UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में शामली जिले के कैराना में पलायन का मुद्दा एक बार फिर जोर शोर से मीडिया जगत में छाया हुआ है. एक महीने पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कैराना आए थे और जनसभा से पहले उन घरों के दरवाजे पर गए थे जहां से लोग अखिलेश यादव की सरकार के दौरान बदमाशों की धमकियों से परेशान होकर इस क्षेत्र से पलायन कर गए थे. योगी आदित्यनाथ ने उन लोगों से ताजा हालात के बारे में पूछा तो उन्होंने कानून व्यवस्था की स्थिति पर संतोष जाहिर किया.


एक बार फिर पिछले शनिवार को देश के गृह मंत्री अमित शाह कैराना पहुंचे और वो भी अपने साथ पलायन का मुद्दा लेकर ही कराना आए थे. यहां उन्होंने टीचर कॉलोनी से लेकर मेन बाजार चौक तक डोर टू डोर संपर्क किया और वह मित्तल परिवार से भी मिले, जो अखिलेश सरकार के दौरान कैराना से बदमाशों की धमकी के चलते प्लान कर गए थे. मित्तल परिवार ने गृह मंत्री को बताया कि योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद में लोग जिन्होंने उन्हें कैराना से पलायन करा था, अब यहां से खुद ही पलायन कर गए क्योंकि 2017 के चुनाव में बीजेपी ने क्षेत्र से व्यापारी वर्ग के पलायन के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था. यह मुद्दा पूरे देश में सुर्खियों में छाया था. इस मुद्दे के बाद पूरे प्रदेश में वोटों के ध्रुवीकरण के चलते प्रदेश में 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार सत्ता में आई थी.


2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी उठा था मुद्दा


2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी पलायन के मुद्दे को खूब भुनाया गया और इस बार भी इस मुद्दे का जादू क्षेत्र की जनता के सर चढ़कर बोला और कैराना से प्रदीप चौधरी बीजेपी से सांसद चुनकर लोकसभा में भेज दिए गए. क्योंकि 2013 में दंगों के बाद से यहां जातीय समीकरण छिन्न-भिन्न हो गए थे. मुस्लिम जाट समीकरण टूट जाने का सीधा सीधा लाभ बीजेपी को मिल रहा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में, 2017 के विधानसभा चुनाव में और 2019 के लोकसभा चुनाव में जाट और मुस्लिम वर्ग के बीच अविश्वास की भावना के चलते दोनों वर्ग राजनीतिक रूप से एक दूसरे के विरोध में रहे, जिसका सीधा सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला लेकिन बीजेपी ने जहां सीएए का दर्द देश के मुस्लिम वर्ग के लोगों को दिया और साहीन बाग जैसा आंदोलन खड़ा हुआ. उसी तर्ज पर कृषि कानून के विरोध में दिल्ली में 1 साल तक किसानों का बड़ा आंदोलन चला,  जिससे मुस्लिम और किसान एक बार फिर से एक मंच पर आता दिखाई दिया, जो बीजेपी के लिए चिंता का एक बड़ा कारण है.


बीजेपी ने उठाया पलायन का मुद्दा


इसी समीकरण को तोड़ने के लिए बीजेपी ने एक बार फिर से पलायन का मुद्दा उठाकर अखिलेश सरकार की कानून व्यवस्था की स्थिति को जनता के सामने रखकर एक संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि यदि फिर से अखिलेश सरकार आती है तो क्षेत्र के व्यापारियों के लिए एक बड़ी मुसीबत सिद्ध होगी. अब सवाल उठता है कि बीजेपी तीन बार इस पलायन के मुद्दे को वोट के रूप में भुला चुकी है. क्या चौथी बार भी इसका लाभ ले पाएगी यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब आगामी 10 मार्च को ही मिलेगा जब वोटिंग मशीन से पर्दा हटेगा.


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