UP News : इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने संसद (Parliament) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) से अपराधियों को राजनीति से बाहर करने और अपराधियों, नेताओं और नौकरशाहों के बीच अपवित्र गठजोड़ को तोड़ने के लिए प्रभावी कदम उठाने को कहा है. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने निर्वाचन आयोग को इस दिशा में उचित कदम उठाने को कहा है लेकिन अभी तक आयोग और संसद ने ऐसा करने के लिए सामूहिक इच्छा शक्ति नहीं दिखाई है.


अतुल राय की जमानत याचिका खारिज


जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने घोसी (मऊ) से बहुजन समाज पार्टी (BSP) के सांसद अतुल कुमार सिंह उर्फ अतुल राय की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. राय अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस करने के लिए पीड़िता और उसके गवाह पर नाजायज दबाव बनाने के आरोप में जेल में बंद हैं. उनके कथित दबाव के कारण पीड़िता और उसके गवाह ने आत्महत्या की कोशिश की थी. बाद में, गंभीर अवस्था में दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी मौत हो गई.


इस मामले में हजरतगंज थाने में सांसद राय समेत कई लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. पीड़िता ने वर्ष 2019 में अतुल राय पर रेप का आरोप लगाया था. राय के मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि उनके खिलाफ कुल 23 मुकदमों का आपराधिक इतिहास है. अदालत ने कहा कि राय जैसे आरोपी ने गवाहों को जीत लिया, जांच को प्रभावित किया और अपने पैसे, बाहुबल और राजनीतिक शक्ति का उपयोग करके सबूतों के साथ छेड़छाड़ की. संसद और राज्य विधानसभा में अपराधियों की खतरनाक संख्या सभी के लिए एक चेतावनी है.


लोकसभा चुनावों में आपराधिक छवि वाले नेताओं का आंकड़ा


अदालत ने यह भी पाया कि 2004 की लोकसभा में 24 प्रतिशत , 2009 की लोकसभा में 30 प्रतिशत, 2014 की लोकसभा में 34 प्रतिशत, वहीं 2019 की लोकसभा में 43 प्रतिशत सदस्य आपराधिक छवि वाले हैं. पीठ ने कहा कि यह संसद की सामूहिक जिम्मेदारी है कि अपराधिक छवि वाले लोगों को राजनीति में आने से रोके और लोकतंत्र को बचाए. अदालत ने कहा कि चूंकि संसद और आयोग आवश्‍यक कदम नहीं उठा रहा, इसलिए भारत का लोकतंत्र अपराधियों, ठगों और कानून तोड़ने वालों के हाथों में सरक रहा है.


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पीठ ने कहा, 'कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि वर्तमान राजनीति अपराध, बाहुबल और धन के जाल में फंसी हुई है. अपराध और राजनीति का गठजोड़ लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गंभीर खतरा है.' अदालत ने कहा कि संसद, विधानसभा और यहां तक कि स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ना बहुत ही मंहगा हो गया है. पीठ ने कहा कि यह भी देखने में आया है कि हर चुनाव के बाद जनप्रतिनिधियों की सम्पत्ति में अकूत इजाफा हो जाता है. पहले बाहुबली और अपराधी चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों को समर्थन देते थे लेकिन अब तो वे स्वयं राजनीति में आते हैं और पार्टियां उनको बेझिझक टिकट भी देती हैं. अदालत ने कहा कि यह तो और भी आश्चर्यजनक है कि जनता ऐसे लोगों को चुन भी लेती है.


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