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सऊदी अरब सहित 23 देश घटाएंगे कच्चे तेल का उत्पादन; भारत में पेट्रोल-डीजल कितना महंगा हो सकता है

सऊदी अरब सहित 23 देशों के तेल उत्पादन कम करने के फैसले के बाद हर रोज लगभग 19 करोड़ लीटर क्रूड ऑयल का उत्पादन कम हो जाएगा और आने वाले समय में भारत में डीजल-पेट्रोल की कीमत भी बढ़ सकती हैं.

सऊदी, रूस सहित ओपेक प्लस के सदस्य देशों ने आने वाले समय में तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला लिया है. ओपेक प्लस की इस घोषणा ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है. संगठन के इस कदम के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 8 प्रतिशत तक बढ़ गई है. 

आसान भाषा में समझे तो सऊदी अरब सहित 23 देशों के तेल उत्पादन कम करने के फैसले के बाद हर रोज लगभग 19 करोड़ लीटर क्रूड ऑयल का उत्पादन कम हो जाएगा. यानी तेल के दाम में प्रति बैरल 10 डॉलर तक की बढ़ोतरी होने की आशंका है. इन देशों के इस फैसले का असर भारत के पेट्रोल डीजल के दाम पर भी पड़ सकता है.

ओपेक प्लस में कितने देश शामिल हैं 

ओपेक प्लस  (ऑर्गनाइजेशन ऑफ ऑयल एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) 23 तेल निर्यातक देशों के समूह को मिलाकर बना है. ओपेक (OPEC) को सितंबर 1960 में बगदाद सम्मेलन में बनाया गया था. इस संगठन का उद्देश्य विश्व बाजार में तेल की कीमत निर्धारित करने के लिए तेल की आपूर्ति को विनियमित करना है. आसान भाषा में समझें तो ओपेक प्लस बाज़ार को संतुलित रखने के लिए तेल की सप्लाई और उसकी मांग को अनुकूल बनाता है. जब तेल की मांग में कमी आती है तब ओपेक प्लस आपूर्ति कम कर के इसकी कीमतें ऊंची करता है.

साल 1960 में बनाए गए ओपेक संगठन के सदस्य देश हैं- अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं वेनेज़ुएला. फिर साल 2016 में, जब तेल की कीमतें कम थीं, ओपेक ने 10 गैर-ओपेक तेल उत्पादक देशों के साथ मिलकर ओपेक प्लस बनाया.

वहीं ओपेक प्लस देशों में 13 ओपेक सदस्य देश के साथ अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मेंक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं. 

ओपेक+ देशों ने क्या लिया फैसला 

ओपेक+ देशों ने हाल ही में फैसला लिया है कि यह देश हर रोज साढ़े 11.6 लाख बैरल यानी करीब 19 करोड़ लीटर तेल के उत्पादन में कटौती करेंगे. दुनियाभर में कुल कच्चे तेल का 40 प्रतिशत उत्पादन ओपेक समूह देशों में ही होता है. पिछले साल के तेल उत्पादन से तुलना करें तो सऊदी अरब पिछले साल की तुलना में 5 प्रतिशत कम तेल का उत्पादन करेगा. ठीक इसी तरह इराक ने फैसला किया है कि वह हर रोज लगभग 2 लाख बैरल तेल के उत्पादन में कटौती करेगा. इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत और अल्जीरिया भी उत्पादन कम करने जा रहे हैं.

तेल की उत्पादन बढ़ाने के फैसले पर किसने क्या कहा

सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्रालय ने कहा, 'अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका के कारण एहतियातन ये क़दम उठाया गया है.' उन्होंने कहा कि तेल के उत्पादन को कम करने का फैसला तेल बाज़ार की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए एहतियातन उठाया जा रहा है.

वहीं दूसरी तरफ कुवैत के तेल मंत्री बदर अल मुल्ला ने भी उत्पादन के कम करने के कारण को बताते हुए एक बयान में कहा, 'तेल उत्पादन कम करने का फैसला एहतियातन लिया गया है.'

