Tamil Nadu Politics: तमिलनाडु के मयिलादुथुराई जिले में शैव मठ के महंत को पालकी में बैठाकर कंधों पर ले जाने की परंपरा पर रोक लगा दी गई है. मयिलादुथुराई के जिलाधिकारी ने इस परंपरागत शोभायात्रा को मानवाधिकारों के उल्लंघन का हवाला देकर रोक लगा दी है. आपको बता दें कि ये परंपरा 500 सालों से चली आ रही है. इसके बाद मठ के अनुयायियों और पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. शोभायात्रा के समर्थकों ने जिला प्रशासन के आदेश को दरकिनार कर दिया है और पट्टिना प्रवेशम यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है. शोभायात्रा के समर्थकों का मानना है कि इस 500 सालों की पुरानी परंपरा को बैन करने का अधिकार किसी के पास नहीं है.


समर्थकों का कहना है कि अंग्रेजों के राज में भी किसी ने इस यात्रा को रोकने की कोशिश नहीं की थी और आजादी के बाद अब तक के किसी भी मुख्यमंत्री ने इस शोभायात्रा को नहीं रोका यह तो धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी का मामला है. इसके साथ ही समर्थकों ने राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से दखल देने की मांग की गई है. एआईएडीएमके और बीजेपी ने विधानसभा में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार को निशाना बनाने के साथ विपक्ष के इस आदेश का विरोध शुरू कर दिया है. हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती मंत्री पी के शेखर बाबू ने कहा है कि मुख्यमंत्री स्टालिन मठ के प्रमुख से बात करेंगे. वहीं स्टेट बीजेपी के प्रमुख के अन्नामलाई ने इस मुद्दे पर द्रमुक सरकार की खिंचाई की है और कहा है कि अगर अधिकारियों ने अनुष्ठान की अनुमति नहीं दी तो वह खुद पालकी उठा लेंगे.


मुख्यमंत्री स्टालिन से हस्तक्षेप की मांग
एक अन्य मठ के प्रमुख मदुरै अधीनम ने भी इस निर्देश का कड़ा विरोध किया है और कहा है कि जो भी हो वह पालकी को उठा लेंगे.  मदुरै अधीनम के 293 वें पोंटिफ श्री ला श्री हरिहर श्री ज्ञानसंबंदा देसिका स्वामीगल ने कहा, ''धर्मपुरम अधीनम शैवों के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है और इस प्राचीन मठवासी संस्थान में प्रथाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और विरोध नहीं किया जाना चाहिए.'' उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री स्टालिन को हस्तक्षेप करना चाहिए और इस बात को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ये कार्यक्रम विधिपूर्वक हो. मदुरै अधीनम ने कहा, "यह आयोजन अपने गुरु के लिए विद्यार्थियों की वंदना का प्रतीक है और वे स्वेच्छा से अपने गुरु को अपने कंधों पर दक्षिणा (भेंट) के रूप में ले जाते हैं."


सदियों से हो रहा शोभायात्रा का आयोजन
यहां पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह आयोजन सदियों से होता आ रहा है और यहां तक कि ब्रिटिश शासन के दौरान और राज्य के सभी मुख्यमंत्रियों द्वारा इसकी अनुमति दी गई थी. उन्होंने कहा, "इस घटना पर प्रतिबंध लगाना निंदनीय है, यह दावा करते हुए कि यह मानव की गरिमा को प्रभावित करता है. धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करना निंदनीय है. मैं मुख्यमंत्री एम के स्टालिन से अपील करता हूं कि वह पट्टिना प्रवेशम का संचालन करने की जिम्मेदारी निभाएं." श्री ज्ञानसंबंदा देसिका स्वामीगल ने कहा, "मैं धर्मपुरम अधीनम का शिष्य रहा हूं. यहां तक ​​कि अगर यह मेरे जीवन को खतरे में डालता है, तो भी मैं खुद वहां जाऊंगा और उन्हें अपने कंधों पर उठाऊंगा." 


जिले के अधिकारियों ने संविधान के अनुच्छेद 23 के प्रावधान लागू किए
मयिलादुथुराई जिले के अधिकारियों ने इस आयोजन को प्रतिबंधित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 23 के प्रावधानों को लागू किया है. उन्होंने कुछ समूहों के अनुष्ठान के कड़े विरोध का भी हवाला दिया और कहा कि इस आयोजन से कानून और व्यवस्था की समस्या हो सकती है. इस पर मठ के एक अन्य प्रमुख ने तर्क देते हुए पूछा कि क्या इतिहास कभी पहले भी इस शोभा यात्रा ने किसी की शांति भंग की थी? आपको बता दें कि मदुरै अधीनम को भारत के शैव मतों का सबसे पुराना प्राचीन मठ माना जाता है, जो देश के सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शिवशक्ति मंदिरों में से एक है.


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