Bhasma Holi 2022 in Varanasi: देश में होली (Holi) के रंगों का खुमार और हुरियारों का जोश त्योहार से पहले ही दिखने लगा है. वहीं भगवान शिव की नगर कही जाने वाली काशी (Kashi) में होली की परंपरा ना सिर्फ सदियों पुरानी मानी जाती है बल्कि ये अनोखी भी है. दरअसल माना जाता है कि बाबा भोलेनाथ खुद अपने भक्तों को होली के हुड़दंग की अनुमति देते हैं. काशी विश्वनाथ के इस शहर में रंगों की होली के अलावा एक होली ऐसी भी है जो कि चिताओं की भस्म से मनाई जाती है. बाबा विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के बाद अब परिसर में होली खेलने के लिए काफी बड़ी जगह बन चुकी है.
क्या है चिताभस्म की होली ?
ये होली इस बार साल 15 मार्च को और भव्य रूप में मनाई जाएगी. रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर इस होली को खेलने वाले लोग इकट्ठा होते हैं. सुबह से ही भक्त मणिकर्णिका घाट पर इकट्ठा होना शुरू हो जाते हैं. दुनियाभर में इसी जगह पर चिता की राख से होली खेलने की परंपरा है. यहां लोग चिताओं की भस्म से होली खेलते हैं और फिर जब मध्याह्न में बाबा के स्नान का वक्त होता है तो इस वक्त यहां भक्तों का उत्साह अपने चरम पर होता है. माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ दोपहर के वक्त मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए आते हैं. वर्षों से ये परपंरा यहां पूरे जोश और उत्साह के साथ चली आ रही है.
क्यों मनाई जाती है चिता की राख से होली ?
वेदों और शास्त्रों में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां जिनकों बाबा खुद इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं. लेकिन अपने दयालु स्वभाव की वजह से वो अपने इन सभी प्रियगणों के बीच होली खेलने के लिए घाट पर आते हैं. शिवशंभू अपने गणों के साथ चिता की राख से होली खेलने मसान आते हैं. इसी दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है.
काशी की ये परंपरागत होली मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता भस्म के साथ मनाई जाती है. इस उत्सव को देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं और इसका हिस्सा भी बनते हैं. यहां बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली की दोपहर बाद आरती की जाती है और बाबा-माता को चिता भस्म और गुलाल अर्पण किया जाता है.
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