके बाद तीसरे पहर में डाकुओं का एक दल उधर से गुजरा. डाकुओं ने पेड़ के नीचे भोजन को देख कर कहा- भगवान की लीला तो देखो, हम लोग भूखे हैं और इस घने जंगल में हमारे लिए भोजन रखा है. आओ सभी, पहले भोजन करते हैं.

लेकिन एक डाकू ने सावधान करते हुए कहा कि, सरदार जंगल में भोजन का मिलना मुझे रहस्यमय लग रहा है. कहीं इसमें जहर न हो. डाकू के सरदार ने कहा, तब तो भोजन लाने वाला भी यहीं कहीं आसपास छिपा होगा, पहले उसे ढूढ़ते हैं. सभी डाकू इधर-उधर बिखरने लगे और तभी एक की नजर पेड़ के ऊपर बैठे मलूक दास पर पड़ी. डाकू ने कहा, भोजन में जहर मिलाकर तू ऊपर बैठा है. मलूक दास ने पेड़ के ऊपर से ही कहा- भोजन में विष नहीं है.

डाकू के सरदार ने कहा, पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ अभी सच-झूठ का पता चल जाएगा. तीन चार डाकू पेड़ पर चढ़े और मलूक दास को भोजन खाने पर विवश कर दिया. मलूक दास ने भोजन किया और नीचे उतरकर डाकुओं की पूरी कहानी बताई. इसके बाद डाकुओं ने उन्हें छोड़ दिया. इस घटना के बाद मलूक दास को ईश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा हो गई और गांव पहुंचकर मलूक दास ने सबसे पहले ‘अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम॥' इस दोहे की रचना की. 

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