Blood Donation: ट्रासजेंडर, समलैंगिक और सेक्स वर्कर्स पर बल्ड डोनेशन को लेकर पूर्ण प्रतिबंध है. इस मामले को लेकर बल्ड डोनर गाइडलाइन्स को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर की गई, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक हलफनामा दायर किया. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह जरूरी है कि रक्त दान करने वालों और रक्त लेने वालों को ये पूरा विश्वास हो कि जो भी ब्लड सैंपल लिया गया वो पूरी तरह से सुरक्षित और क्लिनिकली ठीक है.


केंद्र ने उस मांग का भी विरोध किया है, जिसमें कहा गया कि ट्रांसजेंडर, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों (MSM) और महिला यौनकर्मियों को रक्त दान करने से रोकने वाले दिशानिर्देशों में बदलाव किया जाए. केंद्र ने कहा कि ट्रांसजेंडर-सेक्स वर्कर रक्त दान नहीं कर सकते हैं. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, समलैंगिकों और महिला सेक्स वर्कर्स को रक्तदाताओं के रूप में बाहर करना वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित था. साक्ष्य को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है और उन्हें भारत में विशेषज्ञों ने स्वीकार किया.


क्या कहा केंद्र सरकार ने?


इसको लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हलफनामे के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रेजेंटेशन दी. सरकार ने कोर्ट में कहा, “ट्रांसजेंडर, सेक्स वर्कर हाशिए पर बने रहते हैं. कलंक और ट्रांसमिशन रिस्क की वजह से समय पर उनका उपचार होना मुश्किल हो जाता है.”


केंद्र ने कहा कि ट्रांसजेंडर, एमएसएम और महिला यौनकर्मियों के जनसंख्या समूह सामाजिक ताने-बाने में हाशिए पर रहने वाले समूह बने हुए हैं और इससे जुड़े कलंक के कारण समय पर इनका इलाज कराना मुश्किल हो जाता है, भले ही वो संक्रमित हों. ऐसे में इन जनसंख्या समूहों से संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है. इन समूहों से नई उभरती बीमारियों के ट्रांसमिशन का हाईरिस्क भी है, जैसा कि हाल ही में मंकी पॉक्स के मामले में एमएसएम के बीच देखा गया था.  


केंद्र ने आगे कहा कि सेफ बल्ड पाने के लिए प्राप्तकर्ता का अधिकार डोनेट करने वाले व्यक्ति के अधिकार से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है. ये सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए कि प्राप्तकर्ता को दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम से बचाया जा सके. केंद्र ने ये भी कहा कि इस तरह के समूह में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी या सी के संक्रमण का खतरा रहता है.


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