Gujarat High Court: गुजरात उच्च न्यायालय ने आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा हत्या मामले (Amit Jethwa Murder Case) में पूर्व बीजेपी विधायक दीनू सोलंकी (Dinu Solanki) और 6 अन्य को बरी कर दिया. न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति विमल के व्यास की पीठ ने यह फैसला सुनाया.


गुजरात उच्च न्यायालय ने 2010 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी और छह अन्य की अपील सोमवार को स्वीकार कर ली. 


न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति विमल के व्यास की खंडपीठ ने सीबीआई अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उपरोक्त सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. उच्च न्यायालय ने गौर किया कि निचली अदालत ने ‘‘दोषी ठहराने की पूर्व निर्धारित धारणा’’ के साथ कार्यवाही की और प्रतीत होता है कि अपराध को लेकर की गई जांच में शुरुआत से ही ‘‘सावधानी नहीं बरती गई और यह पूर्वाग्रहपूर्ण है.’’ 


उच्च न्यायालय परिसर के बाहर 20 जुलाई 2010 को जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. सोलंकी और छह अन्य को हत्या और आपराधिक साजिश के मामले में 2019 में सीबीआई अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और 15 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया था. उच्च न्यायालय ने बाद में दीनू सोलंकी और इस मामले में दोषी ठहराए गए उनके भतीजे की आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगा दी थी.


उच्च न्यायालय ने मामले के मुख्य आरोपी दीनू सोलंकी और छह अन्य की अपील को सोमवार को स्वीकार कर लिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाने वाले सीबीआई अदालत के आदेश को रद्द कर दिया. सीबीआई अदालत द्वारा सात जून 2019 को दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ दीनू सोलंकी ने याचिका दायर की थी जिसके बाद सितंबर 2021 में उच्च न्यायालय ने अपील के लंबित रहने तक सोलंकी की सजा पर रोक लगा दी थी.


पिछले साल, उच्च न्यायालय ने उनके भतीजे शिवा सोलंकी की आजीवन कारावास की सजा पर भी रोक लगा दी थी और सीबीआई अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई होने तक उन्हें जमानत दे दी थी. आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगकर कथित तौर पर दीनू सोलंकी की संलिप्तता वाली अवैध खनन गतिविधियों को उजागर करने की कोशिश के बाद 20 जुलाई 2010 को गुजरात उच्च न्यायालय के बाहर जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.


इसके बाद दो अज्ञात हमलावरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच राज्य पुलिस के आपराधिक अन्वेषण विभाग (सीआईडी) को सौंप दी गई. सीआईडी ने इस मामले में आरोपपत्र दायर किया. सितंबर 2012 में उच्च न्यायालय ने जांच सीबीआई को सौंप दी. सीबीआई अदालत ने सात जून 2019 को सातों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी.


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