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Assembly Election 2022: जानिए- किन-किन चुनावी नारों ने सत्ता को उखाड़ फेंकने का काम किया, पढ़ें चुनावी नारों की दिलचस्प कहानी

Assembly Election 2022: ऐसे समय में जब देश के 5 राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं, आइए हम आपकों बताते हैं चुनावी नारों की दिलचस्प कहानी.

देश के 5 राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं. इसके लिए माहौल तैयार हो रहा है. चुनाव में जीतने और लोगों को आकर्षित करने के लिए नारे गढ़े जा रहे हैं. आइए हम आपको बताते हैं उन नारों के बारे में जिन्होंने देश में सरकारें पलटने या किसी दल के समर्थन में माहौल बनाने का काम किया.   

'स्थायी, असांप्रदायिक, प्रगतिशील सरकार के लिए'

पहले बात करते हैं आजादी के बाद कराए गए पहले चुनाव की. साल 1951 में कराए गए इस चुनाव में कांग्रेस का नारा था, 'स्थायी, असांप्रदायिक, प्रगतिशील सरकार के लिए'. जनता ने इस नारे को पसंद किया. कांग्रेस ने 479 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसे 364 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस के बाद अकेले सबसे अधिक 16 सीटें सीपीआई को मिली थीं. उसने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा था.  

'वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज'

तीसरे लोकसभा के चुनाव 1962 में कराए गए थे. इसमें बीजेपी की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ ने नारा दिया था, 'वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज'. दरअसल उस समय देश पर पाकिस्तान और चीन से हमले की आशंका थी. भारतीय सेना संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना में शामिल थी. इसी के विरोध में यह नारा दिया गया था. लेकिन जनसंघ के नारे को जनता ने नकार दिया. जनसंघ ने 196 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन केवल 14 सीटें ही जीत पाया था. नेहरू की पार्टी कांग्रेस ने 488 सीटों पर चुनाव लड़कर 361 सीटें जीत ली थीं. 

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'गरीबी हटाओ'

5वीं लोकसभा के चुनाव 1971 में कराए गए. इसमें कांग्रेस ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया. प्रचार में इंदिरा गांधी कहती थीं, ''वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ.'' कांग्रेस के इस नारे के विरोध में विपक्ष का नारा था, ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल.' चुनाव परिणाम में कांग्रेस को 352 सीटें मिलीं. यह चुनाव जीतने के बाद इंदिरा गांधी ने 1975 में 20 सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया. इसका फोकस गरीबी दूर करने पर था. 

'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ'

इमरजेंसी लगाने के बाद जनता पार्टी ने 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ' का नारा दिया था. लेकिन जनता पार्टी के बिखर जाने के बाद कांग्रेस ने नारा दिया था, 'सरकार वो चुने जो चल सके'

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'गालों पर जो लाली है, तोपों की दलाली है'

कांग्रेस नेता वीपी सिंह ने भ्रष्टाचार के सवाल पर राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने बोफर्स तोपो की खरीद में दलाली का आरोप लगाया था. इसके बाद 1989 में हुए आम चुनाव में वीपी सिंह की पार्टी ने नारा लगाया, 'गालों पर जो लाली है, तोपो की दलाली है'. नारा राजीव गांधी को लक्ष्य करके दिया गया था. इस दौर में वीपी सिंह के लिए एक नारा लगा था, 'राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर है'. चुनाव में वीपी सिंह को इन नारों का फायदा भी मिला. वीपी सिंह के जनता दल ने 244 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसे इनमें से 143 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं 510 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को केवल 197 सीटें ही मिली थीं. 

न जात पर, न पात पर...

कांग्रेस ने 1990 में 'न जात पर, न पात पर, स्थिरता की सरकार पर, मुहर लगेगी हर बात पर' का नारा दिया. इसका 1991 के चुनाव में उसे फायदा भी हुआ. कांग्रेस ने 487 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 232 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि इस प्रदर्शन में राजीव गांधी की हत्या का भी हाथ था. राजीव की हत्या से पहले एक चरण का मतदान हो चुका था. चुनाव आयोग ने दूसरे-तीसरे चरण का चुनाव स्थगित कर दिया था. ये चुनाव जून में कराए गए. इसमें कांग्रेस को सहानुभूति का लाभ मिला. जहां पहले चरण का मतदान हुआ था, वहां कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था. इस चुनाव में बीजेपी ने 'सबको परखा, हमको परखो' का नारा दिया था. 

सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी

12वीं लोकसभा के चुनाव 1998 में हुए. इसमें बीजेपी का नारा था, 'सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी'. इस चुनाव में बीजेपी ने 182 सीटें जीती थीं. 

बीजेपी का 'इंडिया शाइनिंग'

बीजेपी सरकार ने 2004 में आम चुनाव निर्धारित समय से 6 महीने पहले ही करा दिए. बीजेपी ने 'इंडिया शाइनिंग' का नारा दिया. वहीं कांग्रेस का नारा था, 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ'. लोगों ने कांग्रेस के नारे को पसंद किया. कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 218 सीटें मिली थीं. बीजेपी को 138 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. 

'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है.'

उत्तर प्रदेश में दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा ने अन्य जातियों का समर्थन हासिल करने के लिए 2007 में अपनी रणनीति में बदलाव किया. उसने ब्राह्मणों को अपनी ओर करने के लिए सम्मेलन कराए. इसमें नारा दिया गया, 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है.' हाथी बसपा का चुनाव निशान है. इस नारे के दम पर बसपा ने यूपी में पहली बार अपने दम पर बहुमत की सरकार बनाई थी.

'अच्छे दिन आने वाले हैं'

साल 2014 के लोकसभा के चुनाव में बीजेपी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया था. बीजेपी ने नारा दिया था, 'अच्छे दिन आने वाले हैं' और 'हर हर मोदी, घर घर मोदी'. इस नारे की बदौलत बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 336 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

'फिर एक बार मोदी सरकार'

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव बीजेपी एक बार फिर नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे थी. उसने नारा दिया, 'फिर एक बार मोदी सरकार'. इस चुनाव में बीजेपी ने अकेले के दम पर 303 सीटें जीतीं.   

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