Holi 2023: छत्तीसगढ़ के इस जिले में होलिका दहन की राख से होली खेलने की परंपरा, हजारों ग्रामीण होते हैं शामिल
Dantewada News: देशभर में होली पर्व की धूम मची हुई है और रंग ,गुलाल से जमकर होली खेली जा रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के शक्तिपीठ मां दंतेश्वरी मंदिर में राख से होली खेलने की परंपरा 700 साल पुरानी है. मंदिर के पुजारी से लेकर सैकड़ों ग्रामीण मंदिर के प्रांगण में राख से होली खेलते हैं और बकायदा देवी देवताओं को भी राख की होली चढ़ाते हैं.
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View In Appदरअसल, होली पर्व से एक दिन पहले रात में ताड़ के पत्तों से होलिका दहन की परंपरा सिर्फ दंतेवाड़ा में ही निभाई जाती है और होली के दिन सुबह इसी ताड़ के पत्तो के जलने के बाद इसकी राख इकट्ठा कर इससे होली खेली जाती है. इसके अलावा पलाश के फूलों से बनी गुलाल भी देवी देवताओं को चढ़ाई जाती है.
खास बात यह है कि देवी मंदिरों में आमतौर पर वासंती और शारदीय नवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के दंतेश्वरी शक्तिपीठ में दो नहीं बल्कि 3 नवरात्रिया मनाई जाती है, तीसरी नवरात्रि को ही फागुन मंडई के नाम से जाना जाता है, जो आखेट नवरात्रि के नाम से बस्तर और छत्तीसगढ़ में प्रचलित है.
होली पर्व से ठीक 10 दिन पहले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में फागुन मंडई मेले की शुरुआत होती है. साल में एक बार होने वाले इस मेले में पूरे बस्तर संभाग के अलावा पड़ोसी राज्य उड़ीसा से एक हजार से भी ज्यादा देवी-देवताओं के क्षत्र और डोली दंतेवाड़ा मंदिर पहुंचते हैं और यहां हजारों ग्रामीणों की मौजूदगी में शक्तिपीठ दंतेश्वरी मंदिर में भव्य मेला लगता है. 10 दिनों तक विशेष पूजा अर्चना कर अलग-अलग तरह की अनोखी रस्मे निभाई जाती है,लेकिन इस फागुन मंडई में होली का दिन सबसे खास होता है.
होलिका दहन के दिन पहले मंदिर के प्रांगण में ताड़ के पत्तों की होली जलाई जाती है. सभी जगह लकड़ियों और गोबर के बने कंडों से होली जलाने की प्रथा है, लेकिन दंतेवाड़ा में ही केवल ताड़ के पत्तों की होली जलाई जाती है, और इसका विशेष महत्व भी होता है. इसके बाद अगले दिन सुबह होली के दिन इस होलिका दहन की जगह से राख इकट्ठा कर मां दंतेश्वरी देवी के सामने रखा जाता है और उसके बाद इसी राख से होली खेली जाती है.
दंतेवाड़ा में स्थित दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि 10 दिनों तक चलने वाले फागुन मंडई में होलिका दहन के दूसरे दिन मां दंतेश्वरी के दरबार में पलाश के फूलों और होलिका दहन की राख से होली खेलने की परंपरा है, सबसे पहले मां दंतेश्वरी की डोली से उतरे पलाश के फूलों से भैरव बाबा को सजाया जाता है, मां दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण में भैरव अपने रूप में मंदिर पुजारी और आम जनता के साथ पलाश के फूलों से होली खेलते हैं.
कहा जाता है कि इस राख से फागुन मंडई में पहुंचने वाले सभी देवी देवता और उनके साथ पहुंचे पुजारी होली खेलते हैं. राख के अलावा स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पलाश के फूल से तैयार की जाने वाली गुलाल से भी होली खेली जाती है. एक हजार देवी देवताओं की होली खेले जाने की यह परंपरा 700 सालों से निभाई जा रही है और केवल छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में ही देखने को मिलती है, जहां एक हजार से अधिक देवी देवता होली खेलते हैं.
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