Islamic Countries: दुनियाभर में ईद उल फित्र का जश्न मनाया जा रहा है. इस बीच पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल तलत मसूद ने इस्लामिक देशों की कमजोरियां बताई हैं. पाकिस्तानी वेबसाइट 'द ट्रिब्यून एक्सप्रेस' में एक ओपिनियन में उन्होंने कहा कि ईद के जश्न मना रहे मुस्लिमों के लिए ये समय अलग-अलग देशों में उनकी ओर से झेली जा रही मुश्किलों और तकलीफों का आकलन करने का भी है.    


पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल तलत मसूद ने इस ओपिनियन में इस्लामिक देशों की कमजोरियों, समस्याओं और गलतियों का जिक्र किया है. उन्होंने बताया कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में मुस्लिम देशों की स्थिति क्या है, उनके नेताओं की राजनीतिक परिपक्वता और रणनीतिक दबदबा जिस पर वे नियंत्रण रखते हैं और उनकी स्थिति में सुधार लाने और के लिए इस्लामिक देशों को क्या करने की जरूरत है? 


'शिक्षा के मामले लापरवाह हैं मुस्लिम नेता'
इस्लामिक देशों की कमजोरियां बताते हुए पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल तलत मसूद ने कहा, ''मुस्लिम नेता शिक्षा को बढ़ावा देने के मामले में आमतौर पर लापरवाह रहे हैं. पाकिस्तान आबादी के लिहाज से छठा सबसे बड़ा देश है. रणनीतिक तौर पर भी महत्वपूर्ण जगह पर है और एक परमाणु शक्ति भी है. इसके बावजूद पाकिस्तान की 23 फीसदी आबादी निरक्षर है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक विदेशी सहायता पर निर्भर है, चाहे वह आईएमएफ हो, विश्व बैंक या तेल-समृद्ध देशों से हो.''


उन्होंने बताया, ''तुर्की के अलावा शायद ही कोई मुस्लिम देश है, जिसके विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते हों. उच्च शिक्षा के लिए मुस्लिम देशों के छात्र आमतौर पर यूरोप या अमेरिका जाते हैं. कुछ साल पहले सऊदी अरब ने प्रमुख अमेरिकी और पश्चिमी विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर अपने सैटेलाइट कॉलेज स्थापित करने की कोशिश की थी, लेकिन यह परियोजना ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई.''


'पश्चिमी देशों पर निर्भरता है सफलता में बाधा'
तलत मसूद ने आगे कहा, ''सऊदी अरब और कुवैत तेल और गैस के प्रमुख उत्पादक हैं, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की खोज और अन्य चीजों के लिए वो पश्चिमी देशों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. रिफाइनरियां ज्यादातर पश्चिमी देशों, जापान या दक्षिण कोरिया की ओर से स्थापित की गई हैं. यही हालात यूएई और अन्य मध्य पूर्व देशों में भी हैं. हालिया सालों में इन देशों की ओर से तकनीक और मैनेजमेंट क्षमता बढ़ाने के लिए स्थानीय प्रतिभाओं को आगे लाया गया हैं. इसमें हालात सुधरे हैं, लेकिन पूरी तरह से सफलता हासिल करने में अभी और समय लगेगा.


'इस्लामिक देशों की आपसी लड़ाई बनाती है कमजोर'
उन्होंने कहा, ''तेल की कीमतों को तय करने में ओपेक (OPEC) और खासकर सऊदी अरब की अहम भूमिका होती है. एनर्जी मार्केट पर अमेरिका और प्रमुख पश्चिमी देशों का दबदबा है. निकट भविष्य में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों में कोई बड़ी प्रगति होने की संभावना नहीं है. हालांकि, मुस्लिम तेल उत्पादक देशों के बीच आपसी मतभेद उनके सामूहिक दबदबे को कम करने और उनकी तरक्की में बड़ी रुकावट बन रहे हैं. ईरान, सऊदी अरब और अन्य मध्य पूर्वी देशों के बीच राजनीतिक मतभेद उनके सियासी और आर्थिक प्रभाव को कमजोर करते हैं.''


भारत को लेकर कही ये बात
पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, ''कुछ पश्चिमी देशों के विरोध के बावजूद सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंधों में सुधार के हालिया प्रयास उत्साहजनक हैं. रूस और ईरान से तेल उत्पादों पर समझौता करने वाले देशों का पश्चिमी देश विरोध करते हैं और कई बार प्रतिबंध भी लगा देते हैं. इससे अमेरिकी दिशा-निर्देशों का पालन करना मुश्किल होता जा रहा है. हालांकि, रूस के साथ भारत की तेल डील को अमेरिका ने नजरअंदाज कर दिया था.''


उन्होंने कहा, ''उच्च शिक्षा पर फोकस की कमी और साइंस-टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने में विफलता ने मुस्लिम देशों को विदेशी शिक्षा पर निर्भर बना दिया है. इसका लाभ सिर्फ कुछ खास लोग ही उठा सकते हैं. इस बात के कोई साफ संकेत नहीं दिख रहे हैं कि मुस्लिम नेता उच्च शिक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं. इन नेताओं का शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत नहीं सूझती है, जबकि यह देशों की नियति बदलने का सबसे पहला पैमाना है.''


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