कोरोना वायरस महामारी के समय जीवन रक्षक उपकरण बनाने वालों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरण निर्माताओं को एहसास होने लगा है कि अचानक तेजी का समय धीरे-धीरे कम हो रहा है. उनमें से वेंटिलेटर के निर्माता भी हैं जिन्होंने वैश्विक संकट के समय जरूरत पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. अब ये वेंटिलेटर निर्माता विशाल आविष्कार, संकुचित बाजार और कुछ गहरे वित्तीय संकट का खतरा महसूस कर रहे हैं.


वेंटिलेटर निर्माताओं के सामने गहरा संकट


महामारी से पहले वेंटिलेटर सेक्टर में आठ निर्माता थे और सालाना 3,360 वेंटिलेटर आपूर्ति की क्षमता थी. मगर कोविड-19 संकट को देखते हुए 9 और निर्माता मैदान में उतरे, जिससे एक साल में वेंटिलेटर निर्माण की क्षमता बढ़कर 396,260 हो गई. लेकिन अब सवाल ये पैदा हो गया है कि बचे हुए वेंटिलेटर का क्या होगा? वेंटिलेटर की मांग में तेज गिरावट और साल में क्षमता से ज्यादा निर्माण के पीछे कई कारण हैं. जानकारों का कहना है कि पहला कारण मेडिकल है. आविष्कारकों और मेडिकल विशेषज्ञों ने चेताया था कि पूर्ण रूप से विकसित कोविड-19 के मरीजों को 2 फीसद से कम वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होगी.


जखीरे पर पहले किया जा चुका था सावधान


मेडिकल डिवाइस संघ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को इकट्ठा होनेवाले जखीरे के बारे में सावधान करते रहे. 2020 के मध्य तक अमेरिका जैसे देशों को भी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा था. पिछले साल जुलाई में भारतीय मेडिकल डिवाइस उद्योग ने मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर वेंटिलेटर के निर्यात पर बैन उठाए जाने की मांग की. विश्व स्तर पर अब ये मान लिया गया कि ऑक्सीजन थेरेपी की अन्य शक्ल महामारी के दौरान जिंदगी बचाने वाली रही है.


समस्या का दूसरा कारण वेंटिलेटर निर्माताओं के खिलाफ बाजार का रवैया भी रहा है. अप्रैल 2020 में ज्यादा उत्पादन के बावजूद मशीन की अनुमानित कमी को देखते हुए सरकार ने वेंटिलेटर निर्यात को बैन कर दिया. हालांकि, बैन को कुछ छूट के साथ अगस्त में हटा लिया गया, मगर जिस वक्त दिसंबर 2020 में पूरी तरह उठाया गया, तब तक मांग का अकाल आ गया और चीन जैसे देशों ने दुनिया के बाजार को भर दिया. अग्रणी वेंटिलेटर निर्माता प्रोफेसर दिवाकर वैश्य बताते हैं कि सरकार की 10,000 मांग पूरा करने के बाद अन्य जगहों से ऑर्डर रुक गया.


उन्होंने कहा, "वेंटिलेटर कोविड-19 की शुरुआत में वक्त की जरूरत थे और अब ये समय चला गया. हमारे पास निर्यात के लिए पर्याप्त ऑर्डर थे, लेकिन विदेश में बेचने की इजाजत नहीं दी गई. उसकी वजह से भारी आर्थिक प्रभाव, भारी कर्ज और करीब 100 करोड़ रुपए का नुकसान रहा." फोनिक्स मेडिकल सिस्टम्स के एक अन्य निर्माता शशि कुमार शिकायत करते हैं कि आंध्र प्रदेश मेडिकल टेक्निकल जोन के पहले ऑर्डर पूरी तरह नहीं उठाए गए.


कोरोना वैक्सीन लगवाने वाले डॉक्टर की रिपोर्ट पॉजिटिव, कोविशील्ड की ली थी दोनों डोज


कर्नाटक: मणिपाल इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी कैंपस में मिले 52 कोरोना मामले, कंटेनमेंट जोन घोषित