Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ का बस्तर लोकसभा सीट आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. इस वजह से यह सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है. यह सीट प्रदेश के 11 लोकसभा सीटों में से राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण सीट है. हालांकि 1999 से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक इस सीट पर बीजेपी का ही दबदबा रहा है, लेकिन 2019 में कांग्रेस के प्रत्याशी ने बस्तर लोकसभा चुनाव में 39 हजार मतों के अंतर से इस सीट पर चुनाव जीता था. वहीं एक बार फिर कुछ महीनों में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए दोनों ही पार्टी के नेताओं ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. बस्तर लोकसभा सीट संसदीय क्रमांक-10 में 8 विधानसभा आते हैं और 6 जिले हैं. ये हैं 8 विधानसभा 1.जगदलपुर 2.बस्तर 3.चित्रकोट 4.कोण्डागांव 5.नाराय़णपुर 6. सुकमा 7.बीजापुर 8.दंतेवाड़ा शामिल है...


बस्तर लोकसभा सीट का मुख्यालय जगदलपुर है. बस्तर लोकसभा क्षेत्र के अंर्तगत 6 जिले, 1 नगर निगम और 7 नगर पालिका और 6 जिला पंचायत आते हैं. वहीं 25 ब्लॉक इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आते है. बस्तर लोकसभा क्षेत्र मे मुलभूत सुविधाओं को लेकर विकास हुआ है. शहरी क्षेत्रो मे विकास हुआ है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र मे आज भी ग्रामीण मुलभूत समस्या से जुझ रहे हैं. यहां ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्य आजिविका कृषि और वनोपज है. वहीं जगदलपुर शहर मुख्यालय व्यवसाय का प्रमुख केन्द्र है. जगदलपुर शहर मे ही विश्वविघालय, मेडीकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि महाविघालय और 8 विधानसभा मे महिला पॉलटेकनिक जैसे शिक्षण संस्थाने हैं. सबसे विकसित क्षेत्र होने के बावजुद भी अंदरूनी क्षेत्रों के सड़कों का बूरा हाल है. बस्तर लोकसभा सीट के 3 जिले सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित होने की वजह से यहां आज भी ग्रामीण अंचलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी बनी हुई है. आजादी के 75 साल बाद भी यहां के ग्रामीण सड़क ,बिजली ,पानी जैसे जरूरी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.


लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाता -


बस्तर संसदीय क्षेत्र में कुल मतदाता 13 लाख 31 हजार 127 मतदाता हैं. जिसमें महिलाओं की संख्या 7 लाख 12 हजार 261 हैं. तो वहीं पुरुष 6 लाख 59 हजार 824 मतदाता हैं, जबकि
थर्ड जेंडर के 48 मतदाता हैं. नये19 हजार 681 मतदाता हैं.


जातिगत समीकरण -


आदिवासी - 60 %
ओबीसी - 20 %
सामान्य - 20 %


बस्तर लोकसभा सीट में पिछले 5 लोकसभा चुनाव में हार-जीत की जानकारी 


बस्तर लोकसभा सीट में पिछले 4 चुनाव से बीजेपी का दबदबा रहा है और 20 सालों से इस सीट पर बीजेपी के सांसद जीतते आ रहे हैं. सन 1999 में बीजेपी के प्रत्याशी और बस्तर के माटी पुत्र कहे जाने वाले स्व. बलिराम कश्यप ने कांग्रेस के कद्दावर नेता मानकुराम सोढ़ी को हराया था. उसके बाद 2004 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बलिराम कश्यप ने कांग्रेस के नेता और बस्तर टाईगर कहे जाने वाले स्व. महेन्द्र कर्मा को 54 हजार मतो के अंतर से हराया और जीत हासिल की थी. जिसके बाद 2009 मे हुए लोकसभा चुनाव मे एक बार फिर बीजेपी के बलिराम कश्यप ने मानकुराम सोढ़ी के पुत्र शंकर सोढ़ी को 1 लाख मतों के अंतर से बूरी तरह हराया था, लेकिन 2011 मे सांसद रहते बलिराम कश्यप की तबियत बिगड़ने से उनकी मौत हो गयी थी.  इस तरह बलिराम कश्यप लगातार तीन बार बस्तर लोकसभा के सांसद रहें और 2011 में लोकसभा उपचुनाव मे उनके ज्येष्ठ पुत्र दिनेश कश्यप को बीजेपी ने टिकट दिया और कांग्रेस से कोंटा विधायक कवासी लखमा उनके प्रतिद्वंदी बने. दिनेश कश्यप ने कवासी लखमा को 88 हजार मतों के अंतर से हराया और बस्तर के सांसद बने.


