Prayagraj News: नागपंचमी (Nag Panchami) का त्यौहार आज संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) में भी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है. ग्रहों और नक्षत्रों के ख़ास संयोग के चलते इस बार की नागपंचमी  का महत्व काफी बढ़ गया है. इस ख़ास मौके पर नाग देवताओं के मंदिरों और दूसरे शिवालयों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई है. लोग नाग देवताओं का दर्शन-पूजन कर उन्हें दूध चढ़ा रहे हैं और रुद्राभिषेक कर काल सर्प दोष (Kaal Sarp Dosh)और विष बाधा (Vish Badha) से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं. सम्पूर्ण सर्प जाति के स्वामी भगवान तक्षक और नागराज वासुकि का मूल निवास होने की वजह से प्रयागराज में नाग पंचमी का विशेष महत्व है.

  


नागपंचमी पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़


नाग पंचमी के मौके पर प्रयागराज में नाग देवताओं के मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है. सबसे ज़्यादा भीड़ संगम किनारे स्थित नागवासुकी मंदिर में हैं. यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है. लंबी लाइनों में लगे भक्तगण  नाग देवताओं की  जय-जयकार कर रहे हैं. नागराज वासुकी और भगवान तक्षक के मंदिरों में स्थापित नाग देवताओं का सोने-चांदी के गहनों और फल-फूल व मेवों से भव्य श्रृंगार किया गया है. मंदिरों के कपाट खुलने से पहले ही यहां श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लग गई थी. 


भक्तों ने चढ़ाया दूध और जल


नागपंचमी के दिन भक्तों ने नाग मंदिर में दूध और जल चढ़ाकर अपने घर-परिवार और कुल को सांपों की काली छाया से दूर रखने की प्रार्थना की. इस मौके पर मंदिरों में विशेष इंतजाम किये गए हैं. नाग देवताओं के मंदिरों में काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए विशेष पूजा-अर्चना और अभिषेक हो रहे हैं. इस मंदिर के कंकड़ भी अपने आप में एक कहानी संजोये हुए हैं. जो बेहद रहस्यमयी है. 


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नागवासुकी मंदिर के कंकड़ों को रहस्य


पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक़ इलाहाबाद के नागवासुकी मंदिर से कंकड़ ले जाकर घर के चारों तरफ रखने वालों पर कभी साँपों और नागों की काली छाया नहीं पड़ती. इतना ही नहीं यहां के कंकड़ घर में रखने वालों को सर्पदोष से भी मुक्ति मिल जाती है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक़ समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे और भगवान विष्णु की सलाह पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था. इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है.


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