Virat Kohli the Captain: बल्लेबाज के तौर पर जहां विराट कोहली विरोधी गेंदबाजों के ऊपर हावी होने में माहिर हैं. वहीं एक कप्तान के तौर पर भी वो विपक्षी टीम के खिलाफ अपने लगातार आक्रामक अंदाज के लिए जाने जाते हैं. कोहली का नाम दुनिया के उन चुनिंदा खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्होंने कप्तानी की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिलने के बाद अपने खेल को भी नई  ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. हाल ही में कोहली ने टी20 वर्ल्ड कप के बाद इस फ़ॉर्मैट से कप्तानी छोड़ने के अपने फैसले से सबको हैरान कर दिया था.


यूएई में होने वाले टी20 विश्व कप के बाद कोहली इस प्रारूप में केवल बल्लेबाज के तौर पर खेलेंगे. हालांकि ऐसे में उनके सामने खुद को नए हालात के अनुसार ढालने की चुनौती होगी, क्योंकि पिछले सात सालों में कोहली ने ज्यादातर मैच बतौर कप्तान ही खेले हैं.


कोहली ने अपने टेंपरामेंट और तकनीक से सभी को बनाया अपना कायल 


कोहली जब अपने पहले कोच राजकुमार शर्मा के पास गए थे तो वो भी उनके जोश और जुनून से बेहद प्रभावित हुए थे. जल्द ही उन्हें पता चला गया था कि इस बच्चे में तकनीक के साथ साथ सही टेंपरामेंट भी है. जब कोहली अपने पिता के निधन के बावजूद रणजी ट्रॉफी में अपनी टीम की नैया पार उतारने के लिए क्रीज पर उतरें तो दुनिया भी उनके इस  दृढ़ संकल्प से वाकिफ हो गई थी.


अपने इसी जोश, जुनून, तकनीक, सही टेंपरामेंट और दृढ़ संकल्प से कोहली ने साल 2008 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया. इसके तीन साल बाद ही वो बतौर टेस्ट क्रिकेटर भी टीम इंडिया में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए. हालांकि ये उनकी इस सुनहरे सफर की महज एक शुरुआत थी. 


2013 में पहली बार मिला कप्तानी का मौका


साल 2013 में कोहली को पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैचों में कप्तानी का मौका मिला. इसके बाद साल 2014 के अंत तक आते आते टेस्ट टीम की जिम्मेदारी भी कोहली के हाथों में आ गई. इसके बाद जो कुछ हुआ, वो अपने आप में एक इतिहास है. कप्तान बनते ही कोहली के खेल में गजब का निखार आया. जो बल्लेबाज बड़े शतक बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था, वह लगातार बड़ी पारियां खेलने लगा और उनके बल्ले से लगातार रनों की बारिश होने लगी.


एक बल्लेबाज के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक कप्तान के तौर पर भी उन्होंने अपनी इस आक्रामकता को मैदान पर उतारा. अपने साथी खिलाड़ियों में भी कोहली ने जोश और जुनून के साथ खेलने का अंदाज पैदा किया. कोहली जब भी मैदान पर उतरते तो बतौर कप्तान उनका एक ही लक्ष्य होता विपक्षी टीम पर हावी होना और जीत दर्ज करना.


व्यक्तिगत उपलब्धियों को दरकिनार कर कोहली ने ‘टीम गेम’ को दिया बढ़ावा 


कोहली ने अपनी कप्तानी में व्यक्तिगत उपलब्धियों को दरकिनार कर हमेशा ही ‘टीम गेम’ को बढ़ावा दिया है. जिसका असर टीम के प्रदर्शन खासकर की विदेशी सरजमीन पर देखने को मिला. कोहली के नेतृत्व में अब तक भारत 65 टेस्ट मैचों में से 38 जीत चुका है जो भारतीय रिकॉर्ड है. वनडे में 95 मैचों से 65 में जीत दर्ज करने का शानदार रिकॉर्ड भी उनके नाम पर है. टी20 में उन्होंने 45 मैचों में कप्तानी की है जिनमें से 27 भारत ने जीते हैं.


कप्तान बनने के बाद से निखरा कोहली का खेल 


जहां खिलाड़ी अतिरिक्त जिम्मेदारी मिलने पर दबाव में आ जाते हैं, वहीं कोहली के खेल में निखार आया है. जिन टेस्ट मैचों में कोहली कप्तान नहीं थे, उनमें उन्होंने 41.13 के औसत से रन बनाए लेकिन कप्तान के तौर पर टेस्ट में उनका औसत 56.10 हो गया. इसमें सात दोहरे शतक शामिल थे. वनडे में भी यही अंतर है. जहां कप्तानी मिलने से पहले वनडे में कोहली का औसत 51.29 था, वहीं कप्तान के तौर पर ये बढ़कर 72.65 हो गया. केवल टी20 में कोहली के बल्लेबाजी औसत में अंतर देखने को मिला है. जहां कप्तानी से पहले ये औसत 57.13 था वहीं कप्तानी मिलने के बाद ये घटकर 48.45 हो गया.


टी20 विश्व कप जीतकर अपने रिकॉर्ड को करना चाहेंगे बेहतर 


टी20 में कप्तानी छोड़ने का एलान कर चुके कोहली इससे पहले टी20 विश्व कप जीतकर अपने रिकॉर्ड में सुधार करना चाहेंगे. कोहली की कप्तानी में भारत अब तक एक भी आईसीसी प्रतियोगिता नहीं जीता है और उनपर इसका दबाव भी है. बीसीसीआई ने उन्हें संकेत दे दिए थे कि टी20 विश्व कप के बाद उन्हें कप्तानी गंवानी पड़ सकती है. लेकिन कोहली ने इससे पहले ही कप्तानी छोड़ने की घोषणा कर साबित कर दिया कि वह अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने वाले खिलाड़ी हैं.


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