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क्यों मराठवाड़ा के किसान हर साल गंवा रहे अपनी जान, क्यों यहां विफल हो रहीं सरकार की नीतियां

Maharashtra Farmer: बीते सालों की तुलना में महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में मौसम की अनिश्चितताएं काफी हावी रही हैं. कहीं सूखा तो कहीं तेज बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाकर किसानों की चिंता को बढ़ाया है.

Farmers Suicide Case: देशभर के किसानों ने लिए साल 2022 काफी निराशाजनक रहा. इस निराशा की वजह बना जलवायु परिवर्तन. मौसम की अनिश्चितताओं ने किसानों की उम्मीदों पर पानी खूब पानी फेरा. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा कर्जदार किसानों को भुगतना पड़ा, जो खेतों में खड़ी फसलों के बर्बाद होने के कारण ना कर्ज चुका पाए और ना ही रोजी-रोटी कमा पाए. ये कोई नई समस्या नहीं है, बल्कि कई सालों से मौसम की मार किसानों पर भारी पड़ती नजर आ रही है. इन दिनों महाराष्ट्र-मराठवाड़ा से सामने आई एक रिपोर्ट ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है.

साल 2022 महाराष्ट्र के मराठवाड़ा रीजन के अन्नदाताओं और उनके परिवारों के लिए संकट के काले साए की तरह रहा.  एक ताजा रिपोर्ट से पता चला है कि साल 2022 में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा रीजन के करीब 1,023 किसानों ने सुसाइड कर ली, जबकि साल 2021 में 887 किसानों ने अपनी जान गंवाई. 

इन 8 जिलों में बढ़ीं आत्महत्या की घटनाएं
एक मीडिया रिपोर्ट में डिविजनल कमिशनर के ऑफिस के हवाले से बताया गया है कि साल 2001 में जालना, औरंगाबाद, परभनी,  हिंगोली, नांदेड, लातूर, उस्मानाबाद और बीड जिलों में एक किसान ने आत्महत्या की थी, जबकि साल 2001 के बाद से अब तक यह आंकड़ा कई गुना बढ़ गया है. अब तक 8 जिलों के करीब 10,431 अन्नदाताओं ने अपना जीवन खत्म कर लिया है.

आकंड़ों से पता चला है कि साल 2001-2010 के बीच सबसे ज्यादा सुसाइड केस साल 2006 में दर्ज हुए. उस वर्ष करीब 379 किसानों ने अपनी जान दे दी. वहीं साल 2011-2020 के बीच किसानों की सुसाइड के सबसे ज्यादा मामले साल 2015 में 1,133 दर्ज किए गए हैं.

इस रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह भी बताया गया है कि साल 2001 के बाद करीब 10,431 किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन सरकारी मानदंडों के अनुसार सिर्फ 7,605 किसानों के परिवारों को ही आर्थिक मदद मिल पाई.

क्यों जान गंवाने को मजबूर हैं किसान
पिछले कई सालों से खेती-किसानी पर मौसम की अनिश्चितताएं हावी हो रहीं है. मराठवाड़ा के किसानों के सुसाइड केस में भी यह कारण बताया गया है. कई एक्टिविस्ट और अधिकारियों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र के कई इलाके सूखा से ग्रस्त रहे तो वहीं कुछ इलाकों में आवश्यकता से अधिक बारिश हुई. इन परिस्थितियों ने हमारे किसान और अन्नतदाताओं की परेशानियों को बढ़ा दिया. इसी के विपरीत आज भी, कई इलाकों में क्षमता के अनुसार सिंचाई नेटवर्क का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा.

इन घटनाओं के बीच कहां हुई चूक
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उस्मानाबाद जिले में प्रशासन के सहयोग से एक किसान परामर्श केंद्र चलाने वाले विनायक हेगाना ने बढ़ती किसानों की आत्महत्या की घटनाओं का विश्वलेषण करते हुए छोटे लेवल से काम करने की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि बेशक इन घटनाओं को रोकने के लिए कई नीतियां बनाई जा रही है, लेकिन अभी भी जमीनी स्तर से इन नीतियों के क्रियान्वयन में सुधार करना होगा.  

विनायक हेगाना के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में आत्महत्या की घटनाओं के पैटर्न में बदलाव हुआ है. पहले किसानों के ऐसे केस जुलाई से अक्टूबर के बीच देखने को मिलते थे, लेकिन अब दिसंबर से जून के बीच ऐसी चिंताजनक घटनाएं देखने को मिलती हैं.

कैसे होगा सुधार?
किसानों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं को रोकने और इस संख्या पर अंकुश लगाने को लेकर विनायक हेगाना कहते हैं कि इन घटनाओं से संबंधित नीतियों में त्रुटियां ढूंढकर सुधार के काम करने होंगे. इसके लिए एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए, जिसमें लोगों का एक समूह सिर्फ इसी मामले पर काम कर सके.

वहीं रिपोर्ट में महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे बताते हैं कि किसानों के लिए कई बार कर्जमाफी हुई है, लेकिन बावजूद इसके सुसाइड के केस बढ़ते जा रहे हैं. इनकी रोकथाम के लिए हमें कर्जमाफी के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि किसानों को उनके फसल उत्पादन के लिए सही रिटर्न मिल रहा है या नहीं.

उन्होंने यह भी कहा कि महंगे दामों पर बिक रहे घटिया बीज और उर्वरक भी कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक हैं. कृषि संसाधनों की बिक्री से पहले इनकी गुणवत्ता को चिन्हित किया जाना भी बेहद महत्वपूर्ण है. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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