Japan Muslims Cementry: जापान में मुसलमान और ईसाईयों के लिए मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर (Dead Body) को लेकर अनिश्चिचतता का माहौल है.यहां बड़ी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है और बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार में शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है. देश की जनसंख्या करीब 12 करोड़ है. ईसाईयों की आबादी महज 1 फीसदी है और मुसलमान सिर्फ दो लाख हैं. जापान में यू्ं तो 13 क्रबिस्तान है, लेकिन ये नाकाफी हैं. कई बार घंटों सफर कर इन कब्रिस्तान में पहुंचा जाता है. इसलिए मुसलमान और ईसाईयों के लिए अंतिम संस्कार करने के विकल्प काफी कम होते हैं. 


क्या है अड़चन?


इस्लाम में मौत के बाद दफनाने की परंपरा है. जापान में बड़ी आबादी पार्थिव शरीर को जलाकर अंतिम संस्कार करते हैं, इसलिए मुसलमानों और ईसाईयों के जरूरतों को तूल नहीं दी जा रही है. इस्लामी मान्यता के मुताबिक किसी पार्थिव शरीर को 24 घंटे के भीतर दफनाना होता है लेकिन क्रबिस्तान की किल्लत की वजह से लोगों को परेशानी होती है. लोगों को आनन-फानन में हजारों किलोमीटर का सफर करना पड़ता है ताकि उनके परिजन को जल्द से जल्द दफनाया जा सके.


सरकार ने फेर रखा है मुंह?


जापान में बसने वाली मुसलमान आबादी का कहना है कि जापान सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज करती है और अल्पसंख्यकों को बड़ी आबादी के मुताबिक ढालना चाहती है. कई लोग ऐसे हैं जो अपने परिजनों के दफनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं ताकि सम्मानजनक तरीके से उन्हें दफनाया जा सके. 


बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक,साल 2004 में मोहम्मद इकबाल खान अपनी पत्नी के साथ पाकिस्तान से जापान आए थे. लेकिन 2009 में उनकी पत्नी ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. डॉ इकबाल को तब सूझ नहीं रहा था कि वे अपने बच्चे को कहां दफनाएं. इसके बाद उन्हें हजारों किलोमीटर सफर करने के बाद एक कब्रिस्तान मिला.इस अनुभव की वजह से ही उन्होंने ईसाई कब्रिस्तान के बगल में एक प्लॉट खरीदा ताकि आने वाले समय में उन्हें फिर से अपने किसी करीबी की पार्थिव शरीर को दफनाने के लिए जद्दोजहद न करनी पड़े.


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