Gorakhpur News: हौसले बुलंद हों, तो फिर कोई भी बाधा आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है. यहां तक कि कायनात भी सपनों को साकार करने में जुट जाती है. हर बाधा को चीर कर हौसलों की उड़ान भरने वाले गोरखपुर के अंधियारी बाग निवासी गुलाम गौस के नेत्रहीन 16 वर्षीय पुत्र मो. गयासुद्दीन की भी कहानी कुछ ऐसी ही है. गयासुद्दीन ने नेत्रहीन होते हुए मात्र 26 माह में पवित्र कुरआन को कंठस्थ कर लिया. गयासुद्दीन उन लोगों के लिए भी उदाहरण बने हैं, जो मामूली पारिवारिक व शारीरिक बाधा के चलते अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं.


दावते इस्लामी इंडिया द्वारा संचालित मदरसतुल मदीना जमीयतुल कुरैश अंधियारी बाग के शिक्षकों के लिए भी गयासुद्दीन को दीनी तालीम देना किसी चुनौती से कम नहीं था. इस दौरान मदरसे में गयासुद्दीन को कुरआन पढ़ाने की शुरुआत की. उस्ताद एक-एक लफ्ज याद कराते व उसके बाद फिर गयासुद्दीन की जुबानी सुनते. यह कठिन काम था. करीब 26 माह की कड़ी मेहनत के बाद गयासुद्दीन ने कुरआन के तीस पारे याद कर लिए हैं. इसी मदरसे में पढ़ने वाले जाफरा बाज़ार निवासी सदरुल हक के 14 वर्षीय पुत्र मोहम्मद ओवैस ने महज 10 माह 11 दिन में पूरा क़ुरआन-ए-पाक कंठस्थ कर लिया है. सभी ओवैस के जज्बे को सलाम करते नजर आ रहे हैं.


प्रमाण पत्रों का किया गया वितरण
इस मौके पर मदरसतुल मदीना जमीयतुल कुरैश अंधियारी बाग में दस्तारबंदी व प्रमाण पत्र वितरण का जलसा हुआ. इसमें मोहम्मद गयासुद्दीन व मोहम्मद ओवैस की दस्तारबंदी हुई. वहीं क़ुरआन-ए-पाक मुकम्मल पढ़ने (नाज़रा) वाले मदरसे के 30 छात्रों को प्रमाण पत्र सौंपा गया. छात्रों को दुआओं, फूल मालाओं व तोहफों से नवाजा गया. कुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफिज आरिफ़ रज़ा ने की. नात-ए-पाक आदिल अत्तारी ने पेश की.


मुख्य वक्ता मुफ्ती हुसैन अशरफी मदनी व अबू तलहा अत्तारी ने कहा कि कुरआन-ए-पाक एक ऐसी मुकद्दस किताब है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है. दूसरी किताबों को तीन चार बार पढ़ने से आदमी का दिल भर जाता है, जबकि क़ुरआन-ए-पाक जितनी बार पढ़ा जाता है. उतना ही इसके अंदर लुत्फ और मजा आता है. पढ़ने और सुनने वाले को नई कैफियत हासिल होती है.


क़ुरआन-ए-पाक में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जैसा नाज़िल हुआ है, उसी शक्ल में आज भी मौजूद है. क़ुरआन-ए-पाक केवल मुसलमान के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के हर इंसान की रहनुमाई के लिए है. कहा कि अगर आप ज़िंदगी और आख़िरत में सफल होना चाहते हैं, तो कुरआन-ए-पाक की रस्सी को मजबूती से पकड़ लें, क्योंकि हर जगह क़ुरआन-ए-पाक आपकी रहनुमाई करेगा.


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