Manik Saha Swearing In Ceremony: त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार का गठन हो गया है. बीजेपी के विधायक दल के नेता माणिक साहा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. राज्यपाल ने उन्हें शपथ दिलाई. इस दौरान मंच पर पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत दिग्गज पार्टी नेता मौजूद रहे. छह साल पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए माणिक साहा दूसरी बार त्रिपुरा के सीएम बने हैं. एक डॉक्टर से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक माणिक साहा का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है.


2022 में जब बीजेपी ने त्रिपुरा में बीजेपी के लोकप्रिय नेता बिप्लब देव को हटाकर माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया तो सभी हैरान रह गए. इसकी वजह भी थी, साहा छह साल पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी जैसी कैडर आधारित पार्टी में उनके इतनी जल्दी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की उम्मीद किसी ने नहीं लगाई थी.


2016 में हुए थे बीजेपी में शामिल
माणिक साहा 2016 में बीजेपी में शामिल हुए थे. उससे पहले वह कांग्रेस में थे. यह ऐसा समय था जब किसी ने सोचा भी नहीं था कि दो साल बाद 2018 के चुनावों में बीजेपी वामपंथ का ये गढ़ जीत लेने वाली है. 2018 में बीजेपी की सरकार बनी और बिप्लब देव मुख्यमंत्री बनाए गए. उस समय तक बिप्लब देव ही त्रिपुरा बीजेपी के अध्यक्ष थे. 2020 में माणिक साहा को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. उन्होंने सबसे पहले बीजेपी के संगठन को मजबूती देने का काम शुरू किया. 


जब पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया
2022 में बीजेपी ने एलान किया कि वह बिप्लब देव की जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाने जा रही है. उस समय बिप्लब देव के खिलाफ असंतुष्टि की बात उठने लगी थी. 2023 के चुनावों में पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. एक ऐसे चेहरे के रूप में जो सभी को पसंद हो, माणिक साहा का नाम सामने उभरा और उनकी ताजपोशी सीएम के रूप में की गई. कहा जाता है कि मृदुभाषी माणिक साहा की छवि ने सत्ता विरोधी लहर को कम करने में काफी काम किया.


डेंटिस्ट हैं त्रिपुरा के सीएम
दो बार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बनें माणिक साहा पेशे से डेंटिस्ट हैं. उन्होंने लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (अब किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) से पढ़ाई की है. वह खिलाड़ी भी हैं. त्रिपुरा क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 


त्रिपुरा के सीएम की खासियत है कि वह खेमेबाजी से दूर रहते हैं और अपना काम करते हैं. उन्हें किसी भी खेमे का नहीं माना जाता है.


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