भगवद गीता का पांचवां अध्याय संन्यास (त्याग) और कर्मयोग का रास्ता दिखाता है.



पांचवें अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं कि दोनों रास्तों से मुक्ति प्राप्त होती है.



लेकिन जो कर्मयोगी कार्य करते हुए ईश्वर का ध्यान करें वो ज्यादा श्रेष्ठ है.



सिर्फ काम छोड़कर संन्यास लेना जरूरी नहीं है. बल्कि काम करते हुए ईश्वर का ध्यान करना सही है.



सच्चा योगी वो होता है, जो अपना काम करता है बिना मोह में फंसे.



जो बिना इच्छा के कार्य करता है, फल उसी को प्राप्त होता है.



घर से लेकर समाज तक सभी तरह के काम करो लेकिन लालच और आसक्ति से मुक्त होकर.



ज्ञानी व्यक्ति सबको एक समान मानता है, चाहे ब्राह्मण हो या कुत्ता.



जीवन में सभी का सम्मान करो बिना किसी से द्वेष किए.