India G20 Summit: भारत इस साल जी20 शिखर सम्मेलन की 18वीं बैठक का आयोजन कर रहा है. पिछले साल अध्यक्षता मिलने के बाद ही जी20 बैठक को लेकर तैयारियां चल रही हैं. जब से भारत को जी20 की अध्यक्षता मिली है, तब से चीन बहुत परेशान था. भले ही वह खुल कर कुछ ना कह पाए. इसका अंदाजा कुछ यूं लगाया जा सकता है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत में 9 से 10 सितंबर तक होने वाली जी20 बैठक में हिस्सा लेने के लिए नहीं आ रहे हैं. 


रॉयटर्स के मुताबिक, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अगले हफ्ते भारत में होने वाली जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होने की संभावना है. कहा जा रहा है कि जिनपिंग की जगह प्रधानमंत्री ली कियांग जी20 में अपने देश का प्रतिनिधित्व करेंगे. हालांकि, इन सबके बीच जिनपिंग की एक 'गलती' की चर्चा हो रही है. माना जा रहा है कि उसके चलते ही शायद वह भारत नहीं आ रहे हैं. आइए इस गलती के अलावा उन सभी वजहों के बारे में जानते हैं, जिनके चलते जिनपिंग भारत आने से बच रहे हैं. 


क्या है जिनपिंग की 'गलती'? 


दरअसल, जी20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत से ठीक 12 दिन पहले चीन ने अपना एक नया नक्शा जारी किया. इस नक्शे में भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा बताया गया. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपने पड़ोसी देशों के कुछ द्वीपों को भी अपना हिस्सा बता दिया है. इसके अलावा ताइवान को भी चीन के हिस्से के रूप में दिखाया गया है. चीनी नक्शे की रिलीज होने की टाइमिंग को जिनपिंग की 'गलती' के तौर पर देखा जा रहा है.


जैसे ही चीन का नक्शा सामने आया, वैसे ही भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई. भारत ने कहा कि चीन के दावों को सिरे से खारिज किया जाता है, क्योंकि इनका कोई आधार नहीं है. भारत ने कड़े शब्दों में कहा कि चीन के इस तरह के कदम रिश्तों को जटिल बना देते हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तो चीन के कदम को बेहुदा करार दिया. उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के इलाके को अपने नक्शे पर दिखाकर उन्हें अपना बताना चीन की पुरानी आदत है. चीन पहले भी ऐसा कर चुका है.


अब बात करते हैं कि क्यों चीनी नक्शे का जारी होना जिनपिंग की 'गलती' है. नक्शे पर सवाल उठाने वाले देशों में सिर्फ भारत ही नहीं है, बल्कि फिलीपींस, मलेशिया और ताइवान भी चीन की इस हरकत पर आगबबूला हैं. वहीं, जिनपिंग को मालूम था कि अगर वह जी20 में हिस्सा लेने आएंगे, तो भारत 20 मुल्कों के अलावा सम्मेलन में शामिल होने आए बाकी के देशों के सामने ही उनकी इस हरकत को लेकर सवाल कर सकता है. शायद इस वजह से जिनपिंग ने अपना मुंह छिपाया है.


बीबीसी के मुताबिक, ब्रिक्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिनपिंग से मुलाकात की थी. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच सीमा पर तनाव कम करने पर बात हुई. लेकिन फिर ब्रिक्स से लौटते ही नया नक्शा जारी हो गया. जिनपिंग को मालूम था कि अगर वह भारत आएंगे, तो इस नक्शे पर पीएम मोदी सीधे उनसे सवाल कर सकते हैं. जी20 में शामिल पश्चिमी मुल्क भी जिनपिंग को नक्शे को लेकर घेर सकते थे. यही वजह है कि शायद उन्होंने जी20 में नहीं आने का फैसला किया है. 


क्या इन वजहों से भी नहीं आ रहे जिनपिंग?


चीन का नक्शा ही एकमात्र ऐसी चीज नहीं है, जिसकी वजह से जिनपिंग भारत नहीं आ रहे हैं. जबसे भारत को जी20 की अध्यक्षता मिली है, तब से ही चीन के पेट में दर्द हो रहा है. वह लगातार जी20 बैठकों में अडंगा लगाने की कोशिश कर रहा है. इस साल 26 मार्च को अरुणाचल प्रदेश और फिर 22-24 मई को जम्मू-कश्मीर में हुई जी20 की बैठक से भी चीन नदारद रहा. इससे संकेत मिल गए थे कि राष्ट्रपति जिनपिंग भारत को मिली जी20 की अध्यक्षता से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं. 


ड्रैगन की बौखलाहट का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि जब जी20 के मोटो को जारी किया गया, तो उस पर भी चीन को आपत्ति थी. भारत में हो रहे जी20 सम्मेलन का मोटो 'वसुधैव कुटुंबकम्' है जिसका अर्थ होता है, 'दुनिया एक परिवार है'. चीन ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि मोटो में संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया गया है, जो कि संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं है. उसने कहा कि मोटो में गैर संयुक्त राष्ट्र भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. 


वहीं, भारत में जी20 की बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे मुल्क शामिल हो रहे हैं. सभी पश्चिमी मुल्कों ने एक सुर में यूक्रेन युद्ध पर रूस की आलोचना की है. मगर चीन इस मसले पर चुप रहा है. जिनपिंग को मालूम था कि अगर वह जी20 में शामिल होंगे, तो उनसे यूक्रेन युद्ध पर भी सवाल किया जाएगा. ऊपर से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सम्मेलन में नहीं आ रहे हैं. ऐसे में यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी मुल्कों के सवाल दागते तो उनका जवाब अकेले जिनपिंग को ही देना पड़ता. 


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