रूस और यूक्रेन के बीच तनाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता देने के साथ-साथ वहां पर अपने सैनिकों की तैनाती करने के आदेश दिए हैं. पुतिन ने देश को संबोधित करते हुए पूर्वी यूक्रेन से अलग हुए दो शहरों डोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र के रूप में मान्यता दे दी है. यूक्रेन की सीमाओं पर 1,50,000 रूसी सैनिक डेरा डाले हुए हैं. लेकिन फिर भी अब तक पुतिन ने स्पष्ट तौर पर हमले के आदेश नहीं दिए हैं.
पहले रूस और यूक्रेन को समझिए
अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता भी है तो यह उसके लिए घाटे का ही सौदा होगा. यूक्रेन लंबे समय से बुरे हालात से जूझ रहा है. उसकी आबादी लगातार कम हो रही है. करप्शन के मामले में यूक्रेन 116 में से 112 नंबर पर है. यूक्रेन के पास कृषि भूमि के अलावा कोई प्राकृतिक संसाधान नहीं है. रूस के पास यूक्रेन से 10 गुना ज्यादा प्राकृतिक गैस भंडार हैं. वह सबसे बड़ा गेहूं का निर्यातक है.
अब यह तो जाहिर है कि यूक्रेन के पास ऐसा कुछ नहीं है, जो रूस कब्जाना चाहता हो. ना तो उसके पास युवा है ना इंडस्ट्री ना ही कोई प्राकृतिक संसाधन. तो फिर यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस क्यों आमादा है. दरअसल इसके पीछे पुतिन के तीन डर बताए जा रहे हैं.
क्या हैं पुतिन के डर
पुतिन यूक्रेन में नाटो का विस्तार रोकना चाहते हैं. वह अमेरिका के रूसी शासन को हटाने और उसके समर्थक लोकतंत्र के सपने को तोड़ना चाहते हैं. यह रूस की सबसे बड़ी चिंता है. तीसरा पुतिन यूरोप के अलावा चीन के लिए एनर्जी प्रोवाइडर के तौर पर अपनी सौदेबाजी की स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं.
अगर यूरोप यूक्रेन में नाटो के विस्तार में अमेरिकी प्लान का समर्थन करता है तो रूस के लिए परेशानियां खड़ी हो जाएंगी. इस वक्त चीन और रूस भी काफी करीब हैं. रूस एक नई पाइपलाइन के जरिए चीन को अपने गैस शिपमेंट में दस परसेंट इजाफे पर बातचीत कर रहा है. इस प्रोजेक्ट के 2026 तक पूरे होने की उम्मीद है.