जिसके बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर दिनेश कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा और कांग्रेस ने स्व. महेन्द्र कर्मा के पुत्र स्व.  दीपक शर्मा को टिकट दिया. इस चुनाव में भी बीजेपी के दिनेश कश्यप ने कांग्रेस के प्रत्याशी दीपक कर्मा को 1 लाख मतों के अंतर से हरा दिया. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बस्तर के लोकसभा सीट में तख्ता पलट गया और 2019 में बीजेपी ने बैदूराम कश्यप को टिकट दिया, वहीं कांग्रेस से चित्रकोट विधानसभा के विधायक रहे दीपक बैज को लोकसभा चुनाव में उतारा. कांग्रेस के दीपक बैज ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 38 हजार 982 मतों के अंतर से बीजेपी के बैदूराम कश्यप को चुनाव हराया और बस्तर लोकसभा के सांसद बने.


बस्तर लोकसभा सीट के स्थानीय मुद्दे


बस्तर संसदीय क्षेत्र में सबसे अहम मुद्दा नक्सलवाद का है. पिछले 4 दशकों से बस्तर नक्सलवाद का दंश झेल रहा है और विकास के लिए बाधा बना हुआ है. केंद्र में यूपीए सरकार और 2014 में बीजेपी की सरकार आने के बावजूद बस्तर से नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म कर पाने में दोनों ही सरकारें नाकाम ही साबित हुईं. हालांकि बीते कुछ सालों में नक्सली बैकफुट पर तो नजर आये लेकिन आज भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर विकास के लिए बाधा बने हुए हैं. अब तक बस्तर वासियों को नक्सलवाद की समस्या से निजात नहीं मिल सका है. 


बस्तर में पलायन भी अहम मुद्दा है. बस्तर के ग्रामीण अंचलों में लगातार आदिवासी ग्रामीण दूसरे राज्यों में काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं. ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने में सरकार नाकाम है. इस वजह से बस्तर के ग्रामीण अंचलों से लगातार पलायन कर रहे हैं. पलायन की वजह से कई अप्रिय घटना का शिकार हो रहे हैं. इस वजह से बीते कई सालों से पलायन बस्तर की प्रमुख समस्या बनी हुई है. जिस पर सरकार लगाम लगाने में नाकामयाब साबित हो रही है.


शहरी क्षेत्र के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में लोगो की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है. 60% युवा बेरोजगारी की समस्या से जुझ रहे हैं. राजनैतिक पार्टीयां अपने चुनावी मुद्दो मे सबसे अहम मुद्दा बेरोजगारी को दूर करने की बात कहती हैं, लेकिन उघोग, कॉल सेंटर और किसी तरह की प्राईवेट कंपनी की स्थापना नही होने की वजह से बेरोजगारी यंहा की सबसे बड़ी समस्या बन रही है.


बस्तर लोकसभा सीट में बस्तरवासियों के लिए सबसे बड़ी समस्या आवागमन की सुविधा का अभाव है. लंबे समय से बस्तरवासी बस्तर में ट्रेन सुविधाओं की विस्तार की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है. साथ ही अंदरुनी गांव में आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी बनी हुई है. सड़के नहीं बन पाने की वजह से यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर नदी पार कर शहर आने को मजबूर हैं. इसके अलावा पैसेंजर ट्रेनों की किमी की वजह से बस्तर में व्यापार भी प्रभावित हो रही है. दशको से मांग करने के बावजूद भी आज भी बस्तर को राजधानी रायपुर तक रेल मार्ग से  नहीं जोड़ा गया है. हालांकि केंद्र सरकार ने जरूर बस्तर में हवाई सेवा की सौगात दी है, लेकिन यहां से दूसरे राज्यों के बड़े शहरों में भी फ्लाइट की सुविधा बढ़ाई जाने की मांग बस्तरवासी कर रहे हैं.


किसे मिल सकता है बस्तर लोकसभा से टिकट? 


हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए अभी कुछ महीने शेष हैं. ऐसे में अब तक बीजेपी और कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा नहीं की है, लेकिन बस्तर लोकसभा सीट से जिन नाम पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, उनमें कांग्रेस से वर्तमान बस्तर सांसद दीपक बैज , बस्तर विधायक लखेश्वर बघेल, कोंटा विधायक कवासी लखमा और उनके बेटे हरीश कवासी के साथ ही महिला प्रत्याशी में से भानुप्रतापपुर विधायक सावित्री मंडावी का नाम चर्चा में है. वहीं बीजेपी की बात की जाए तो पहला नाम बीजापुर के पूर्व विधायक महेश गागड़ा, कोंडागांव से विधायक लता उसेंडी, मंत्री केदार कश्यप के भाई और पूर्व बस्तर सांसद दिनेश कश्यप और बस्तर के पूर्व विधायक सुभाउराम कश्यप का भी नाम चर्चा में है.


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