रूस के उप प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर नोवाक ने ओपेक प्लस देशों के फैसले पर कहा, "ओपेक प्लस देश ने ये फैसला इसलिए लिया है क्योंकि बाजार अस्थिर है और अंतरराष्ट्रीय मार्केट में जरूरत से ज्यादा तेल मौजूद है."

क्यों कटौती कर रहे हैं अरब देश?

ओपेक देशों की मानें को ये कदम वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता को देखते हुए उठाया जा रहा है. लेकिन विश्लेषक कहते हैं कि इसकी और भी वजह हो सकती है .

जाने माने ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने बीबीसी की एक रिपोर्ट में इसी सवाल का जवाब देते हुए कहा,  " ओपेक प्लस देश तेल उत्पादन में लगभग 16 लाख बैरल की प्रतिदिन कटौती करेगा और ये नियम मई से लागू हो जाएगी."

इस फैसले की एक वजह तो ऊपर बता दिया गया है लेकिन एक और वजह ये भी है अब अमेरिका का स्ट्रेटेजिक रिजर्व यानी आपात स्थिति के लिए तेल का भंडार बेहद कम हो गया है. इसके मतलब है कि अब अमेरिका एक बार फिर अपने इस स्टोरेज को भरने के लिए बड़ी मात्रा में तेल खरीदना शुरू करेगा.

ऐसे में अगर तेल का दाम बढ़ जाता है तो अपने स्टोरेज को भरने के लिए अमेरिका को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. यह देश पहले से ही मंदी की आहट झेल रहा है. अब अगर तेल के दाम और बढ़े तो अमेरिका को और अधिक खर्च करना होगा.

नरेंद्र तनेजा आगे कहते हैं कि इस फैसले से ओपेक देश दुनिया या वैश्विक बाजार का दिखाना चाहता है कि वह अपनी मर्ज़ी से कीमत निर्धारित कर सकता है और ओपेक खुद तय करेगा कि उसे कितना तेल का उत्पादन करना है. बता दें कि पहले सऊदी अरब अमेरिका के प्रभाव में रहता था लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि सऊदी अमेरिका को ये संकेत दे रहा है कि वो अपने तेल के मामले में अपनी मर्ज़ी का मालिक है."

अमेरिका के तेल का भंडार खत्म क्यों होने लगा 

पिछले साल फरवरी महीने में रूस यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के वक्त वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का दाम 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था. तेल का भाव इतना ज्यादा साल 2008 के बाद से कभी नहीं बढ़ा था. इसके बाद अमेरिका और रूस ने भी अपना रिजर्व तेल वैश्विक बाजार में बेचना शुरू कर दिया. जिसके कारण तेल की सप्लाई बढ़ गई और मार्च 2023 में क्रूड ऑयल की कीमत गिरकर 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई. 

तेल उत्पादन कम करने का भारत पर क्या होगा असर 

अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है. साल 2022 के अप्रैल से दिसंबर के बीच देश ने कुल 1.27 अरब बैरल तेल खरीदा गया था. कुल खरीदे गए तेल का 19 प्रतिशत भारत ने रूस से खरीदा था. पिछले 9 महीनों की लिस्ट देखें तो पाएंगे कि भारत सबसे ज्यादा तेल रूस से ही खरीदा था. रूस से तेल खरीदने के कारण भारत को प्रति बैरल 2 डॉलर तक की बचत भी हुई है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में नरेंद्र तनेजा कहते हैं, " तेल के उत्पादन के कम होने और कीमत बढ़ने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था तेल पर ही आधारित है और भारत जिस देश से सबसे ज्यादा तेल खरीद रहा है वह देश भी ओपेक प्लस में शामिल है. 

