औरंगजेब मुगल साम्राज्य का छठा शासक था और उसने 1658 से 1707 तक शासन किया था.
वह अपने कट्टर धार्मिक विचारों और इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता था.
उसकी मृत्यु 89 साल की उम्र में 3 मार्च, 1707 को दक्कन से दिल्ली लौटते समय हुई थी.
औरंगजेब ने अपने बेटे आजम शाह को खत में लिख कर बताया कि उसने टोपियां सिलकर 4 रुपए 2 आना कमाए हैं और कहा कि इन्हीं पैसों से उसका अंतिम संस्कार किया जाए.
उसने यह भी लिखा कि उसने कुरान लिखकर 305 रुपए कमाए थे और कहा कि ये पैसे काजियों और गरीबों में बांट दिए जाएं.
औरंगजेब ने अपनी मृत्यु पर कोई संगीत या कार्यक्रम न करने की इच्छा व्यक्त की थी. वह नहीं चाहता था कि उसकी मौत पर शाही खजाने का इस्तेमाल हो.
उसने अपनी कब्र पर कोई भव्य इमारत न बनाने की इच्छा जताई थी.
औरंगजेब चाहता था कि उसे वहीं दफनाया जाए जहां उसकी मृत्यु हो, इसलिए उसे दिल्ली नहीं ले जाया गया.
उसे महाराष्ट्र के औरंगाबाद के खुल्दाबाद, जिसका नाम अब संभाजी नगर है, वहां शेख जैनुद्दीन साहब की दरगाह के पास दफनाया गया, जिन्हें वह अपना गुरु मानता था.
औरंगजेब की कब्र को लाल पत्थर से ढककर उस पर मिट्टी डाली गई ताकि वहां फूल उग सकें.