Bastar Bhumkal Divas: बस्तर में वीर शहीद गुंडाधुर के बलिदान दिवस पर हर साल सर्व आदिवासी समाज 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाता है. इस साल भी सर्व आदिवासी समाज ने भूमकाल दिवस मनाया. भूमकाल दिवस की 112वीं वर्षगांठ के मौके पर आदिवासियों की बड़ी संख्या ने जगदलपुर शहर में विशाल रैली निकाली.


इस मौके पर गुंडाधुर को श्रद्धाजंलि अर्पित कर आमसभा का आयोजन भी किया. कांकेर में भूमकाल दिवस पर आदिवासी समुदाय के जरिए बनाए गए वीर शहीद गुंडाधुर की प्रतिमा का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वर्चुअल अनावरण किया. इसके अलावा, आदिवासी समुदाय के लोगों ने कांकेर में विशाल रैली भी निकाली. रैली में हजारों आदिवासी समुदाय के लोग इकट्ठा हुए.


गुंडाधुर समेत 18 क्रांतिकारियों को सूली पर लटकाया गया


दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बस्तर में संघर्ष का शंखनाद करते हुए भूमकाल की शुरूआत की गई थी. समाज के लोगों ने बताया कि 'भूमकाल यानी जमीन से जुड़े लोगों का आंदोलन' में महानायक वीर शहीद गुंडाधुर, डेबरीधुर और अन्य क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया था. आज के दिन क्रांतिकारियों को हजारों आदिवासी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. समाज के प्रमुखों ने बताया कि 10 फरवरी, 1910 को गुंडाधुर की अगुवाई में अंग्रेजों के खिलाफ बस्तर में युद्ध का बिगुल फूंका गया था. अंग्रेजों ने गुंडाधुर समेत 18 क्रांतिकारी साथियों को जगदलपुर में गोल बाजार स्थित इमली पेड़ के नीचे फांसी दे दी थी. हर वर्ष शहीदों को याद कर 10 फरवरी को आदिवासी समाज से जुड़े लोग इकट्ठा होकर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं. भूमकाल दिवस पर जगदलपुर शहर समेत समूचे बस्तर संभाग के 7 जिलों में विशाल रैली निकाली गई और शहीद गुंडाधुर की प्रतिमा पर फूल चढ़ाए जाने के बाद आमसभा को संबोधित भी किया गया.


आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में 5वीं अनुसूची लागू करने की मांग


आदिवासी समाज के प्रमुख राजाराम तोड़ेम ने बताया कि आदिवासी समाज की अस्मिता की लड़ाई वीर गुंडाधुर सहित अन्य क्रांतिकारियों ने लड़ी थी. शहीद क्रांतिकारियों की याद में समाज भूमकाल दिवस के रूप में मनाता आ रहा है. उन्होंने शिकायत की कि आजादी के 75 साल बीत जाने पर आदिवासी समुदाय को हक नहीं मिला है और परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में 5वीं अनुसूची को पूरी तरह से पालन कराने की भी राज्य सरकार से अपील की गई है, लेकिन राज्य सरकार आदिवासियों की मांगों की अनदेखी कर फिर से छलावा कर रही है.


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