तेल के उत्पादन में के कारण जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के दाम बढ़ेंगे तो वर्तमान में जो डिस्काउंट प्राइस पर रूस से तेल मिल रहे हैं उसकी कीमत में भी इजाफा होगा. अब तक भारत को रूस से सस्ता तेल मिल जाता था. दरअसल रूस यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से कई देशों ने तेल खरीदने से मना कर दिया. ऐसे में पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद रूस को नए बाजार की ज़रूरत थी और भारत को सस्ते तेल की. ऐसे में तेल का कारोबार भारत और रूस के लिए फायदेमंद रहा. 

लेकिन अब रूस से भारत के अलावा तुर्की, पाकिस्तान और मोरक्को जैसे देश भी तेल खरीद रहे हैं. ऐसे में जैसे-जैसे रूस का बाजार बढ़ेगा, भारत को मिल रही छूट कम होती जाएगी."

 उत्पादन कम होने पर तेल के दाम क्या बहुत ज्यादा बढ़ सकते हैं

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के विश्लेषक फतेह बिरल ने एबीपी को बताया कि भारत एक ऊर्जा और तेल आयातक देश है. भारत में खपत होने वाले अधिकांश तेल का आयात किया जाता है. इस तरह के कदम से भारत का तेल आयात बिल बढ़ सकता है और इस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है. 

अगर 1 बैरल तेल के दाम में 10 डॉलर की बढ़त होती है तो देश की जीडीपी ग्रोथ 0.2%-0.3% कम हो जाती है और देश की महंगाई दर 0.1% तक बढ़ जाती है. 

सऊदी अरब के तेल का आख़िर रहस्य क्या है

मध्य-पूर्व के ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में तेल का सबसे बड़ा भंडार हैं. तेल की ये भंडार 19वीं सदी के मध्य में मिले थे लेकिन आज भी यहां तेल मिलने की संभावना खत्म नहीं हुई है. 

रूस के बाद भारत किन देशों से खरीद रहा कच्चा तेल 

ऊर्जा कार्गो की खेप पर निगरानी रखने वाली कंपनी वॉर्टेक्स के अनुसार कच्चे तेल की सप्लाई के मामले में रूस के बाद भारत इराक और सऊदी अरब से सबसे ज्यादा तेल खरीदता है. साल 2022 के नवंबर महीने में इराक ने भारत को हर रोज 8,61,461 बैरल और सऊदी अरब से हर रोज 5,70,922 बैरल तेल भेजा है. इन दोनों देशों के बाद आता है अमेरिका का स्थान. नवंबर 2022 के महीने अमेरिका ने हर रोज 4,05,525 बैरल कच्चा तेल भारत को निर्यात किया है. 

भारत में वर्तमान में क्या है पेट्रोल डीजल की कीमत

  • अलग-अलग शहरों में पेट्रोल डीजल के दाम अलग है. बेंगलुरु में प्रटोल की कीमत 101.99 रुपये प्रति लीटर है डीजल का रेट 87.89 रुपये प्रति लीटर है
  • चंडीगढ़ में पेट्रोल का रेट 96.20 रुपये प्रति लीटर है. वहीं डीजल की कीमत 84.26 रुपये प्रति लीटर है
  • चेन्नई में पेट्रोल की कीमत 102.63 रुपये प्रति लीटर है. वहीं डीजल रेट का दाम 94.24 रुपये प्रति लीटर है
  • गुरुग्राम में पेट्रोल रेट 97.38 रुपये प्रति लीटर है और डीजल रेट की कीमत 89.96 रुपये प्रति लीटर है
  • कोलकाता में पेट्रोल की कीमत 106.03 रुपये प्रति लीटर है जबकि डीजल का रेट 92.76 रुपये प्रति लीटर है
  • लखनऊ में पेट्रोल रेट 96.54 रुपये प्रति लीटर है और डीजल की कीमत 89.76 रुपये प्रति लीटर है
  • मुंबई में पेट्रोल की कीमत 106.31 रुपये प्रति लीटर है और डीजल रेट 94.27 रुपये प्रति लीटर है
  • नोएडा में पेट्रोल रेट 96.77 रुपये प्रति लीटर है और डीजल रेट 90.08 रुपये प्रति लीटर है
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