Electoral Bonds Scheme Hearing: राजनीतिक दलों की आय का एक बड़ा हिस्सा चुनावी बॉन्ड से आता है. पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) को 2 जनवरी 2018 को सरकार की ओर से अधिसूचित किया गया था. इसे नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिलने वाला चंदा अज्ञात स्रोत में गिना जाता है यानी चंदा देने वाले दानदाताओं की डिटेल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होती है.


सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाओं के जरिये चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती दी गई है. ऐसी चार याचिकाओं पर मंगलवार (31 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले पर सुनवाई शुरू करेगी. सुनवाई में कांग्रेस नेता जया ठाकुर और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की ओर से भी याचिकाएं शामिल हैं. चूंकि मामला सुर्खियों में है, ऐसे में आइये जानते हैं कि आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है और बीजेपी-कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को इसके जरिये कितना चंदा मिलता है.


याचिकाकर्ता का दावा- चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को हुआ 12,000 करोड़ का भुगतान 


न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मार्च में एक जनहित याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को अब तक कुल 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक प्रमुख राजनीतिक दल को गया है.


2017 में एडीआर ने दायर की थी पहली याचिका 


चुनावी गतिविधियों पर नजर रखने वाली गैर-सरकारी संस्था (NGO) एसोसिएशन पर फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने 2017 में इस मामले में पहली जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी जैसे आरोप लगाए गए थे और मुद्दे पर एक अंतरिम अर्जी दायर कर मांग की गई थी कि चुनावी बांड की बिक्री फिर से न खोली जाए. 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और एनजीओ की ओर से दायर अंतरिम आवेदन पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. 


उधर, सुनवाई से पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने एक बयान में कहा है कि नागरिकों को धन के स्रोत के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत जानकारी का अधिकार नहीं है. 


कौन खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड?


योजना के प्रावधानों के अनुसार, भारत का कोई भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकती है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ साझा रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है. इसके बाद बॉन्ड के जरिये पसंद की पार्टी को चंदा दिया जा सकता है. कोई भी व्यक्ति चुनावी बॉन्ड तभी खरीद सकता है जब उसका केवाईसी वेरिफाई किया जा चुका हो. इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने के लिए केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की अधिकृत बैंक है.


कौन सी पार्टी प्राप्त कर सकती है चुनावी बॉन्ड?


चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने के लिए किसी दल का जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत (रजिस्टर्ड) होना जरूरी है. इसके अलावा राजनीतिक दल ने पिछले लोकसभा या राज्य विधानसभा के चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट शेयर हासिल किया हो. पात्र राजनीतिक दल केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से चुनावी बॉन्ड भुना सकता है. वर्तमान में राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड से मिले चंदे और 20 हजार रुपये कम का चंदा देने वाले दाताओं की डिटेल घोषित करना जरूरी नहीं है.


2019 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने से किया था इनकार


सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में चुनावी बांड योजना पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया था और साफ कर दिया था कि वह याचिकाओं पर गहन सुनवाई करेगा. केंद्र और चुनाव आयोग ने पहले राजनीतिक चंदे को लेकर कोर्ट में विपरीत रुख अपनाया था. सरकार दानदाताओं की गुमनामी बनाए रखना चाहती थी और चुनाव आयोग पारदर्शिता के लिए उनके नामों का खुलासा करने पर जोर दे रहा था. 


BJP-कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को कितना मिलता है चंदा? 


एक प्रेस रिलीज के माध्यम से एडीआर ने बताया था कि उसने वित्तीय वर्ष 2026-17 और वित्तीय वर्ष 2021-22 के बीच छह साल की अवधि में 31 मान्यता प्राप्त पार्टियों मिले चंदे का विश्लेषण किया. 31 पार्टियों में 7 राष्ट्रीय और 24 क्षेत्रीय दल शामिल थे. 


इसी साल एडीआर की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि बीजेपी की ओर से घोषित कुल चंदा अन्य सभी राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है.


रिपोर्ट में बताया गया कि छह साल के अवधि के दौरान बीजेपी को कुल चंदे का 52 फीसदी से ज्यादा (5271-9751 करोड़ रुपये) चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुआ, जबकि अन्य सभी राष्ट्रीय दलों को मिलाकर 1783-9331 करोड़ रुपये हासिल हुए. 


दूसरे नंबर पर कांग्रेस को 952-2955 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त हुआ. इसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने 767-8876 करोड़ रुपये घोषित किए.


2021-22 में इन राष्ट्रीय पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला इतना चंदा 


वित्तीय वर्ष 2021-22 में आठ राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड से कितना चंदा मिला, इस बारे में भी एडीआर ने अपने विश्लेषण में बताया है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में बीजेपी को 1033.70 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड से प्राप्त हुए. इस अवधि में दूसरे नंबर पर टीएमसी को 528.143 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड से मिले. तीसरे नंबर पर कांग्रेस को चुनावी बॉन्ड 236.0995 करोड़ हासिल हुए.


सीपीआईएम को इस अवधि में इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा प्राप्त नहीं हुआ. एनसीपी को इलेक्टोरल बॉन्ड से 2021-22 में 14 करोड़ रुपये प्राप्त हुए. इसके बाद सीपीआई, एनपीईपी और बीएसपी को इलेक्टोरल बॉन्ड से बिल्कुल भी चंदा प्राप्त नहीं हुआ. इस तरह से वित्तीय वर्ष 2021-22 में आठ दलों में से केवल चार को इलेक्टोरल बॉन्ड चंदा मिला, जो कुल मिलाकर 1811.94 करोड़ रुपये की रकम होती है.


राजनीतिक दलों की कुल आय


एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2021-22 में आठ राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आय मिलाकर 3289.34 करोड़ रुपये थी. इस अवधि में बीजेपी की कुल आय 1917.12 करोड़, तृणमूल कांग्रेस की 545.745 करोड़, कांग्रेस की 541.275 करोड़, सीपीआईएम की 162.23 करोड़, एनसीपी की 75.84 करोड़, बीएसपी की 43.77 करोड़, सीपीआई की 2.87 करोड़ और एनपीईपी की कुल आय 0.472 करोड़ रुपये थी.


एडीआर ने कहा है कि रिपोर्ट में बताया गया डाटा राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से आयकर विभाग और भारत चुनाव आयोग को पेश की गई वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट, चंदा रिपोर्ट से लिया गया है. 


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