लखनऊ: कोरोना काल जेल में बंद कैदियों के लिए बड़ा मुश्किल गुजरा. जेल की सीलनभरी चारदीवारी, अपनों से दूरी और अपराधबोध ने कैदियों की मनोदशा ऐसी बिगाड़ी की कई ने मौत को गले लगा लिया तो कई की मानसिक स्थिति गड़बड़ा गई. बीते साल जेल में खुदकुशी के मामले 40 फीसदी बढ़े हैं. कैदियों को ऐसे हालातों से बचाने के लिए जेल अधिकारी मनोवैज्ञानिकों का सहारा ले रहे हैं.


साल 2020 की शुरुआत से कोरोना ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था. मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन ने आम जनजीवन को प्रभावित किया तो सूबे की जेलों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला. कैदियों से भरी जेलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए काफी संख्या में पैरोल दी गई लेकिन जो भीतर बचे वो सबसे दूर हो गए.


डिप्रेशन के कारण कर रहे आत्महत्या


कोर्ट बंद होने से पेशी के बहाने मिलने वाली खुली हवा से उन्हें वंचित होना पड़ा. परिवार और करीबियों से मिलना जुलना भी बंद हो गया. उनकी जिंदगी जेल के भीतर चारदीवारी तक सिमट गई. नतीजा, उन्हें अवसाद ने घेर लिया. तन्हाई, अपनों से दूरी, अपराध का पश्चाताप ऐसा हावी हुआ कि कई कैदियों ने मौत का रास्ता चुना लिया.


40 फीसदी तक बढ़े मामले


आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में प्रदेश की जेलों में 20 लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि 2020 में यह संख्या बढ़कर 28 हो गई. बीते साल की तुलना में यह 40 फीसदी ज्यादा है. डीजी जेल बताते हैं कि खुदकुशी करने वाले कैदियों में ज्यादातर ऐसे थे जो पेशेवर अपराधी नहीं थे.


मौत को गले लगाने वालों में पैशन क्राइम करने वाले ही थे. ऐसे लोग जिन्होंने प्यार में कोई जुर्म कर दिया था या घर-परिवार के झगड़े में अपराध कर बैठे थे. इस तरह के कैदियों में अपराधबोध ज्यादा होता है और वह भावनाओं में आत्मघाती कदम उठा लेते हैं.


मनोवैज्ञानिकों से ली जा रही मदद


डीजी जेल आनंद के मुताबिक जेल में आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ी है लेकिन जेल प्रशासन की सावधानी और सक्रियता के चलते खुदकुशी के मामले अन्य प्रदेशों से काफी कम हैं. उन्होंने बताया कि कैदियों की मनोदशा को मजबूत बनाए रखने के लिए उन्हें नियमित रूप से योग और ध्यान की प्रैक्टिस कराई जाती रही. मनोवैज्ञानिकों से उनकी काउंसिलिंग की भी व्यवस्था की गई है.


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