Citizenship Amendment Act: देश में नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) को लेकर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है. इससे पहले इस कानून को लेकर बहुत बहस हो चुकी है और कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिले थे. ये एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. कुछ समय पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि ये देश का कानून है और इसे हर हाल में लागू किया जाएगा.


इसके अलावा केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने भी सोमवार (29 जनवरी) को पश्चिम बंगाल में दावा करते हुए यहां तक कह दिया कि सीएए को एक हफ्ते के अंदर लागू कर दिया जाएगा. ये न सिर्फ पश्चिम बंगाल में लागू होगा, बल्कि पूरे देश में लागू किया जाएगा. तो आइए जानते हैं कि आखिर सीएए क्या है और इसके लागू होने से क्या बदलाव आएंगे. अहम बात कि इसको लेकर आपत्ति क्या है?


इस कानून पर पांच साल पहले मुहर लग चुकी है, लेकिन अभी तक लागू नहीं हो पाया है. मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों ने ज्यादा आपत्ति दिखाई और कड़ा रुख भी देखने को मिला था.  


धार्मिक भेदभाव


नागरिक (संशोधन) कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से विशिष्ट धार्मिक समुदायों (हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी) को अवैध अप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. इस पर आलोचकों का तर्क है कि ये प्रावधान भेदभावपूर्ण है, क्योंकि इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है.


धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन


विरोधियों का तर्क है कि सीएए कुछ धार्मिक समूहों का पक्ष लेकर और दूसरों को बाहर करके भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को कमजोर करता है.


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) संबंधित चिंताएं


सीएए को अक्सर प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से जोड़ा जाता है. आलोचकों को डर है कि संयुक्त होने पर ये मुसलमानों के बहिष्कार का कारण बन सकता है. जिससे ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां नागरिकता धर्म के आधार पर निर्धारित की जाएगी.


राष्ट्रविहीनता की संभावनाएं


ऐसी चिंताएं हैं कि अगर लोग नागरिकता के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहते हैं और दूसरे देश की नागरिकता नहीं है तो सीएए और एनआरसी के लागू होने के बाद बड़ी संख्या में लोग राष्ट्रविहीन हो सकते हैं.


विरोध और नागरिक अशांति


सीएए को लेकर देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले, जिस पर कई लोगों ने भारत के सामाजिक ताने-बाने, समावेशिता और विविधता के सिद्धांतों को लेकर संभावित प्रभाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की.


संवैधानिक मूल्यों को चुनौती


इसके अलावा, आलोचकों का ये भी तर्क है कि सीएए भारतीय संविधान में निहित समानता और गैर भेदभाव के मूल्यों को चुनौती देता है. इसके पीछे वजह ये बताई गई कि ये कानून अप्रवासियों के बीच उनके धर्म के आधार पर अंतर करता है.


हाशिए पर चले जाने का डर


कुछ समुदायों, खासतौर पर मुसलमानों के बीच ये डर है कि सीएए और एनआरसी कानून उनके हाशिए पर जाने, बहिष्कार और यहां तक कि निर्वासन का कारण भी बन सकते हैं.


सीएए पर विश्व की क्या प्रतिक्रिया है?


सीएए को अंतरराष्ट्रीय निकायों और मानवाधिकार संगठनों से भी आलोचना का शिकार होना पड़ा, जिन्होंने संभावित मानवाधिकार उल्लंघन और धार्मिक भेदभाव के बारे में चिंता व्यक्त की.


नागरिकता का निर्धारण करने में जटिलता


आलोचक सीएए और एनआरसी को लागू करने की प्रक्रिया को जटिल और गलतियों की संभावना के रूप में देख रहे हैं. इन लोगों का तर्क है कि बेगुनाहों को अपनी नागरिकता साबित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, नतीजतन अन्यापूर्ण परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं.


राजनीतिक ध्रुवीकरण


जब से सीएए और एनआरसी का मामला सामने आया तब से इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हो रही है और राजनीतिक रूप से ध्रवीकृत हो गया है. अलग-अलग राजनीतिक दल अलग-अलग रुख अपना रहे हैं. इस विभाजनकारी माहौल में इस ध्रुवीकरण ने मामले पर रचनात्मक बातचीत में बाधा डालने का काम किया.  


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