अफगानिस्तान की गिनती अब एक कट्टर इस्‍लामिक मुल्‍क के रूप में होती है, जो तालिबानी सत्‍ता के अधीन है.



तालिबान की हुकूमत के कारण अफगानिस्तान संकटों से घिरा हुआ है. हालांकि, ऐसे हालत हमेशा से नहीं थे.



जहां आज अफगानिस्तान है, वहां पहले गांधार देश हुआ करता था.



गांधार महाभारत काल का देश था, जहां से शकुनी की बहन गांधारी भारत (हस्तिनापुर) के राजा की रानी बनी.



युगों तक गांधार (वर्तमान में अफगानिस्तान) 'अखंड भारत' का हिस्सा रहा, जिसकी राजधानी काबुल बनी.



कालांतर में (7वीं सदी), जब इस्‍लाम का उदय हुआ तो इस्‍लामिक शासक वहां राज करने लगे.



आधुनिक युग में सिंधु नदी के उस पार की बसावट को सिंध कहा गया. जहां पहले कई हिंदू राजा राज कर चुके थे.



सिंध के ही एक राजा थे- दाहिर सेन. ऐसा कहते हैं कि वह सिंध के आखिरी हिंदू राजा थे. मोहम्मद बिन कासिम ने उनकी हत्‍या करवाई थी.



843 ईस्वी में वहां कल्लार नाम के एक राजा ने 'हिंदूशाही' राजवंश की स्थापना की थी.



कल्लार से पहले भी गांधार (आज का कंधार) पर कई हिंदू और बौद्ध राजाओं ने शासन किया. उनमें से कई को 'काबुलशाह' कहा गया.



अफगानिस्तान के हिंदू राजाओं में कल्लार के अलावा सामंतदेव, अष्टपाल, भीम, जयपाल, आनंदपाल, भीमपाल और त्रिलोचनपाल जैसे नाम भी प्रमुख हैं.



अफगानिस्तान के हिंदू राजा करीब 350 साल तक अरब लुटेरों को धूल चटाते रहे. जिनसे अरब के आक्रांता कांप जाते थे.



1019 ई. में अफगानिस्तान का इतिहास तब बदला, जब महमूद गजनी नाम के आक्रमणकारी ने राजा त्रिलोचनपाल को हराया.



प्राचीन काल में लोग काबुल को संस्कृत में कुभा, कंधार को गंधार और पेशावर को पुरुषपुर के नाम से जानते थे.



जहां आज अफगानिस्‍तान है, वहां बौद्ध धर्म के संस्‍थापक गौतम बुद्ध ने भी 6 महीने बिताए थे.



बौद्धकाल में बामियान अफगानिस्तान की राजधानी थी, जहां बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा थी, जिसे बाद में तालिबानियों ने तोड़ डाला.



हालांकि, अफगानिस्तान के काबुल, बामियान, बल्ख और जलालाबाद में आज भी प्राचीन मंदिरों, स्तूपों और विश्वविद्यालयों के अवशेष मिलते हैं.